Udaipur News: 206 दिन बाद Russia से गांव आया हितेंद्र गरासिया का शव, जानें क्या है पूरा मामला
Udaipur: रूस (Russia) में मृत हुए उदयपुर (Udaipur) के खेरवाड़ा तहसील के गोडावा निवासी हितेंद्र के शव को 206 दिन बाद देश की माटी नसीब हुई. इसके लिए परिजन को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी.
Rajasthan News: रूस (Russia) में मृत हुए उदयपुर (Udaipur) के खेरवाड़ा तहसील के गोडावा निवासी हितेंद्र के शव को 206 दिन बाद देश की माटी नसीब हुई. हिन्दू विधान के साथ मंगलवार को गांव में अंतिम संस्कार हुआ. मौके पर जिले के पांच थानों की पुलिस पहुंची. साथ ही गांव के भी कई लोग शामिल हुए. इसे देख संघर्ष की जीत हुई.
क्या है मामला
दरअसल, हितेंद्र अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए रूस (Russia) गया था. जहां उसकी अचानक मौत हो गई. जिसके बाद रूस की सरकार ने उसे वहीं दफना दिया. जब मृतक के परिवार को इसकी जानकारी मिली तो हिंदू रीति रिवाज से उसका अंतिम संस्कार करने के लिए शव की मांग करने लगे. पीएम, राष्ट्रपति (President) और कोर्ट तक परिवार पहुंचा. लंबे समय के संघर्ष के बाद रूस से शव को देश लाया गया.
कैसे हुई पहचान
बता दें कि हितेंद्र गरासिया के शव को लेकर आशंकित परिजनों ने जयपुर (Jaipur) में डीएनए टेस्ट (DNA Test) से ऐन पहले हितेंद्र को पहचान लिया. मोर्चरी में ताबूत खोलते ही केमिकल के कारण कुछ देर तक स्वास्थ्य कर्मियों की आंखों में जलन होने लगी. सांस लेने में भी तकलीफ हुई. शव दो सफेद और काली पॉलीथिन में पैक था. पूरी तरह सुरक्षित था. चेहरा कुछ बदल गया था. ईसाई मान्यताओं के अनुसार यह नए सफेद शर्ट, काले सूट और टाई में था.
कहां मिले निशान
हितेंद्र का चेहरा देखते ही पत्नी आशा, बेटे पीयूष, बेटी उवंशी और भाई नटवर की रुलाई फूट पड़ी. तसल्ली के लिए पीठ और पेट पर पुराने निशान से शव हितेंद्र का ही होने की पुष्टि की. हालांकि पोस्टमार्टम करवाने का आग्रह जरूर किया ताकि मौत की वजह सामने आ सके.
कब हुई थी मौत
उनके साथ छह महीने संघर्ष कर रहे कांग्रेस नेता चर्मेश शर्मा ने बताया कि अब हितेंद्र को धार्मिक मान्यताओं और रीति से अंत्येष्टि के साथ उसके अपने गांव और अपने देश की माटी नसीब हुई है. परिजनों का कहना है कि 206 दिन का संघर्ष ही इसी बात के लिए था कि उनके अपने को सम्मानजनक अंतिम संस्कार का अधिकार मिले. पिछले साल 17 जुलाई को मॉस्को (Moscow) में हितेंद्र की मौत हो गई थी. रूसी सरकार ने शव दफना दिया था. परिजनों को 17 अगस्त को दूतावास से मौत की सूचना मिली. तब से वे शव की वापसी और अंतिम संस्कार के लिए सरकार और कोर्ट से न्याय की गुहार लगा रहे थे.
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