राजस्थान: अशोक गहलोत और सचिन पायलट की जंग के बीच आए '10 करोड़ रुपये'
फिनिक्स की तरह सचिन पालट और अशोक गहलोत के बीच की लड़ाई बुझी हुई राख से बाहर आ जाती है. इस बार लड़ाई तगड़ी मानी जा रही है. इसकी वजह गहलोत का एक बयान है.
नौतपा से पहले ही राजस्थान में सियासी तपिश महसूस होने लगी है. कांग्रेस के अंदरूनी झगड़े में इस बार बीजेपी भी कूद पड़ी है. इसकी 2 वजह भी है. पहला तो अशोक गहलोत का मोदी कैबिनेट के तीन मंत्रियों पर सरकार गिराने और पैसा बांटने का आरोप लगाना.
दूसरा कारण वसुंधरा राजे की भूमिका है. सियासी गलियारों की चर्चा को अशोक गहलोत ने जुबान दे दी. साथ ही सरकार बचाने के लिए वसुंधरा को धन्यवाद भी. गहलोत के दावे पर एक ओर सवाल उठ रहे हैं, तो दूसरी तरफ सचिन और वसुंधरा ने पलटवार किया है.
सचिन पायलट ने तो गहलोत के दावे को सिरे से खारिज कर दिया है. सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच करीब 3 सालों से अदावत चल रही है. यह अदावत सत्ता और वर्चस्व की है. कांग्रेस हाईकमान हर बार आग में पानी डालकर इस अदावत को राख बना देता है.
हालांकि, फिनिक्स की तरह सचिन-अशोक के बीच की लड़ाई बुझी हुई राख से बाहर आ जाती है. इस बार लड़ाई तगड़ी मानी जा रही है. इसकी वजह गहलोत का एक बयान है. जानकारों का कहना है कि पायलट-गहलोत के सियासी लड़ाई से कांग्रेस का नुकसान होना तय है.
अशोक गहलोत ने क्या कह दिया?
धौलपुर में एक कार्यक्रम के दौरान अशोक गहलोत ने कई पुराने पत्ते खोल दिए. गहलोत ने 2020 की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि उस वक्त वसुंधरा राजे, कैलाश मेघवाल और शोभारानी ने विरोध नहीं किया होता, तो मेरी सरकार बीजेपी गिरा देती.
कैलाश मेघवाल विधानसभा के पूर्व स्पीकर हैं और शोभारानी कुशवाह विधायक. कुशवाहा 2022 के चुनाव में क्रॉस वोटिंग कर सुर्खियों में आई थीं.
गहलोत ने आगे कहा कि राजस्थान में पैसों के बल पर सरकार गिराने की परंपरा नहीं रही है. मैं जब कांग्रेस अध्यक्ष था, तो उस वक्त भैरोंसिंह शेखावत की सरकार गिराने की भाजपा वाले कोशिश कर थे. मैंने उनका समर्थन नहीं किया.
गहलोत ने एक अन्य दावे में कहा अमित शाह, धर्मेंद्र प्रधान और गजेंद्र सिंह शेखावत ने विधायकों को पैसे बंटवा दिए. सभी विधायकों को 10-10 करोड़ रुपये मिले. हमने सभी विधायकों से कहा है कि उसके पैसे वापस कर दें. अगर किसी ने पैसे खर्च कर दिए हैं, तो उसे मैं दे दूंगा या कांग्रेस हाईकमान से दिलवा दूंगा.
गहलोत के दावे का आधार क्या?
पहले बात 2020 की, सचिन पायलट के नेतृत्व में 20 विधायकों ने अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए हरियाणा के मानेसर पहुंच गए. यहां विधायकों का फोन स्विच ऑफ करा लिया गया. हरियाणा पुलिस ने सभी विधायकों को कड़ी सुरक्षा दी.
गहलोत गुट का कहना है कि ऑपरेशन लोटस के लिए यह बगावत कराई गई थी. इस दौरान केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का एक कथित ऑडियो वायरल हुआ था. इसकी जांच आर्थिक अपराध शाखा (एसीबी) को सौंपी गई थी.
अब बात 1996 की है. तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत हार्ट सर्जरी के लिए अमेरिका गए थे. उस वक्त बीजेपी के कुछ विधायक भंवरलाल शर्मा के साथ मिलकर सरकार गिराने की साजिश में शामिल थे.
हालांकि, गहलोत के इनकार के बाद यह मिशन कामयाब नहीं हो पाया. 1998 के चुनाव में कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई और गहलोत मुख्यमंत्री बनाए गए.
गहलोत के दावे में कितना दम, पहले कानूनी एंगल
साल 2020 में कांग्रेस के तत्कालीन विधायक भंवरलाल शर्मा और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच एक कथित ऑडयो आने के बाद एसीबी की जांच बैठाई गई थी. एसीबी ने उस वक्त सचिन पायलट और अशोक गहलोत को बयान देने के लिए बुलाया था.
दो निर्दलीय विधायकों पर केस भी दर्ज हुआ, लेकिन 3 साल बीत जाने के बाद भी एसीबी इस मामले के तह तक नहीं पहुंच पाई है. राजस्थान में एसीबी सीधे अशोक गहलोत के नियंत्रण में है.
भंवरलाल शर्मा की अब मौत भी हो चुकी है. शेखावत ने ऑडियो टेप को लेकर दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज करा रखी है. वहीं कथित-लेनदेन का मामला भी ठप्प पड़ा है.
गहलोत के दावे पर मानेसर गए कई विधायकों ने मीडिया से बात की है. विधायकों का कहना है कि मुझे तो 10 करोड़ रुपए नहीं मिले हैं, मुख्यमंत्री को ही नाम बताना चाहिए. नाम को लेकर गहलोत और एसीबी दोनों खामोश हैं.
राजस्थान में अब चुनाव के सिर्फ 6 महीने बचे हैं. 4 महीने बाद आचार संहिता भी लग जाएगा, लेकिन कानूनी मोर्चे पर इसका हल शायद ही हो. यानी लब्बोलुआब कहा जाए तो यह मसला कानूनी जांच में अब तक जीरो ही साबित हुआ है.
गहलोत के दावे कितना दम, अब सियासी पहलू
1. वसुंधरा ने अशोक गहलोत की सरकार बचाई?- सीधे तौर पर इसका कोई सबूत नहीं है, क्योंकि 2020 में बीजेपी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाई थी. उस वक्त खुद अशोक गहलोत ने अपना विश्वास प्रस्ताव पेश किया था, जिसे बीजेपी ने बायकॉट कर दिया.
फिर अशोक गहलोत ने किस आधार पर दावा किया है? राजनीतिक जानकारों का इसके पीछे 2 मत है.
पहला, सचिन पायलट खेमा जब मानेसर गया, तब बीजेपी के एक गुट ने गहलोत सरकार के अस्थिर होने की बात कही. इसी बीच वसुंधरा राजे ने चुप्पी साध ली. वसुंधरा खेमे के विधायकों ने सरकार गिराने में कोई उत्साह नहीं दिखाया.
इतना ही नहीं, विधायकों से जब गुजरात जाने के लिए कहा तो वसुंधरा गुट के अधिकांश विधायक कोरोना का बहाना करने लगे. इसी बीच अशोक गहलोत नंबर मैनेज करने में सफल रहे. दिल्ली में पायलट से भी बात बन गई.
दूसरा, वसुंधरा राजे ने बीजेपी में सचिन पायलट की संभावित एंट्री का विरोध जताया. वसुंधरा की विरोध की वजह से ही हाईकमान ने इस मामले से खुद को अलग कर लिया और गहलोत की सरकार बच गई.
हालांकि, इस बात की चर्चा न तो किसी बीजेपी नेता ने की और न ही वसुंधरा ने. अब गहलोत के इस दावे को चुनावी एंगल से भी जोड़कर देखा जा रहा है.
2. सरकार गिराने के लिए मानेसर गए थे पायलट?- सचिन पायलट ने इसे सिरे से खारिज किया है. पायलट का कहना है कि जो भी विधायक मानेसर गए थे, वो नेतृत्व परिवर्तन चाहते थे. हम शुरू दिन से ही हाईकमान के संपर्क में थे.
बगावत को देखते हुए उस वक्त कांग्रेस ने अहमद पटेल, प्रियंका गांधी और केसी वेणुगोपाल को पायलट से बात करने की जिम्मेदारी दी थी. सचिन पायलट ने इस कमेटी के सामने 5 मुख्य मांगें रखी थी. इनमें वसुंधरा पर कार्रवाई का मसला भी था.
हाईकमान ने इस मसले पर किसी भी तरह की टिप्पणी उस वक्त नहीं की थी. यानी पायलट गुट को क्लिन चिट दे दिया गया था. हालांकि, गहलोत गुट लगातार इस मामले को उठाता रहा.
गहलोत गुट का कहना है- पायलट की बगावत का जो पैटर्न था, वो ऑपरेशन लोटस से मिलता-जुलता था. बीजेपी ने इसी पैटर्न को अपनाते हुए मध्य प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार गिरा दी थी.
कर्नाटक से लेकर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र तक पहले बागी गुट के विधायकों को रिजॉर्ट में शिफ्ट किया गया था और सरकार के अल्पमत में आते ही अविश्वासमत प्रस्ताव बीजेपी ने पेश कर दिया था.
मानेसर गए 4 विधायक गहलोत कैबिनेट में मंत्री
राजस्थान में अब विधानसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो गया है. ऐसे में गहलोत के दावे के बीच एक फैक्ट जान लीजिए. गहलोत कैबिनेट में अभी मानेसर गए 4 विधायक मंत्री हैं.
इनमें रमेश मीणा, हेमाराम चौधरी, मुरारी लाल मीणा और विश्वेंद्र सिंह का नाम शामिल हैं. कई विधायकों को कांग्रेस कमेटी में भी जिम्मेदारी सौंपी गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि 10-10 करोड़ रुपए लेने वाले विधायकों को अशोक गहलोत ने अपने कैबिनेट में क्यों शामिल कर रखा है?
गहलोत के दांव से किसे फायदा, किसका नुकसान?
वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी के मुताबिक अशोक गहलोत के इस दांव से सबसे अधिक नुकसान वसुंधरा राजे को हो सकती है. राजे से बीजेपी हाईकमान वैसे भी खुश नहीं है और गहलोत के बयान से ये दूरी और अधिक बढ़ेगी.
वसुंधरा अगर अलग-थलग होती है, तो बीजेपी को भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि उसके पास वसुंधरा इतना मजबूत चेहरा नहीं है. वसुंधरा 2 बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रही हैं.
सैनी कहते हैं- गहलोत के इस दांव से कितना फायदा होगा, ये तो सचिन पायलट पर निर्भर करेगा. गहलोत के इस बयान को उनके सब्र टूटने के रूप में भी देख सकते हैं. राजस्थान में चुनाव होना है और पायलट उनके योजनाओं और काम के खिलाफ माहौल बना रहे हैं.
गहलोत के बयान के 36 घंटे बाद ही सचिन पायलट ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया. पायलट ने इस लड़ाई को जनता के बीच ले जाने की बात कही है. पायलट ने अजमेर से जयपुर तक पदयात्रा निकालने की बात कही है.
किस करवट लेगी राजस्थान की राजनीति?
अशोक गहलोत ने बयानों का तीर छोड़कर सब कुछ उलझा दिया है. कांग्रेस हाईकमान कर्नाटक चुनाव के बाद राजस्थान पर बड़ा फैसला कर सकती है. सचिन पायलट और अशोक गहलोत की आगामी भूमिका इससे तय हो जाएगी.
वसुंधरा पर भी बीजेपी जल्द ही कोई बड़ा फैसला कर सकती है. बीजेपी हाईकमान भी वसुंधरा की भूमिका कर्नाटक के बाद तय कर सकती है. भूमिका और पद ही राजस्थान में इन नेताओं के बीच छिड़ी जंग को स्पष्ट कर सकती है.
वसुंधरा राजे को उम्मीद है कि 2012 की तरह इस बार भी हाईकमान उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा कर सकती है. उधर, पायलट को भी राजस्थान में बदलाव की उम्मीद है.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि दोनों नेताओं को अपनी-अपनी पार्टी में उम्मीद के मुताबिक अगर नहीं मिल पाया तो बगावत तेज हो सकती है.