Rajasthan News: बूंदी जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित उमर गांव है. जहां 400 से अधिक जवान देश सेवा में अपना योगदान देने के बाद रिटायर्ड हो चुके हैं. वर्तमान में उमर गांव के करीब 100 सैनिक देश की सरहद तैनात हैं. वहीं रिटायर्ड फौजियों में आज भी देश सेवा करने का जज्बा है. वह कहते हैं कि अभी भी दुश्मनों के दांत खट्टे करने में उनके हौसले कम नहीं हुए. यदि सरकार अभी भी उन्हें देश सेवा करने का मौका दें तो वह पीछे नहीं हटेंगे. इस गांव में हर घर से सैनिक निकले हैं और अभी भी युवा सैनिक बनने के लिए तैयारी कर रहे हैं. रिटायर हो चुके फौजी उन्हें ट्रेनिंग देते हैं और उन में जोश पैदा करते हैं. यह फौजी प्रथम, द्वितीय विश्व युद्ध, कारगिल की लड़ाई में शामिल रह चुके हैं. कुछ तो मातृभूमि की रक्षा करते शहीद भी ही गए. 


12 कैप्टन, 15 सूबेदार, 8 नायब सूबेदार
रिटायर्ड सैनिक हरचंद मीणा ने बताया कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गांव के करीब 25 सैनिकों ने अलग-अलग जगहों पर दुश्मनों से लोहा लिया. गांव से भारतीय सेना में 12 कैप्टन, 15 सूबेदार, 8 नायब सूबेदार सहित हवलदार और कई सिपाही सीमा के प्रहरी रह चुकेहैं. उमर गांव में प्रत्येक घर से तीन से चार लोग सेना में है. फौज से रिटायर्ड होकर आए लोगों के सुनाए किस्से आज भी रोंगटे खड़े कर देते हैं. इनकी सुनाई सच्चाई लोगों को सिर्फ फिल्मों में दिखती है. सेना से रिटायर्ड कैप्टन देवीसिंह मीणा, कैप्टन पांचूलाल मीणा, सूबेदार कजोड़लाल धोबी, नायक शिवजीलाल मीणा, हवलदार हरचंद मीणा, प्रभुलाल खज के मुंह से शौर्य की कहानी सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं.ले कम नहीं हुए।  


प्रथम विश्व युद्ध की जंग लड़ी
रिटायर्ड फौजी हरचंद ने बताया कि उमर के सैनिक रुगा ने प्रथम विश्वयुद्ध में जंग लड़ी. उनके बेटे श्रीलाल मीणा फौज में गार्ड कमांडर रहते हुए द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा. तीसरी पीढ़ी में कैप्टन देवी सिंह मीणा जिन्होंने 1971 के युद्ध में भाग लिया. चौथी पीढ़ी में देवी सिंह मीणा का पुत्र अर्जुन मीणा जो 14 साल से पाक बॉर्डर पर हवलदार बनकर तैनात हैं. इसी तरह छोगा सिंह ने प्रथम विश्वयुद्ध लड़ा. इसके बाद बेटा हरनाथ मीणा फौज में भर्ती हुआ. इसके बाद हरनाथ का बेटा जगदेव सिंह सैनिक बना जो वर्ष 2000 में एमपी में शहीद हो गए. 


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मोबाइल कैंटीन बंद सामान लेने कोटा जाते हैं
रिटायर सैनिक प्रभु लाल खज ने बताया कि गांव में पहले मोबाइल कैंटीन वैन आती थी जिसमें सभी प्रकार के सामान हम खरीद लिया करते थे. हमें रियायती दर पर सामान खरीदने को मिल जाते थे. कुछ समय से वह सेवा बंद कर दी गई है. हमें यह कहा जाता है कि कोटा कैंटीन से सामान खरीद लीजिए. हम अब वहां किराया लगाकर सामान खरीदने जाते हैं. उन्होंने बताया कि कुछ दिनों पहले कोटा के आर्मी कमांडेड ने इस गांव को गोद लिया था उसके बाद से आकर देखा नहीं सैनिको की मांगो पर शासन, प्रशासन विचार करे.


जमीन देने की मांग
रिटायर्ड सैनिक हर चंद मीणा बताते हैं कि हमें जमीन आवंटित करने के लिए भूमि खुद ही देखनी पड़ती है. बूंदी जिले में बहुत सारी जमीन है लेकिन हमें आज दिन तक जमीन आवंटित नहीं हो पाई है. अगर जमीन दी भी जाती है तो वह रेगिस्तान इलाके में आवंटित कर दी जाती है जो हमारे इलाके से काफी दूर है. हमने सैनिकों की समस्याओं के लिए गौरव सैनिक संगठन चलाया हुआ है. हम किराए की जगह लेकर भूतपूर्व सैनिक मीटिंग करते हैं. हमारी सरकार से मांग है कि हमारे संगठन को कार्यालय के लिए मुफ्त जमीन दी जाए. जबकि पूरे गांव में मौजूद सैनिकों के परिवार की हमारे द्वारा पड़ताल में सामने आया कि सभी प्रकार की सुविधाएं मिल रही है. वहीं शहीद हुए परिवार को सरकारी नौकरी व जमीन भी आवंटित हो चुकी है. 





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