Rajsamand: राजस्थान के इस गांव में पेड़ों को बहनें मानती हैं अपना भाई, बांधती हैं राखी, जानें- कैसे शुरू हुई परंपरा?
Rajasthan News: बेटी के जन्म होने के बाद उसके नाम का एक पौधा रोपा जाता है. जैसे-जैसे बेटी बड़ी होती है पौधा भी बड़ा होता है. वही पौधा उनका भाई होता है.
Raksha bandhan 2022: रक्षाबंधन भाई और बहन के प्यार का त्यौहार है यह हम सभी जानते हैं, लेकिन राजस्थान (Rajasthan) के एक गांव में यही रक्षा बंधन का त्यौहार अनोखे तरीके से मनाया जाता है. यहां की बेटियां गांव के पेड़ों को अपना भाई मानती हैं और रक्षा सूत्र बांधकर रक्षा की शपथ लेती हैं. बड़ी बात यह है कि 16 साल पहले इस पहल की शुरुआत करने वाले गांव के सरपंच पद्मश्री से सम्मानित हो चुके हैं, इसके अलावा भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सभी सम्मान प्राप्त कर चुके हैं. पूर्व सरपंच का नाम है श्याम सुंदर पालीवाल और गांव है उदयपुर संभाग के राजसमन्द जिले के पिपलांत्री.
किस वजह से शुरू हुई थी पहल
पद्मश्री श्याम सुंदर पालीवाल वर्ष 2006 में सरपंच बने थे. इसके बाद उन्होंने गांव में कई सामाजिक कार्य शुरू करवाए. वर्ष 2007 में बेटी का निधन हो गया. बेटी की याद में तब उन्होंने पर्यावरण संरक्षण करने के पहल की शुरुआत की. इस पहल में उन्होंने गांव के लोगों को जोड़ा और कहा कि अब यहां बेटियों के जन्म पर उनकी याद में पौधरोपण किया जाएगा. तब से गांव में बेटी का जन्म होता है तो परिवार 111 पौधे रोपता है. वहीं एक पौधा बेटी के नाम का होता है. तब से यह परंपरा चली आ रही है. बड़ी बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी इस पहल का गुणगान हो चुका है.
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ऐसा होता है यहां राखी का त्योहार
यहां बेटी के जन्म होने के बाद उसके नाम का एक पौधा रोपा जाता है. जैसे-जैसे बेटी बड़ी होती है पौधा भी बड़ा होता है. वही पौधा उसका भाई होता है. राखी के एक दिन पहले सभी गांव की बेटियां और गांव के लोग एकत्र होते हैं. ढोल के साथ सभी गांव के लोग निकलते हैं और पेडों के पास पहुंचते हैं. बेटियां अपने नाम के पेड़ की पूजा करती हैं और उसके रक्षा सूत्र बांधती है. यह भी बता दें कि पौधरोपण साल में एक बार होता है जिस दिन वन महोत्सव मनाया जाता है.
टोकरी में लेकर पहुंचती हैं नर्सरी
सालभर में जितनी भी बेटियों ने जन्म लिया उनकी मां टोकरियों में सिर पर उठाकर नर्सरी पहुंचती हैं और बेटियों के नाम का पौधरोपण करती हैं. गांव की बेटियों का कहना है कि जिस तरह से विश्व पर प्राकृतिक आपदा मंडरा रहा है. कहीं ना कहीं यह मॉडल पर्यावरण को बचाने को लेकर सार्थक कदम है. देश ही नहीं विश्व को भी इस मॉडल को अपनाना चाहिए जिससे एक बार फिर पर्यावरण को संतुलित किया जा सके.