Sheel ki Dungri Temple: जयपुर से चाकसू की दूरी लगभग 40 किमी है. इसी चाकसू (chaksu) में शील डूंगरी (Sheel ki Dungri ) पर स्थित शीतला माता का मंदिर ( Sheetla Mata temple) है. इस मंदिर की खास बात ये है कि इसे राजाओं ने बनवाया था. यह मंदिर लगभग 500 साल पुराना है. यहां पर शीतला अष्टमी पर पूरे दिन हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है.
सभी जुटते शीतला माता के प्रांगण में
शीतला सप्तमी की रात को ही यहां 12 बजे रात से ही भक्तों की भीड़ उमड़ने लगती है. उसके दूसरे शाम पांच बजे तक भक्तों की भीड़ लगी रहती है. रेवा शंकर बताते हैं कि इस दिन सबसे ख़ास बात ये होती है कि यहां सभी समाज के लोग मिलते हैं. यह सभी समाजों की धर्मशाला भी है. यहां पर मेल-मिलाप किया जाता है. यहां पर टोंक के निबाई, दौसा के लालसोट, फागी और सांगानेर से बड़ी संख्या में आते हैं. यहां पर बच्चों के मुंडन संस्कार भी होते हैं. मंदिर में सुबह दर्शन करने पहुंचे रामेश्वर का कहना है कि यहां पर सामाजिक बुराइयों पर चर्चा होती है. इसके बाद मेल-मिलाफ पर बात बनती है.
राजा माधो सिंह ने बनवाया था शील मंदिर
मंदिर में लगे पुराने शिलालेखों के मुताबिक जयपुर के चाकसू कस्बे में शील डूंगरी माता मंदिर बेहद पुराना है. बताया जाता है कि शीतला के मंदिर का निर्माण जयपुर के महाराजा माधो सिंह ने करवाया था. मंदिर में मौजूद शिलालेखों के मुताबिक मंदिर करीब 500 साल पुराना है. वहां पर लगे शिलालेख में अंकित प्रमाणों के मुताबिक तत्कालीन जयपुर नरेश माधो सिंह के पुत्र गंगा सिंह और गोपाल सिंह को चेचक रोग हो गया था. इसके बाद वे शीतला माता की कृपा से रोग मुक्त हो गए थे. यहां की मान्यता है कि चेचक होने पर यहां बड़ी सांख्य में लोग आते हैं.
लम्पी बीमारी के दौरान मंदिर बना सहारा
पिछले दिनों गायों में लम्पी त्वचा रोग ( गांठदार त्वचा रोग ) के दौरान यह मंदिर लाखों लोगों के लिए सहारा बन गया था. यहां पर बड़ी संख्या में प्रदेश के अलग-अलग जिलों से लोग आये थे. लोग बताते हैं कि इस दौरान लोगों ने दूध की रबड़ी बनाकर मंदिर में शीतला माँ को चढ़ाया. चेचक से राहत पाने के लिए यहां पर बड़ी भीड़ होती है.
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