Ram Mandir: 'नदी में फेंकी जा रही थी डेड बॉडी..', राम जन्मभूमि आंदोलन में शामिल कार सेवकों ने बताया आंखों देखा मंजर
Ramlala Pran Pratishtha: कार सेवकों ने बताया कि उस समय रामभक्तों में "बच्चा-बच्चा राम का जन्मभूमि के काम का" नारे की गूंज थी. हम इस नारे को सुनकर इतने उत्साहित थे कि मौत से भिड़ गए.
Ram Mandir घnauguration: रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए अयोध्या नगरी सजकर तैयार है. अब बस इंतजार प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम का है, जो 22 जनवरी 2024 को होगा. उस दिन बरसों के इंतजार के बाद नवनिर्मित भव्य राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला की मूर्ति विराजित होगी. राम मंदिर को लेकर पूरे देश में खुशी की लहर है. लोगों के जेहन में अलग-अलग तरह की यादें हैं, जो राम मंदिर से जुड़ी हुई हैं. किसी ने राम जन्मभूमि आंदोलन में अपनों को खो दिया तो किसी के जेहन से आज तक आंदोलन का मंजर नहीं निकल पाया है. इस बीच जोधपुर के कुछ कार सेवकों ने राम मंदिर आंदोलन की यादें साझा की हैं.
एबीपी न्यूज से खास बातचीत में राम जन्मभूमि के आंदोलन में शामिल हुए कार सेवकों ने बताया कि उस समय कैसे हालात थे. कार सेवक सेठाराम परिहार के दोस्त भंवर भारती ने बताया कि हम लोगों में राम मंदिर आंदोलन को लेकर एक आग थी. हमें राम मंदिर आंदोलन में शामिल होने के लिए जाना था, लेकिन हमारे घरवालों ने हमें जाने के लिए मना कर दिया. इसके बावजूद हम घर पर बिना बताए ही राम मंदिर आंदोलन में शामिल हो गए.
'सरकार ने मौत का आंकड़ा कम करने के लिए कहा था'
हम सब छिपते-छिपाते अयोध्या तक पहुंचे. रास्ते में कई बार पुलिस की चेकिंग हुई, उसमें हमारे कई साथियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. अयोध्या में मारवाड़ ने अगुवाई की. पुलिस ने पहले आंसू गैस के गोले छोड़े फिर गोलियां चलाईं. कार सेवक के जत्थे में सेठाराम परिहार मेरे साथ थे. इस दौरान उन्हें अचानक गोली लगी और उनकी मौत हो गई. उस दौरान सरकार ने मौत का आंकड़ा कम करने के लिए कहा था, जिस वजह से डेड बॉडी नदी में बहा दी जा रही थीं, जिससे पता न चल सके, लेकिन हम लोग अड़े रहे और सेठाराम परिहार और प्रोफेसर महेंद्र नाथ अरोड़ा की डेड बॉडी को हम धर्मशाला में लेकर गए.
वहां से डेड बॉडी लेकर हम गांव पहुंचे. हमने कभी नहीं सोचा था कि हम कभी वापस घर जा पाएंगे. हम लोगों ने मौत का मंजर देखा था. पूरी रात हम पांच डेड बॉडी के साथ बैठे रहे. सुबह गाड़ी मिलने पर हम वहां से निकले. राम मंदिर जन्मभूमि आंदोलन में शामिल हुए कमल दान चारण ने बताया कि आज भी हम अयोध्या निकलने के समय को याद करते हैं, तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
कार सेवक छिपते-छिपाते अयोध्या पहुंचे थे
उस समय रामभक्तों में "बच्चा-बच्चा राम का जन्मभूमि के काम का" नारे की गूंज थी. हम इस नारे को सुनकर इतने उत्साहित थे कि हम मौत से भिड़ गए. हम लोग बड़ी मुश्किलों से छिपते-छिपाते अयोध्या पहुंचे, जहां पर पहले से मौजूद पुलिस और सेना की टुकड़ी ने हमें रोक लिया. जैसे-जैसे माहौल गरमाने लगा तो सेना और पुलिस की ओर से आंसू गैस के गोले छोड़े. उसके बाद पुलिस और सेना की ओर से गोलियां चला दी गईं, जिसमें हमारे कई कार सेवक शहीद हो गए.