Udaipur Division News: उदयपुर संभाग जितना अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है उतनी ही भयावह यहां की अन्य स्थितियां है. यहां आज भी लोग खतरनाक तांत्रिकों या यहां की भाषा में कहे भोपों के चक्कर में रहते हैं. इसका नतीजा है कि लोग मौतें और हत्याओं के शिकार होते हैं. यहां आदिवासी क्षेत्र में आज भी इलाकों में कोई बीमार हो जाता है या घर में कोई परेशानी आती है तो वह इन्हीं भोपों के पास जाते हैं. इसी कारण से कई लोग बेमौत मारे जाते हैं. हाल ही की दो बड़ी घटनाएं इसका उदाहरण है. यहां युवक-युवती का ब्रूटल मर्डर और एक ही परिवार के 6 लोगों की मौत हुई. जानकर इसके पीछे एक ही कारण मानते हैं कि लोगों का जागरूकता नहीं होना, जबकि ऐसा नहीं है कि इस क्षेत्र में चिकित्सा सेवा की कमी है.
90% केस भोपों से पीड़ित
उदयपुर संभाग के सबसे बड़े महाराणा भूपाल अस्पताल के मनोरोग चिकित्सा विभाग के हेड डॉ सुशील खेराडा ने बताया कि उदयपुर के आदिवासी क्षेत्र की यह सबसे बड़ी समस्या है. आज भी मेरे पास अगर 100 केस आ रहे हैं तो उनमें 90 केस ऐसे है जो भोपों से पीड़ित होकर आते हैं. ऐसी कंडीशन में आते हैं कि उनका इलाज करना मुश्किल रहता है फिर भी उन्हें ठीक करते हैं. उन्होंने आगे बताया कि शारीरिक बीमारी के लिए भले ही डॉक्टर के पास जाते हैं लेकिन मानसिक बीमारी के लिए वह भोपों के पास ही जाते हैं. इनकी मानसिकता रहती है कि जो हो रहा है वह देवी-देवताओं का असर है. ऐसे में इन आदिवासी लोगों को भोपे वाले अपने जाल में फंसा देते हैं. उन्होंने बताया कि आज ही एक ऐसा केस आया जिसमें परिवार में बीमारी के कारण देवरों पर चले गए जहां स्थिति नहीं संभली और ज्यादा बिगड़ गई. ऐसे सैकड़ों केस सामने आते हैं.
इसे दूर करने उपाय
उनका कहना है कि यह सब कम शिक्षा से अंधविश्वास के कारण होता है. यह समस्या खत्म भी हो सकती है, लेकिन सरकारी तंत्र को आगे आना होगा. गांव के सरपंच, वार्ड पंच सहित अन्य जनप्रतिनिधि होते हैं, उन्हें पता होता है कि कहां क्या हो रहा है? ऐसे में उनको साथ लेकर एक मुहिम चलानी चाहिए जिसमें जो भोपे इस प्रकार की गतिविधियां कर रहे हैं उन्हें बन्द करवाना चाहिए और यह रुक भी सकता है. उन्होंने कहा कि दो बार तो ऐसा हुआ कि दो भोपे खुद अपना इलाज करवाने मेरे पास आए जो अब ठीक हैं और काम करते हैं. यही नहीं दूसरे भोपों को भी भेजते हैं. यह बदलाव हो सकता है बस कदम उठाना जरूरी है.
ऐसी भयावह घटनाएं हो चुकी है
8 माह पहले राजसमंद जिले के खमनोर में 7 साल के बच्चे के आंख में फुंसी हुई. परिवार वाले उसे मेडिकल स्टोर से दवा लाकर देते रहे. दो साल तक ऐसा ही चलता रहा. दर्द बढ़ा तो 6 महीने पहले पास के ही गांव गोड़िन में एक भोपे के पास ले गए. 4 महीने तक उसे तांत्रिक ने अपने पास रखा तब तक उसकी आंख दो इंच बाहर आ गई. बाद में हॉस्पिटल ले गए तो आंख का कैंसर निकला और फिर ऑपरेशन कर आंख बाहर निकालनी पड़ी. हाल ही में उदयपुर के गोगुन्दा तहसील में तांत्रिक द्वारा युवक-युवती की हत्या और इसी तहसील में पति ने पत्नी और 54 बच्चों की हत्या कर खुद आत्महत्या की. ऐसे कई घटनाएं हो चुकी है.