Rajasthan: जानिए कहां मिला 4000 साल पुराना आहाड़ गांव, क्या है इसकी खासियत?
पुरातत्व विभाग द्वारा वर्ष 1951 से हुई खुदाई में गांव की कई सभ्यताएं सामने आईं, जो अब उसी जगह बने म्यूजियम में रखी हैं. यह म्यूजियम शहर के राणा प्रताप स्टेशन से मात्र एक किलोमीटर दूर स्थित है.
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Udaipur News: उदयपुर लेकसिटी वर्षों से अपनी खूबसूरती के लिए विश्व प्रसिद्ध है, लेकिन यहां की एक खासियत भी है, जो है उदयपुर शहर के बीच बसा 4000 साल पुराना आहाड़ गांव. यहां लोग तांबे और मिट्टी के बड़े से छोटे बर्तन बनाते थे. इसलिए इसे ताम्रपाषाण युग भी कहा जाता है. यही नहीं जब हड़प्पा संकृति चरम पर थी, तब यहां आहाड़ का उदय हुआ. जिससे हड़प्पा के बाद यहां के ही लोग पक्के मकान बनाना जानते थे.
बता दें कि पुरातत्व विभाग द्वारा वर्ष 1951 से हुई खुदाई में गांव की कई सभ्यताएं सामने आईं, जो अब उसी जगह बने म्यूजियम में रखी हैं. यह म्यूजियम शहर के राणा प्रताप स्टेशन से मात्र एक किलोमीटर दूर स्थित है. यहां पर्यटक आते जरूर हैं लेकिन काफी कम, क्योंकि प्रचार-प्रसार कम होने के कारण इसके महत्व के बारे में किसी को ज्यादा जानकारी नहीं है.
1961 में इसे दिया गया आहाड़ नाम
पुरातत्व विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार आहाड़ संस्कृति अरावली की उपत्यकाओं में 5200 से 3200 वर्ष पहले विकसित हुई थी. वें इस भू-भाग के पहले कृषक थे. आहाड़ संस्कृति की खोज वर्ष 1951-52 के मध्य हुई, जब अक्षय कीर्ति व्यास ने यहां उत्खनन शुरू किया. फिर 1954-55 में पुरातत्व और संग्रहालय राजस्थान के डॉ रत्न चंद्र अग्रवाल ने किया. 1961 में इसे आहाड़ नाम दिया गया.
आहाड़ संस्कृति की पहचान
आहाड़ संस्कृति की पहचान विशिष्ट मृदभांड, चौकोर और आयताकार मकान, लघु अस्त्र, तांबे के औजार, मृणमूर्ति, विभिन्न प्रकार के मणकों से पहचान होती है. हड़प्पा संस्कृति के बाहर सिर्फ आहाड़ संस्कृति के लोग ही पक्के मकान और दीवार बनाना जानते थे. साथ ही यहां के लोग सफेद रंग के चित्रित काले और लाल रंग, चमकीले, टेन पॉलिसी युक्त मिट्टी के बर्तन बनाने में माहिर थे.
खुदाई में यह मिला
आहाड़ की खुदाई में ठप्पे, बेलों की मृण मूर्तियां, मिट्टी और अर्धकिमती पत्थरों के मोती, तांबे की वस्तुएं (कुल्हाड़ी, चाकू, चूड़ियां, तीर, छेनी), लघु अस्त्र, सिलबट्टे आदि मिले. खुदाई में यह भी सामने आया कि यह गांव कई बार बसे और कई बार उजड़े. इसी जगह देवी माताओं की प्रतिमाएं, जैन तीर्थंकर की मूर्तियां मिलीं. आहाड़ को देख एक वर्गीकृत समाज और व्यापारिक गतिविधियों की जानकारी होती है.
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