Rajasthan Political Crisis: राजस्थान कांग्रेस एक बार फिर बागी रुख के कारण चर्चा में है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की अटकलों के बीच खबर थी कि राज्य का सीएम बदला जाएगा. इस बीच दावा किया गया कि सचिन पायलट को इस बार मौका मिल सकता है. कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि कांग्रेस लीडरशिप, सचिन पायलट के नाम पर मुहर लगा सकता है.


हालांकि इसके विरोध में कई विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और कहा कि उन्हें बतौर सीएम पायलट, मंजूर नहीं है. उनका तर्क था कि साल 2020 में पायलट, कथित तौर पर भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर बगावत करने वाले थे. इतना ही नहीं विधायकों ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पर्यवेक्षक के तौर पर जयपुर गए अजय माकन पर भी गंभीर आरोप लगाए.


इन सबके बीच एक ओर जहां गहलोत के अध्यक्ष बनने की संभावना कम हो गई है तो वहीं कांग्रेस की अंतरिम सोनिया गांधी ने पर्यवेक्षकों से लिखित रिपोर्ट मांग ली है. देखा जाए तो राजस्थान कांग्रेस में देश की आजादी के 2 साल बाद ही पहली बार बगावत हो गई थी. उस वक्त के सीएम रहे हीरालाल शास्त्री को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाबर लाल नेहरू और तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का समर्थन मिला था लेकिन जयपुर के कई नेता उन्हें पसंद नहीं करते थे. विवादों की वजह से 21 महीने बाद ही हीरालाल शास्त्री को इस्तीफा देना पड़ा था.


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आइए हम आपको बताते हैं कि कांग्रेस की राजस्थान इकाई में अब तक कितनी बार बगावत हुई और उसकी वजह क्या रही-


पहला - साल 1949 में हीरालाल शास्त्री के खिलाफ


-7 अप्रैल 1949 को राजस्थान के मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री बनाए गए


-उन्हें जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल का समर्थन प्राप्त था


-लेकिन जयपुर लेवल के सभी नेता हीरालाल को पसंद नहीं करते थे


-इसी बीच, कांग्रेस में गुटबाजी हुई और मतभेद होने शुरू हुए


-कुछ ही महीना बीता था कि कांग्रेस 2 गुटों में बंट गई


-विवाद के चलते 21 महीने बादी ही हीरालाल शास्त्री को CM पद से इस्तीफा देना पड़ा


साल 1954 में मोहनलाल सुखाड़िया ने बगावत का झंडा बुलंद किया


-सीएम रहते हुए जयनारायण व्यास पंडित नेहरू के करीबी बन चुके थे


-इसी बीच माणिक्यलाल वर्मा के नेतृत्व में मोहनलाल सुखाड़िया ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया


-नेहरू ने विधायक दल की मीटिंग बुलाने के निर्देश दिए


-विधायक दल की मीटिंग में मोहनलाल सुखाड़िया के पक्ष में बहुमत होने से जयनारायण व्यास को CM की कुर्सी छोड़नी पड़ी


-इस तरह 13 नवंबर 1954 को सुखाड़िया मुख्यमंत्री बने


साल 1998 जब गहलोत पहली बार सीएम बने...


-कांग्रेस के दिग्गज नेता परसराम मदेरणा सीएम पद के दावेदार थे


-ज्यादातर विधायक उनके पक्ष में थे, लेकिन आलाकमान गहलोत को सीएम बनाना चाहता था


-अशोक गहलोत तत्कालीन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे, उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया था


-पीसीसी की बैठक हुई, परसराम मदेरणा ने एक लाइन का प्रस्ताव माइक पर बोलकर पारित कराया “आलाकमान का निर्णय सबको मान्य होगा”।


-मदेरणा के पक्ष में अधिकतम विधायक थे, लेकिन मदेरणा ने सबको बुलाकर सख्ती से कह दिया था विद्रोह का एक शब्द में किसी से नहीं सुनना चाहता हूँ


साल 2008 में ओला और गहलोत समर्थकों में झड़प


-चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला, सीएम पद के सबसे बड़े दावेदार सीपी जोशी थे


-जोशी खुद 1 वोट से चुनाव हार गए और रेस से बाहर हो गए


-इसके बाद केंद्र में मंत्री जाट नेता शीशराम और अशोक गहलोत दावेदार थे


-कांग्रेस के विधायक दल की बैठक से पहले ओला और गहलोत समर्थकों में झड़प शुरु हो गई


-बाद में आलाकमान ने सीपी जोशी को केंद्रीय मंत्री बनाया जबकि ओला को और मंत्रालय दिए गए


साल 2020 में सचिन पायलट का बागी रुख और मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट


-2018 में युवा चेहरे और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया


-कांग्रेस को राज्य में बहुमत मिला, एमपी और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस को बहुमत मिला


-एमपी और छत्तीसगढ़ में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सीएम बनें


-राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष का पत्ता कट गया और फिर से अशोक गहलोत सीएम बनें


-एमपी में सिंधिया की बगावत के बाद सचिन पायलट एक्टिव हुए


-20 से ज्यादा पायलट खेमे के विधायकों ने बगावत कर दी


-सचिन पायलट डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए गए


-बाद में आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद राजस्थान में नेतृत्व संकट टला


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