Rajasthan Politics: भारतीय जनता पार्टी राजस्थान के बूथ अध्यक्ष संकल्प महासम्मेलन का कार्यक्रम, जोधपुर के रावण का चबूतरा मैदान में आयोजित किया गया. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सहित कई केंद्रीय मंत्री, विधायक व हजारों की संख्या में बूथ कार्यकर्ता की मौजूदगी में मंच से संबोधन करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पूर्व केंद्रीय मंत्री व पार्टी के कद्दावर नेता दिवंगत जसवंत सिंह जसोल को याद किया. राजे ने खुले मंच से इस तरह जसवंत सिंह जसोल को याद कर सभी को चौंका दिया.


जसोल समर्थकों को साधने की कोशिश


बीजेपी, राजस्थान के विधानसभा चुनाव 2023 व लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों में जुट गई हैं. इस बीच वसुंधरा राजे ने दिवंगत जसवंत सिंह जसोल को याद कर दोनों ही परिवारों में चल रही दुश्मनी को दोस्ती में बदलने का चुनावी मास्टरस्ट्रोक चल दिया हैं क्योकि मारवाड़ में जसवंत सिंह जसोल के चाहने वाले बड़ी संख्या में हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि वसुंधरा ने उन लोगों को साधने के लिए अपनी और से शुरुआत कर दी हैं. अब वसुंधरा की इस नई पहल को लोग टकटकी लगा देख रहे हैं कि आने वाले दिनों में इसके क्या नतीजे निकलेंगे.


राजे व जसोल के बीच था 36 का आंकड़ा


राजनीतिक जानकार बताते हैं कि राजे व जसोल परिवारों के बीच 36 का आंकड़ा रहा था. वसुंधरा राजे को प्रदेश में पहली बार मुख्यमंत्री बनवाने में पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह जसोल का अहम रोल रहा था. भारतीय जनता पार्टी की संस्थापक सदस्य और वरिष्ठ नेता को उनकी पार्टी से अपमानजनक विदाई में वसुंधरा ने चुनावों के दौरान कोई कसर नहीं छोड़ी थी, ऐसे में अचानक वसुंधरा राजे के जसवंत सिंह जसोल योगदान को याद करने के कई मायने निकाले जा रहे हैं.


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2003 में राजे को बनाया था सीएम


साल 2003 में राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के वरिष्ठ नेता भैरोसिंह शेखावत उपराष्ट्रपति बन चुके थे. ऐसे में पार्टी नए नेता की तलाश में थी. प्रदेश में पार्टी के कई वरिष्ठ नेता कतार में थे, लेकिन जसवंत ने राजमाता के अहसानों को याद रखा और तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी को इस बात के लिए तैयार किया कि वसुंधरा राजे जैसी तेज-तर्रार युवा नेता पर दांव खेला जाए, जबकि शेखावत इसके लिए राजी नहीं थे. आखिरकार जसवंत ने सभी को साध लिया और वसुंधरा राजे के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया और पार्टी जोरदार जीत हासिल की.


बीजेपी से हो गए थे बागी 


जसवंत सिंह जसोल अपने गृह नगर बाड़मेर से अपना अंतिम चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से जसवंत सिंह जसोल को टिकट नहीं मिला, वसुंधरा राजे ने यह टिकट कटवाकर कांग्रेस के बागी कर्नल सोनाराम को दिला दिया और इस तरह से जसोल की राजनीति का पटाक्षेप ही कर दिया. जसोल ने बीजेपी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा और अंतिम चुनाव हार गए. वे इससे इतने आहत हुए की जसोल सहित दोनो परिवारों के रिश्ते भी कोमा में चले गए. दोनों परिवारों के बीच राजनीतिक अदावत इतनी बढ़ गई कि जसवंत के बेटे मानवेन्द्र 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का दामन थाम लिया और वसुंधरा राजे के गढ़ झालावाड़ में उनके खिलाफ जा खड़े हुए.


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