Peanut Farming: किसानों के लिए काम की खबर, मूंगफली की फसल को गलकट से बचाने के लिए करें ये काम
Rajasthan: मूंगफली की फसल में गलकट, टिक्का (पत्ती धब्बा) व विषाणु गुच्छा आदि कई अन्य हानिकारक रोगों का प्रकोप होता है. इनमें से गलकट रोग (कॉलर रोट) के कारण फसल को सर्वाधिक हानि होती है.
Peanut Farming: मूंगफली की खेती के लिए बुआई का उचित समय जून का दूसरा पखवाड़ा है. बुआई के बाद मूंगफली की फसल को गलकट रोग से बचाने के लिए विभागीय सिफारिशों के अनुसार बीजोपचार किया जाना चाहिए. कृषि अनुसंधान अधिकारी (पौध व्याधि) डॉ. जितेंद्र शर्मा ने बताया कि मूंगफली खरीफ में उगाई जाने वाली प्रमुख तिलहनी फसल है. मूंगफली उत्पादन में बढोतरी के लिए उन्नत शष्य क्रियाओं के साथ-साथ रोगों से बचाना भी आवश्यक है.
मूंगफली की फसल में गलकट, टिक्का (पत्ती धब्बा) व विषाणु गुच्छा आदि कई अन्य हानिकारक रोगों का प्रकोप होता है. इनमें से गलकट रोग (कॉलर रोट) के कारण फसल को सर्वाधिक हानि होती है. यह एक मृदोढ़ व बीजोढ़ रोग है. इस रोग के कारण फसल में पौधे मुरझा जाते हैं. ऐसे पौधों को उखाड़ने पर उनके स्तम्भमूल संधि (कॉलर) भाग व जड़ों पर फफूंद की काली वृद्धि दिखाई देती है. इस रोग से समुचित बचाव के लिए मृदा उपचार, बीजोपचार एवं रोग प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग ही एक मात्र प्रभावी उपाय है.
ऐसे करें बीजोपचार
डॉ. शर्मा ने बताया कि कृषकों को बुआई से पूर्व 2.5 किलो ट्राइकोडर्मा 50 किलो गोबर में मिलाकर एक हैक्टेयर क्षेत्र में मिलावें. साथ ही आर.जी. 425 व आर.जी. 510 आदि रोग प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें एवं कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत + थाइरम 37.5 प्रतिशत का 3 ग्राम या थाईरम 3 ग्राम या मैन्कोजेब 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें. अगर रासायनिक फफूंदनाशी का उपयोग कम करना हो तो 1.5 ग्राम थाईरम व 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा से प्रति किलो बीज को उपचारित करें.
बुआई के वक्त रखें ये सावधानी
उप निदेशक कृषि (शस्य) मनोज कुमार शर्मा ने बताया कि मूंगफली की बुआई जून के प्रथम सप्ताह से दूसरे सप्ताह तक की जाती है. कृषि जलवायवीय जोन 3ए (जयपुर, अजमेर, टोंक व दौसा जिले) के सभी कृषकों को सलाह दी जाती है कि मूंगफली की फसल को गलकट रोग से बचाने के लिए विभागीय सिफारिशों का प्रयोग करें. बीजोपचार करते समय हाथों में दस्ताने, मुंह पर मास्क तथा पूरे वस्त्र पहनें.