Rajasthan Politics: राजस्थान में हुए पिछले तीन चुनावों में कई राजनीतिक गढ़ बने और इस बार के उपचुनाव में वो ढह गए है. इसके साथ ही तीन नेताओं के लिए संकट की राह दिख रही है. ये वो तीन नेता हैं जो अपने दम पर चुनावी समीकरण में प्रभाव डालते हैं. इसके साथ ही उन्हें बार हार का सामना करना पड़ा. 


वहीं, कुछ सीटों पर आंच भी आई है, जहां से हार और जीत की लकीर खिंच गई है. सूत्रों का कहना है कि अब जो दिग्गज नेता अकेले चुनाव मैदान में जाते थे अब वो किसी न किसी दल से संबंध रखने की कोशिश में हैं. अब सभी के तेवर में बदलाव है. पंचायत और निकाय चुनाव में गठबंधन की झलक दिख सकती है. एक नई राह की तैयारी चल रही है.


ये तीन बड़े गढ़ ढह गए?
झुंझुनूं, खींवसर और चौरासी विधान सभा सीट पर बीजेपी ने कड़ी टक्कर दी है, जिनमें से दो पर बीजेपी को जीत भी मिली है. वहीं, खींवसर की आरएलपी को बड़ी हार मिली है. दरअसल, हनुमान बेनीवाल कई चुनाव मिलकर लड़े. दोनों लोकसभा चुनाव और पिछला विधानसभा चुनाव गठबंधन में लड़ा है. इस बार अकेले चुनाव लड़ने से आरएलपी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है. यह एक बड़ा गढ़ ढह गया है. 


वहीं, झुंझुनूं सिर्फ ओला परिवार के लिए जाना जाता है. मगर, इस बार यहां पर बीजेपी ने जीत का परचम लहराया है. अब ओला परिवार भी सहयोगी दल खोज रहा है. जिसके लिए झुंझनूं में ओला परिवार नई राह पर जा सकता है. चौरासी विधानसभा सीट पर भारत आदिवासी पार्टी को जीत भले ही मिली हो लेकिन जीत का अंतर कम हुआ है. जिसे लेकर मंथन जारी है. लोकसभा चुनाव में बाप ने कांग्रेस के सहयोग से बड़ी जीत दर्ज की थी. यहां पर अब नई राह दिख सकती है.


यहां बीजेपी-कांग्रेस को करना होगा विचार
सलूंबर और दौसा पर बीजेपी और कांग्रेस के लिए बड़ा संकेत है. यहां पर इन दोनों ही दलों को बहुत कम वोटों के अंतर से जीत मिली है. सलूंबर सीट पर बीजेपी को जहां बड़े वोटों के अंतर से जीत मिलती थी, वहीं अब बहुत कम वोटों के अंतर जीत मिली. दौसा में जहां पर कांग्रेस को बड़े वोटों के अंतर से जीत मिलती थी, वहीं इस बार बहुत कम वोटों के अंतर से जीत मिली है.


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