(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Ghata Wala Mata Temple: मां की नाभी से निकले मधुमक्खियों के झुंड ने मुगलों को खदेड़ा था, जानें घाटा वाला माता के मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
राजस्थान का मेवाड़ जो शौर्य और वीरता के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यहां महाराणा प्रताप जैसे वीर योद्धा हुए जिन्होंने मुगलों को धूल चटाई. आइये जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा और मान्यताएं.
Rajasthan news: मेवाड़ की चित्तौड़गढ़ के बाद बनी राजधानी उदयपुर के रियासत काल के पूर्वी द्वार और वर्तमान में देबारी पंचायत चित्तौड़गढ़ हाइवे पर स्थित है घाटा वाला माता जी का मंदिर. घाटा वाला चामुंडा माता की मान्यता है कि देवी मां ने उदयपुर के पूर्वी द्वार की दुश्मनों से हमेशा रक्षा की. अभी इस मंदिर में मेवाड़ सहित अन्य कई जिलों से दर्शनार्थी आते हैं और मां के दर्शन करते हैं. मंदिर का जीर्णोद्धार भी होकर आगामी समय में भव्य रूप ले लेगा.
क्या है मान्यता जानिए
देबारी ग्राम पंचायत के सरपंच चंदन सिंह देवड़ा ने बताया कि घाटा वाला माता जी का मंदिर हाइवे के नजदीक घाटे पर विराजमान हैं. मेवाड़ में चित्तौड़गढ़ के बाद उदयपुर को मेवाड़ की राजधानी बनाया गया तो पूर्वी द्वार माताजी के मंदिर से 300 मीटर की दूरी पर रखा. इस पूर्वी द्वार के सुरक्षा का जिम्मा देवड़ा सरदारों के हाथ में था. जब मुगलों का आक्रमण हुआ तो सभी योद्धाओं ने देवी मां से अर्ज की थी कि हे मां रक्षा करना उदयपुर की लाज रखना. ऐसी मान्यता है कि देवी मां की नाभी से मधुमक्खियों का बड़ा सा झुंड निकला और मुगलों पर टूट पड़ा था. झुंड ने पूर्वी द्वार से पांच किलोमीटर दूर नाहरा मगरा तक खदेड़ दिया गया था. तब से माता जी का इतना इष्ट है कि सैकड़ों किलोमीटर दूर से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं.
इस कारण हाइवे को पड़ा मोड़ना
सरपंच देवड़ा ने आगे बताया कि यह भी कहा जाता है कि जब उदयपुर से चित्तौड़गढ़ हाइवे निकला था तब मंदिर को हटाने की कोशिश की गई थी. हाइवे के इंजीनियर जब भी दूरबीन जैसे यंत्र लगाकर सड़क बनाने के लिए यहां जांच करते थे तो हमेशा उनको एक खुले बाल में बच्ची नजर आती थी. बच्ची के हाथ में खड़ग ढाल हुआ करता था. इसी कारण हाइवे को मोड़ना पड़ा. अब भी देवी मां के चमत्कार सुनने को मिलते हैं. आज भी उदयपुर वासियों की रक्षा देवी मां करती हैं और लोगों की उन पर काफी श्रद्धा है. सरपंच देवड़ा ने आगे बताया कि चित्तौड़गढ़ से नाहरा मगरा होते हुए उदयपुर में पूर्वी द्वार से प्रवेश होता है. अभी भी रियासत के समय में बना बड़ा गेट है और उसमें छोटी खिड़की यानी बारी हुआ करती थी जहां से बाहर आने वाले लोगों को देखा जा सकता था. इसी कारण इस क्षेत्र का ना देबारी हुआ. इस गेट के बाद शहर कोट के द्वार हैं.
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