सचिन पायलट ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ ही पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है. पायलट ने कहा कि राजस्थान में कांग्रेस सरकार के सवा चार साल हो गए हैं, लेकिन वसुंधरा शासन में हुए भ्रष्टाचार पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
वसुंधरा-गहलोत गठजोड़ के खिलाफ पायलट ने जयपुर के शहीद स्मारक पर एक दिन का उपवास भी रखा.
9 अप्रैल को जयपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सचिन पायलट ने कहा कि कांग्रेस की सरकार दोबारा कैसे रिपीट हो, इसके लिए मैंने हाईकमान को कुछ सुझाव दिए थे. इनमें एक सुझाव वसुंधरा सरकार में हुए घोटाले की जांच कराना भी था.
उन्होंने कहा कि वसुंधरा सरकार में 45 हजार करोड़ रुपए का खान घोटाला हुआ. इसे हमने जोर-शोर से उठाया, लेकिन सरकार में आने के बाद कोई कार्रवाई नहीं हुई. इससे पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहा है.
राजस्थान में चुनावी आचार संहिता लगने में अब बमुश्किल 6-7 महीने का वक्त बचा है. ऐसे में अपने ही सरकार के पायलट के इस कदम से हाईकमान सकते में हैं. गहलोत पर पायलट पहले भी हमलावर रहे हैं, लेकिन यह पहली बार है जब गहलोत के साथ उन्होंने वसुंधरा को भी लपेटा है.
पायलट ने गहलोत की घेराबंदी के लिए वसुंधरा का सहारा क्यों लिया है, इसे विस्तार से जानते हैं.
1. वसुंधरा विरोध से चमकी थी सियासत- राजस्थान कांग्रेस में अलग-थलग पड़े सचिन पायलट वसुंधरा का सहारा लेकर एक बार फिर अपनी राजनीति में जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं. 2002 में राजनीति में एंट्री करने वाले सचिन पायलट की सियासत वसुंधरा सरकार के खिलाफ संघर्ष के दौरान चमकी थी.
2004 में 26 साल की उम्र में सचिन दौसा सीट से चुनकर सांसद बने. अगले चुनाव में उन्होंने अजमेर सीट चुनाव और फिर जीते. इस बार केंद्र में उन्हें इनाम मिला और मनमोहन सरकार में मंत्री बनाए गए. 2014 का चुनाव सचिन पायलट अजमेर से हार गए. इसी बीच पार्टी ने राजस्थान कांग्रेस की कमान सौंप दी.
सचिन पायलट ने इस दौरान वसुंधरा सरकार के खिलाफ सड़कों पर खूब संघर्ष किया. वसुंधरा सरकार के खिलाफ रात को भी पायलट बेरोजगारों के साथ सीएम आवास घेरने पहुंच जाते थे. 2018 के चुनाव में कांग्रेस को इसका फायदा मिला और पार्टी सरकार बनाने में सफल रही थी.
अशोक गहलोत पर लगातार हमलावर सचिन पायलट ने फिर से पुरानी स्ट्रैटजी दोहराते दिख रहे हैं. राजस्थान के सियासी गलियारों में पिछले 24 साल से वसुंधरा और अशोक गहलोत के मिलीभगत की चर्चाएं होती रहती है. पायलट ने इस नब्ज को पकड़ने की कोशिश की है.
2. वसुंधरा के गढ़ से अधिकांश विधायक- पूर्वी राजस्थान के 8 जिले दौसा, करौली, भरतपुर, टोंक, जयपुर, अलवर, सवाई माधोपुर और धौलपुर वसुंधरा राजे का गढ़ माना जाता है. इन 8 जिलों में विधानसभा की कुल 58 सीटें हैं. 2013 के चुनाव में बीजेपी ने यहां शानदार परफॉर्मेंस करते हुए 44 सीटें जीती थी.
2018 में सचिन पायलट ने यहां खेल बिगाड़ दिया और बीजेपी को 11 सीटों पर समेट दिया. बीजेपी हाईकमान ने समीक्षा में पाया कि अगर पूर्वी राजस्थान में बेहतर परफॉर्मेंस हुआ होता तो सरकार बच जाती. पूर्वी राजस्थान मीणा-गुर्जर, एससी और ओबीसी बहुल इलाका है.
सचिन पायलट खेमे के अधिकांश विधायक पूर्वी राजस्थान के ही हैं. पायलट के वसुंधरा पर अटैक कर इन इलाकों में पकड़ मजबूत रखने की कोशिश में है, जिससे आगामी चुनाव में उनके अधिकांश समर्थक आसानी से जीत दर्ज कर सके.
3. कांग्रेस विधायकों में पैठ बनाने की कोशिश- अशोक गहलोत सरकार के विरोध में कई विधायकों ने सचिन पायलट का समर्थन नहीं किया था, लेकिन वसुंधरा पर कार्रवाई का कइयों ने समर्थन किया है. पायलट वसुंधरा के खिलाफ मोर्चा खोलकर विधायकों का नैतिक सपोर्ट जुटा रहे हैं.
सिविल लाइंस से विधायक और मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि सचिन पायलट के आरोप में दम हैं. हमारा नेता राहुल गांधी केंद्र में अडानी के खिलाफ लड़ रहा है और इस पर केंद्र सरकार को घेरे हुए हैं और हम यहां भ्रष्टाचार में खुद कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं.
खाचरियावास के अलावा भी कई विधायक और मंत्री वसुंधरा मामले में सचिन पायलट के साथ हैं. हालांकि, पायलट ने अकेले यह लड़ाई लड़ने की बात कही है.
4. चुनावों में भ्रष्टाचार रहा है बड़ा मुद्दा- राजनीतिक के बंजर जमीन पर हरियाली लाने के लिए भ्रष्टाचार राजस्थान में अहम मुद्दा रहा है. पिछले 30 सालों से चुनाव में राजस्थान में हर 5 साल पर सरकार बदल जाती है और इसमें भ्रष्टाचार का मुद्दा अहम रहता है.
2013 में अशोक गहलोत लोक कल्याण योजनाओं के सहारे चुनावी मैदान में उतरे थे, लेकिन केंद्र और राज्य की भ्रष्टाचार का मुद्दा भारी पड़ा. 2018 में वसुंधरा राजे की हार में भी भ्रष्टाचार अहम कारक रहा. पायलट वसुंधरा के सहारे इस मुद्दे को उठाकर सियासी जमीन मजबूत करने की कोशिश में जुटे हैं.
5. किस्सा 2020 के बगावत का- सचिन पायलट अपने विधायकों के साथ गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए मानेसर पहुंच गए थे. उस वक्त सरकार गिरने की अटकलें लगाई जा रही थी, लेकिन वसुंधरा राजे की चुप्पी ने गहलोत की सरकार बचा ली.
बीजेपी के 73 में से करीब 40 विधायक वसुंधरा गुट के थे. हाईकमान ने वसुंधरा को कन्फिडेंस में लेना चाहा तो उन्होंने राजस्थान में पायलट के लिए नो एंट्री का बोर्ड लगा दिया. वसुंधरा की चुप्पी से हाईकमान बैकफुट पर आ गई. बाद में पायलट को भी कांग्रेस के पास आना पड़ा.
इस पूरे विवाद को वसुंधरा के घर से भी जोड़ा गया. हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद गहलोत सरकार ने वसुंधरा का बंगला खाली नहीं करवाया.
गहलोत-वसुंधरा दोनों ने चुप्पी साधी
सचिन पायलट के आरोप पर अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे दोनों ने चुप्पी साध ली है. पायलट के आरोप के बाद वसुंधरा राजे ने 3 पोस्ट ट्वीट और करीब 5 पोस्ट रिट्वीट किया है, लेकिन सचिन पायलट के आरोपों का कोई जवाब नहीं दिया है.
अशोक गहलोत 9 अप्रैल से लेकर अब तक करीब 10 पोस्ट किए हैं, लेकिन उन्होंने भी सचिन के आरोपों का कोई जवाब नहीं दिया है. सचिन पायलट ने संदेह जताते हुए कहा था कि राजस्थान के लोग वसुंधरा और गहलोत के बीच चुनाव के वक्त गठजोड़ का मुद्दा बना सकते हैं.
31 महीने से विवाद, सुलझाने में हाईकमान नाकाम
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच पिछले 31 महीने से सियासी टशन जारी है. गहलोत और पायलट के बीच हाईकमान कई बार समझौता कराने की कोशिश कर चुकी है, लेकिन हर बार नाकाम रही है. इसकी 2 वजहें हैं...
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच विवाद सुलझाने में पिछले 2 सालों से हाईकमान नाकाम है. इसकी 2 बड़ी वजहें है.
कांग्रेस सरकार में, लेकिन पायलट के पास विधायक नहीं- सचिन पायलट समर्थकों का कहना है कि राहुल गांधी ने उनसे मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था. सितंबर 2022 में इसकी कोशिश भी हुई थी, लेकिन प्लान फेल हो गया.
इसके पीछे पायलट के पास विधायकों का न होना है. बीएसपी और निर्दलीय को मिलाकर कांग्रेस के पास करीब 120 विधायक है. इनमें सचिन के समर्थन में सिर्फ 20 विधायक है, जिस वजह से हाईकमान के लिए उन्हें सीएम बनाना मुश्किल हो रहा है.
सितंबर 2022 में अशोक गहलोत के समर्थन में 80 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद कांग्रेस हाईकमान ने इस मसले पर मिट्टी डालने का काम शुरू कर दिया.
कमजोर प्रभारी का मनोयन- राजस्थान में गहलोत-पायलट विवाद में सबसे कमजोर कड़ी अभी तक प्रभारी की नियुक्ति ही रही है. अविनाश पांडे, अजय माकन और अब सुखजिंदर रंधावा तीन प्रभारी हुए हैं, लेकिन तीनों का सांगठनिक तजुर्बा अशोक गहलोत से कम ही रहा है.
अशोक कांग्रेस संगठन में नंबर-2 के पद पर रह चुके हैं. साथ ही गांधी परिवार के करीबी भी माने जाते हैं. राजस्थान में भारत जोड़ो यात्रा से पहले अजय माकन ने गहलोत से त्रस्त होकर इस्तीफा दे दिया था.
सचिन पायलट और अशोक गहलोत का विवाद जुलाई 2020 में शुरू हुआ था, उस वक्त इसे सुलझाने के लिए प्रियंका गांधी, अहमद पटेल और केसी वेणुगोपाल की कमेटी बनाई गई थी, लेकिन इस कमेटी का रिपोर्ट भी लागू नहीं हो पाया था.
कांग्रेस में ही रहकर लड़ेंगे पायलट या अलग रास्ता बनाएंगे?
राजस्थान के सियासी गलियारों में इस वक्त सचिन पायलट को लेकर 2 सवाल पूछे जा रहे हैं. 1. सचिन पायलट कांग्रेस में ही रहकर गहलोत के खिलाफ लड़ेंगे? 2. हाईकमान से झटका मिलने के बाद नई पार्टी बनाएंगे?
सचिन पायलट के करीबी सूत्रों ने कांग्रेस छोड़ने के सवाल को खारिज कर दिया है. इसके बाद माना जा रहा है कि पायलट कांग्रेस में ही रहकर गहलोत के खिलाफ मोर्चाबंदी करेंगे.
बताया जा रहा है कि मई के बाद पायलट अपने अभियान को तेज कर सकते हैं. इसकी वजह- चुनाव में बचे 6 महीने से कम का वक्त होगा. मई के बाद पायलट गुट के विधायकों पर सदस्यता जाने का खतरा नहीं रहेगा.
कांग्रेस अगर पायलट पर कार्रवाई करती है, तो राजनीतिक परिदृश्य बदल सकता है. हालांकि, इसकी संभावनाएं अभी कम है.
गहलोत सरकार के खिलाफ कब-कब हमलावर हुए सचिन पायलट?
जून 2020- अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ पहली बार सचिन पायलट ने साल 2022 के नवंबर में बगावत की. पायलट उस वक्त अपने समर्थक विधायकों के साथ जाकर मानेसर के रिजॉर्ट में रूके. हालांकि, गहलोत सरकार बचाने में कामयाब रहे.
नवंबर 2022- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांसवाड़ा के एक कार्यक्रम में जब अशोक गहलोत की तारीफ की तो पायलट ने उसे गुलाम नबी आजाद के मसला से जोड़ दिया.
जनवरी 2023- सचिन पायलट 5 जिलों में जनसभा आयोजित कर सरकार पर निशाना साधा. इस दौरान पेपरलीक का मुद्दा उठाया गया. पायलट ने अशोक गहलोत के जादूगरी पर भी तंज कसा.