Rajasthan News: कोरोना महामारी की पहली और दूसरी लहर से पूरा देश जूझ रहा है. दूसरी लहर में महामारी ने अपना असली प्रकोप दिखाया जिससे कई लोगों की जान गई. इस बीमारी में सबसे महत्वपूर्ण रोल ऑक्सीजन का रहा. इसकी कमी से कई लोगों की मौतें हुई लेकिन अब सभी जिले अपने हॉस्पिटल में ही ऑक्सीजन प्लांट से ऑक्सीजन का उत्पादन कर रहे हैं. सभी के मन में सवाल है कि आखिर इस प्लांट से ऑक्सीजन कैसे बनती है. यह प्लांट वातावरण में उपलब्ध हवा को लेता है और उसकी शुद्धता के प्रतिशत को बढ़ाकर मरीजों तक पहुंचाते हैं. उदयपुर की बात करें तो यहां 9 प्लांट लगे हैं जिनसे 4000 सिलेंडर प्रतिदिन ऑक्सीजन उत्पादन की क्षमता है.


जानते हैं कैसे बनती है ऑक्सीजन


उदयपुर के रविन्द्र नाथ टैगोर मेडिकल कॉलेज के बायोमेडिकल इंजीनियर संदीप ने बताया कि ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट से बाहरी वातावरण की हवा को लेकर प्लांट की मशीनों द्वारा शुद्ध कर फिर मरीजों के लिए सप्लाई करते हैं. हर प्लांट की अलग-अलग कैपेसिटी होती है. किसी में 24 घंटे में 120 सिलेंडर उत्पादन की तो किसी में 300 तक भी होती है. स्वस्थ इंसान के हवा में उपलब्ध 22 फीसदी तक ऑक्सीजन लेता है, लेकिन जिनके फेफड़े कमजोर हैं उन्हें 93-96 फीसदी तक शुद्ध ऑक्सीजन देनी होती है जिससे वह रिकवर हो.


उन्होंने बताया कि सबसे पहले प्लांट में लगा एयर कंप्रेसर बाहर की हवा को अंदर खिंचता है जो कंप्रेसर से फिल्टर होकर प्लांट में पड़े टैंक में जाकर एकत्रित होती है. हवा में 21 फीसदी ऑक्सीजन होती है. इसके बाद हवा में जो भी बैक्टीरिया, मोस्चर होता है उसे खत्म करने के लिए टैंक के बाद ड्रायर मशीन में सप्लाई करते हैं. फिर दो टैंक में हवा जाती है जिसमें अन्य भी जो गैस होती है वह अलग होती है और शुद्ध ऑक्सीजन एक ऑक्सीजन टैंक में पहुंच जाती है. फिर प्रेशर के अनुसार उसे सप्लाई के लिए छोड़ते हैं. 
उन्होंने बताया कि यह एक प्रोसेस हुई है, एक अन्य प्लांट की प्रोसेस भी होती है जिसमें लिक्विड से ऑक्सीजन को बनाया जाता है.


बता दें कि उदयपुर में 4852 एक्टिव मरीज हैं लेकिन मात्र 170 ही ऐसे हैं जो हॉस्पिटल में भर्ती है. संक्रमण दर भी 22 फीसदी तक चल रही है. हालांकि ऐसे स्थिति नहीं आई जो सेकंड लहर में थी जहां लोगों को ऑक्सीजन के लिए तड़पना पड़ रहा था.


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