Chambal Dacoit Ramesh Sikarwar: कभी चंबल के बीहड़ में बंदूक से आतंक मचाने वाला रमेश सिकरवार अब चीता मित्र बन गया है. खौफ का पर्याय बने रमेश सिकरवार की कहानी मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले से शुरू होती है. 1970 से लेकर 1980 तक रमेश सिकरवार पर 70 हत्या और 250 से अधिक डकैती के मामले दर्ज थे. नहरौनी गांव में जन्मा रमेश सिकरवार मात्र 7वीं कक्षा तक ही पढ़ पाया. रमेश सिकरवार का परिवार 90 बीघा खेत का मालिक था. चाचा की नियत खराब हो गई और खेत हड़प लिया. बंटवारे की समझाइश पर भी चाचा ने परिजनों की बात नहीं मानी. खेत से लेकर मवेशी तक में हिस्सा चाचा ने भाई को नहीं दिया.
चंबल के बीहड़ में खूंखार डकैत से चीता मित्र बनने की कहानी
भाई की बेईमानी से आहत होकर रमेश सिकरवार के पिता गांव छोड़ कर शिवपुरी में रहने लगे. बहन की शादी तय होने पर रमेश सिकरवार ने चाचा से 20 साल का हवाला देकर मदद की गुहार लगाई. नहीं मानने पर रमेश सिकरवार 8 -10 टीन घी के जबरदस्ती उठाकर ले आया. चाचा ने करहल थाने में चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस रमेश सिकरवार को गिरफ्तार करने के लिए घूम रही थी. पिता ने बेटे से चाचा को निपटा देने का कहा. रमेश सिकरवार पिता का आशीर्वाद लेकर दो तीन लड़कों के साथ चाचा को मार दिया. चाचा की हत्या करने के बाद रमेश सिकरवार बागी बन गया और चंबल के जंगल में चला गया.
एक साल तक रमेश सिकरवार अकेला रहा था. गांव के 4 आदमी भी मर्डर कर रमेश से जा मिले. अब शुरू होती है रमेश सिकरवार के डकैत गैंग की कहानी. 5 लोगों से शुरू हुए डाकू गैंग में धीरे-धीरे लगभग 32 लोग शामिल हो गए. रमेश सिकरवार चंबल के बीहड़ में बड़ी गैंग का नेतृत्व करने लगा. मुखबिरी के कारण रमेश सिकरवार की गैंग का एक साथी मारा गया था. उसका बदला रमेश सिकरवार ने 27 मारवाड़ियों को मार कर लिया.
मारवाड़ी शिव सिंह रमेश सिकरवार के पास दूध लेकर जाता था. घरेलू सामान पहुंचाने के वादे पर रमेश सिकरवार ने मारवाड़ी शिव सिंह को 50 हजार रुपये साथी से दिलवा दिए. आटा, दाल, मसाला, जूट, चप्पल लाने के लिए मारवारी शिव सिंह ने समय और जगह बताया दिया. रमेश सिकरवार तय समय पर नहीं पहुंचता था. गैंग के सदस्य सामान लेने नहीं आने पर शिव सिंह मारवाड़ी पुलिस को लेकर पहुंच गया. रमेश सिकरवार की गैंग खाना बनाकर खाने के बाद सो गई.
रमेश सिकरवार मौके पर मौजूद नहीं था. एक साथी डाकू पेड़ पर चढ़कर चौकीदारी कर रहा था. कुछ देर बाद उसने देखा की मारवाड़ी पुलिस के साथ आ रहा है. दहशत के मारे डाकू के हाथ से बंदूक छूटकर जमीन पर गिर पड़ी. जमीन पर बंदूक छूट कर गिरते ही फायर हो गया. फायरिंग सुनकर पुलिस वालों ने पेड़ पर बैठे रमेश सिकरवार की गैंग के सदस्य को मार गिराया. बंदूक की आवाज पर बाकी डकैत मौके से भागने में सफल रहे.
मारवाड़ी की मुखबिरी से मारा गया था डाकू गैंग का एक सदस्य
रमेश सिकरवार ने डकैत गैंग के सदस्यों के लिए पुलिस की वर्दी का इंतजाम किया. उसने पुलिस वाली थ्री नॉट थ्री की राइफल उपलब्ध भी कराई. रास्ते में निकले डकैत गैंग को श्योपुर पुलिस की गाड़ी मिली. गाड़ी में ड्राइवर अकेला था. उसे रमेश सिकरवार ने कहा गोरस जाना है. उसने सभी डकैतों को पुलिस वाला समझकर बैठा लिया और आगे जाकर सच्चाई बताई की हम सभी डाकू हैं. गाड़ी हम चलायेंगे. रात को पुलिस की वर्दी में रमेश सिकरवार की गैंग मारवाड़ियों के बीच पहुंच गई.
मौके पर मौजूद लोगों को सुरक्षा के लिए बंदूक की लाइसेंस देने की शर्त रखी गई. पुलिस के मददगार मारवाड़ियों को पुलिस रजिस्टर में नाम दर्ज करना था. गैंग के सदस्य पूछकर रजिस्टर में नाम लिखते गए और रमेश सिकरवार गाड़ी में ही बैठा रहा. सारी हकीकत जानने के बाद रमेश सिकरवार गाड़ी से बाहर निकला और बोला कि गद्दारों तुमने हमारे साथ धोखा किया है. माफी की फरियाद के बाजवदू रमेश सिकरवार ने हाथ बंधवा कर 16 मारवाड़ियों को एक साथ गोली मार दी. फिर 5 आदमियों को एक जगह और 6 आदमियों को एक जगह गोली मारता गया.
डाकू रमेश सिकरवार ने 27 लोगों की हत्या कर पूरा किया इंतकाम
सुबह होने तक 27 मारवाड़ियों की हत्या कर मुखबिरी करने वालों से बदला लिया. उसके बाद रमेश सिकरवार के खिलाफ कोई भी मुखबिरी करने को राजी नहीं होता था. बीहड़ों में भटकने के 10 साल बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने बड़ा फैसला लिया. उनके कहने पर 18 शर्तों के साथ 27 अक्टूबर 1984 को रमेश सिकरवार ने सरेंडर कर दिया. रमेश सिकरवार ने लगभग 8 साल जेल में बिताए और बाहर निकलने पर खेती शुरू की. लंबा समय बागी के रूप में बिताने के बाद सिकरवार अब सामान्य जिंदगी जी रहे हैं. गांव में प्रभाव और प्रतिष्ठा अब भी बरकरार है.
रमेश सिकरवार के 3 लड़के और 3 लड़किया हैं. दो लड़के और दो लड़कियों की शादी कर दी है. उनकी बात क्षेत्र में बड़े ध्यान से सुनी जाती है. श्योपुर और मुरैना के 175 गांवों में हर आदमी उन्हें इज्जत से मुखिया कहकर पुकारता है. अफ्रीका से लाए गए चीतों के लिए भारत सरकार ने चीता मित्र टीम बनाई है. चीता मित्र लोगों को गांव में जाकर बताती है कि चीतों से डरने की जरूरत नहीं. अगर रिहायशी क्षेत्र में चीता आ जाये तो तुरंत वन विभाग को सूचित कर दें. चीतों की रक्षा और ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए कुल 452 चीता मित्र बनाए गए हैं. 452 चीता मित्रों में रमेश सिकरवार का नाम भी शामिल है.