Holi 2022: डूंगरपुर जिले में होलिका दहन के जलते अंगारों पर ग्रामीण नंगे पावं लगाते हैं दौड़, जानिए क्या है मान्यता
Holi 2022: राजस्थान के डूंगरपुर जिले कोकापुर गांव में लोग होली के दूसरे दिन होलिका दहन में जलते हुए अंगारों पर नंगे पावं दौड़ लगाते हैं. ग्रामीणों का मानना है कि, इससे गावं में खुशहाली आती है.
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Dungarpur: होली (Holi) उत्साह, उमंग और आपसी प्रेम के रंगों के का त्योहार है. देश में होली अलग-अलग परंपरागत तरीकों से मनाई जाती है. राजस्थान (Rajasthan) के डूंगरपुर जिले (Dungarpur District) कोकापुर गांव में आज भी होली के दिन जान जोखिम में डाल कर पुरानी परंपराओं का पालन किया जाता है. जहां ग्रामीण गावं की खुशहाली और तरक्की के लिए जलते हुए अंगारों पर दौड़ लगाते हैं. इस दौरान जलने से लोगों के पावं में छाले भी हो जाते हैं, फिर भी लोग पूरी श्रद्धा से इस प्रथा का पालन करते हैं.
इस जिले में मनाई जाती है पुराने परंपराओं से होली
डूंगरपुर जिले के इस गावं में होलिका दहन के अगले दिन धुलंडी पर होलिका के जलते अंगारों पर नंगे पावं दौड़ते हैं. इस जिले में पत्थरमार होली भी खेली जाती है, इस बार यहां के पत्थरमार होली में 48 लोग घायल लोग घायल हो गये.
ग्रामीणों ने इस अनोखी परंपरा के संबंध में बताई यह बात
इस अनोखी परंपरा के संबंध में ग्रामीणों ने बताया कि, "होलिका दहन के बाद दूसरे, दिन शुक्रवार कोकापुर गांव में ग्रामीणों ने, दहकते अंगारों पर चलने की परंपरा श्रद्धापूर्वक निर्वहन किया. अंगारों से गुजरने की परंपरा के दौरान ढोल कुंडी की थाप और होली माता के जयकारे भी लगाये गये. प्रदेश के आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले की मुख्य परंपराओं में से एक है.
कोकापुर गांव की निरा देवी कलाल बताती हैं कि, "इस परंपरा के दौरान ढोल-कुंडी की थाप पर सैकड़ों लोग जुटे. ढोल की थाप पर गैर खेलते हुए एक दूसरे को होली की शुभकामनाएं दी." उन्होंने आगे बताया कि, "गांव के हनुमान मंदिर और शिव मंदिर में पूजा-अर्चना की गई. इसके बाद होली के जलते अंगारों पर चलने की परंपरा का निर्वहन किया गया. गांव में बुजुर्ग हो या युवा सभी ने दहकते अंगारों में चहलकदमी करते हुए, सदियों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन किया और गांव में खुशहाली की कामना की.
हजारों सालों से निभाई जाती है यह परंपरा
गांव में मान्यता है कि, होलिका दहन के बाद दहकते अंगारों पर चहलकदमी करने से गांव पर कोई विपदा नहीं आती है, इसका पालन करने से गांववासियों का स्वस्थ्य भी ठीक रहता है. इस परम्परा को देखने आसपास के कई गांवों के लोग कोकापुर पहुंचते हैं. हजारों साल से ग्रामीण इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं ओर अभी तक कोई भी अनहोनी नहीं हुई है.
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