Rajasthan Political Crisis: कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव खत्म होने और मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) के नए अध्यक्ष बनने के बाद सियासी गलियारों में नई चर्चा शुरू हो गई है. चर्चा राजस्थान कांग्रेस में मचे सियासी घमासान की है. चर्चा यह है कि कांग्रेस में सत्ता परिवर्तन के बाद क्या अब राजस्थान की सत्ता भी बदलेगी. क्या अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन रहेंगे या सूबे की सत्ता सचिन पायलट (Sachin Pilot) को सौंपी जाएगी.


दरअसल, राजस्थान में बीते चार साल से कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद अस्थिरता का माहौल है. यहां सीएम की कुर्सी को लेकर अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मतभेद लगातार जारी है. चार साल में कई बार यह मतभेद खुले विरोध के रूप में सामने आया है. ताजा मामला हाल ही कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के दौरान देखने को मिला.


मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़ने वाले थे. लेकिन अध्यक्ष बनने के बाद भी वे मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं छोड़ना चाहते थे. इसे लेकर सूबे में एक बार फिर सियासी घमासान हुआ. पार्टी की बैठकों का दौर चला. वाद-विवाद के बीच गहलोत सरकार के 90 विधायक-मंत्रियों ने विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफे तक सौंप दिए. उस वक्त आलाकमान के दो टूक निर्देश पर सीएम गहलोत ने अध्यक्ष चुनाव लड़ने का फैसला वापस लिया और सीएम बने रहे.


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पार्टी सूत्रों के मुताबिक, राजस्थान में आए दिन होने वाले इस सियासी घमासान से पार्टी आलाकमान परेशान है. ऐसी गतिविधियाें से विपक्ष को बयानबाजी का मौका मिल रहा है और पार्टी की छवि खराब हो रही है. अध्यक्ष चुनाव के दौरान जो घटनाक्रम हुआ वो चिंताजनक था, लेकिन उस वक्त चुनाव करवाना पार्टी की प्राथमिकता थी, इसलिए सभी मौन रहे. अब नए अध्यक्ष आने से चर्चा है कि क्या राजस्थान में पार्टी का विवाद खत्म होगा.


सूबे में सत्ता वापसी बड़ी चुनौती
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी का चुनाव तो आसानी से जीता लिया लेकिन राजस्थान में नेताओं के बीच सुलह करवाना बड़ा मुश्किल होगा. यहां एक तरफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं जिनके पास विधायकों को भारी समर्थन है और दूसरी तरफ सचिन पायलट हैं जिन्हें गांधी परिवार ने मुख्यमंत्री बनाने का आश्वासन दिया था. पार्टी को कोई भी फैसला लेते वक्त यह भी ध्यान रखना होगा कि राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में उनके लिए बड़ी चुनौती यह भी होगी कि यहां सत्ता वापसी कैसे संभव हो. किसी भी नेता को नाराज करना पार्टी के लिए मुसीबत बन सकता है. वैसे भी राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के बीच हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन का लंबा इतिहास रहा है.


पार्टी की स्थिति इधर कुआं-उधर खाई जैसी
वर्तमान में राजस्थान कांग्रेस की स्थिति इधर कुआं-उधर खाई जैसी पेचिदा है. खड़गे यदि गहलोत का साथ देते हुए उन्हें सीएम पद पर बरकरार रखते हैं तो पायलट खेमा नाराज होकर पार्टी छोड़ देगा और शायद भाजपा का दामन थाम ले. भाजपा ने भी अंदरूनी तौर पर इसकी तैयारी कर रखी है. वहीं दूसरी ओर यदि एक साल के लिए पायलट को सीएम बनाया जाए तो यह बात गहलोत कतई स्वीकार नहीं करेंगे. आखिर इस पद पर बने रहने के लिए ही तो उन्होंने पार्टी का राष्ट्रीय पद छोड़ दिया. गहलोत काे हटाने की बात पार्टी इसलिए भी नहीं सोच सकती क्योंकि हाल ही पार्टी के गहलोत समर्थक विधायकों और मंत्रियों ने सामूहिक इस्तीफे सौंप दिए थे. अभी इन इस्तीफों पर भी फैसला होना बाकी है.


सियासी 'जादूगर' हैं गहलोत
सीएम अशोक गहलोत को सियासत का जादूगर कहा जाता है. वे इस बात को भली-भांति समझते हैं कि पार्टी अध्यक्ष का चुनाव होते ही आलाकमान की निगाहें राजस्थान पर टिक जाएंगी. हो सकता है कि पार्टी असंतुष्ट खेमे को खुश करने के लिए एक साल के लिए सीएम पद पर सचिन को बैठा दे. ऐसे में गहलोत ने खड़गे का खुलकर समर्थन किया. उनके पक्ष में बयान दिए. इतना ही नहीं, भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) और अन्य जगहों पर सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की जमकर तारीफ भी की. इतना तक कह दिया कि राजस्थान में गत दिनों हुए घटनाक्रम में यदि मेरी कुर्सी सुरक्षित रही तो वो गांधी परिवार के आशीर्वाद से ही बची है.


सबसे पहले बधाई देने पहुंचे 'बाजीगर' पायलट
सूबे में जादूगर की चर्चा के बाद सचिन पायलट की चर्चा भी 'बाजीगर' के रूप में होने लगी है. लोगों का मानना है कि सचिन बाजी पलटने में माहिर हैं. सचिन भी इस बात की उम्मीद लगाए बैठे थे कि नया अध्यक्ष बनने के बाद उनकी लॉटरी जरूर लगेगी और राजस्थान की राजनीति में उनके अच्छे दिन जरूर आएंगे. शायद यही वजह रही कि खड़गे की जीत होते ही सबसे पहले बधाई देने पहुंच गए. इनके बाद सीएम गहलोत और सूबे के अन्य नेताओं ने खड़गे से मुलाकात कर बधाई दी. अब देखना दिलचस्प होगा कि सियासी मैदान में माहिर मल्लिकार्जुन जादूगर और बाजीगर के बीच जारी सत्ता के खेल का अंत कर क्या फैसला सुनाते हैं.