Siyasi Scan: राजस्थान की सियासत में जोधपुर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) ने तीन बार सत्ता प्राप्त की है. एक ही विधानसभा सीट सरदारपुरा (Sardarpura Assembly Seat) से चुनाव जीतकर वो तीनों बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं. मुख्यमंत्री के रूप अशोक गहलोत ने प्रदेश के साथ-साथ अपने गृह जिले जोधपुर को भी बहुत महत्व दिया. कई विकास कार्य भी करवाए हैं.इसके कारण आज देश-दनिया में जोधपुर की पहचान एजुकेशन हब के साथ न्यायिक नगरी की भी बनी है.राजस्थान में पिछले कई सालों से पांच साल बीजेपी (BJP) राज करती है तो अगले पांच साल कांग्रेस (Congress) राज करती हैं. यह परंपरा पिछले कई सालों से चली आ रही है.
अशोक गहलोत पहली बार कब मुख्यमंत्री बने
अशोक गहलोत पहली बार 1999 में मुख्यमंत्री बने थे. उनका कार्यकाल 1999 से 2003 तक रहा. इस दौरान प्रदेश में सूखा और अकाल पड़ा था.वैसे में मुख्यमंत्री गहलोत ने प्रदेश के हर परिवार को सरकारी खजाने से अनाज उपलब्ध करवाया था. इस कार्यकाल में अधिवक्ताओं की हड़ताल और लाठीचार्ज हुआ था. गहलोत सरकार ने अधिवक्ताओं को बिना कुछ दिए ही हड़ताल समाप्त करवाई थी. इसके बाद सरकारी कर्मचारियों की हड़ताल भी बहुत लंबी चली थी. उस दौरान भी गहलोत सरकार ने सरकारी कर्मचारी को बिना कुछ दिए ही हड़ताल खत्म करवाई थी. इसके बाद सरकारी कर्मचारियों की भारी नाराजगी की वजह से कांग्रेस अगले चुनाव में हार गई थी. बीजेपी ने चुनाव जीतकर सत्ता संभाली थी.
भंवरी देवी का भंवर जाल
अशोक गहलोत 2008 में दूसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे. उनका दूसरा कार्यकाल 2013 तक था. इस दौरान मुख्यमंत्री पद को लेकर मदेरणा परिवार और गहलोत के बीच खींचतान हुई. गहलोत आलाकमान के दखल से मुख्यमंत्री बने थे. गहलोत के दूसरे कार्यकाल में भंवरी देवी अपहरण,हत्या और सीडी कांड मामला सामने आया. इससे कांग्रेस सरकार की हर तरफ किरकिरी हुई. भंवरी देवी अपहरण हत्याकांड की सीबीआई जांच में कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री महिपाल मदेरणा और विधायक बाबू मलखान सिंह का नाम इस अपहरण-हत्याकांड के मुख्य साजिशकर्ता के रूप में सामने आया. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हालात संभालते हुए पूरे पांच साल सरकार चलाई. इसके बाद हुए चुनाव के बाद एक बार फिर बीजेपी सत्ता में आई.
तीसरे कार्यकाल में सीएम कुर्सी की खींचतान
अशोक गहलोत का तीसरा और मौजूदा कार्यकाल 2018 से शुरू हुआ. यह कार्यकाल भी गहलोत के लिए बड़ी चुनौतियों से भरा रहा. विधानसभा चुनाव के बाद ही गहलोत और तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान हुई. साल 2020 में तो सचिन पायलट ने अपने साथी विधायकों के साथ खुलकर बगावत कर दी. इससे गहलोत सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे. सीएम अशोक गहलोत ने बड़ी कुशलता और राजनीतिक कौशल का परिचय देते हुए इस संकट से पार पाया. मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर दोनों नेताओं के बीच शुरू हुई कलह आज भी जारी है. हालत यहां तक पहुंच गए कि गहलोत ने पायलट को निकम्मा, नाकारा और गद्दार तक कह डाला.
देश-दुनिया में जब कोरोना वायरस का संक्रमण कहर बरपा रहा था. पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया गया था. ऐसे में राजस्थान गहलोत के नेतृत्व में कोरोना से लड़ने की व्यवस्थाओं को लेकर एक मॉडल के रूप में उभरा.
सचिन पायलट के खिलाफ मुकदमा
मुख्यमंत्री पद की इसी लड़ाई में गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा ने एक ऑडियो के आधार पर एसओजी में मामला दर्ज करवाया. इसमें सचिन पायलट और बीजेपी के केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पर सरकार गिराने के षड्यंत्र करने का आरोप लगाया गया है. कांग्रेस आलाकमान के दिल्ली से दखल के बाद पायलट ने अपने पांव पीछे खींचे. पिछले साल सितंबर में सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने के आसार नजर आ रहे थे. लेकिन गहलोत गुट के विधायकों की बगावत ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया. मुख्यमंत्री पद का यह झगड़ा अभी खत्म नहीं हुआ है.
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