History of Mewar: युद्ध में एक हाथ, एक आँख खोई और शरीर पर थे 80 घाव, देश के ऐसे आखरी नरेश जिन्होंने राजपूतों के लिए किया यह काम
History of Rajasthan: महाराणा सांगा ऐसे योद्धा थे जिनके एक हाथ और आँख नहीं था, चलने में लंगड़ाहट के साथ शरीर पर 80 घाव थे. इसके बाद भी मुगल शासक बाबर को पसीना ला दिया था. उन्होंने राजपूतों को एक किया.
Rana Sanga Stroy: राजस्थान के मेवाड़ में हुए वीर योद्धाओं के बारे में आप एबीपी पर लगातार पढ़ रहे हैं.अब तक आपने मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल और महाराणा कुम्भा के बारे में जाना.जिन्होंने विदेशी आक्रांताओं को दौड़ा-दौड़ा कर हराया और विदेश तक अपनी सीमाएं बढ़ाईं. अब जिस योद्धा की हम बात करने जा रहे हैं. उन्होंने कई युद्ध लड़े. इसमें उनको अपना एक हाथ,एक पैर और एक आँख खोनी पड़ी. इसके साथ ही उनके शरीर पर 80 घाव थे.इतना सब होने के बाद भी उन्होंने युद्ध में बाबर जैसे मुगल शासक को पसीना ला दिया था. यहीं नहीं वे देश के अंतिम नरेश थे, जिनके नेतृत्व में राजपूत विदेशियों से एक साथ लड़े. जिनकी हम बात करने जा रहे हैं उनका नाम है महाराणा सांगा, जो महाराणा कुम्भा के पोते हैं.आइये जानते हैं उनका इतिहास.
भाइयों के साथ संघर्ष
महाराणा सांगा अपने पिता महाराणा रायमल की मृत्यु के बाद 1509 ई. में 27 वर्ष की आयु में मेवाड़ का शासक बने. मेवाड़ के महाराणाओं में वह सबसे अधिक प्रतापी योद्धा थे. भाइयों में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष हुआ. रायमल के रहते हुए सत्ता के लिए पुत्रों के बीच आपसी संघर्ष प्रारम्भ हो गया. कहा जाता है कि एक बार तीनों पुत्र कुंवर पृथ्वीराज, जयमल और संग्रामसिंह (सांगा) ने अपनी-अपनी जन्मपत्रियां एक ज्योतिषी को दिखलाई. उन्हें देखकर उसने कहा कि ग्रह तो पृथ्वीराज और जयमल के भी अच्छे हैं परन्तु राजयोग संग्रामसिंह के पक्ष में होने के कारण मेवाड़ का स्वामी वही होगा. यह सुनते ही दोनों भाई संग्रामसिंह पर टूट पड़े. पृथ्वीराज ने हूल मारी जिससे संग्रामसिंह की एक आंख फूट गई. इस समय तो सांरगदेव (महाराणा रायमल के चाचा) ने बीच-बचाव कर किसी तरह उन्हें शांत किया, किन्तु दिनों-दिन कुंवरों में विरोध का भाव बढ़ता ही गया. सारंगदेव ने उन्हें समझाया कि ज्योतिषी के कथन पर विश्वास कर तुम्हें आपस में संघर्ष नहीं करना चाहिए. इस समय सांगा अपने भाइयों के डर से श्रीनगर (अजमेर) के कर्मचन्द पंवार के पास अज्ञातवास बिता रहा था. रायमल ने उन्हें बुलाकर अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया.
बाबर से युद्ध और राजपूत एकता
महाराणा सांगा ने अपने जीवन काल में कई युद्ध लड़े लेकिन भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डालने वाले मुगल शासक बाबर के साथ युद्ध को याद रखा जाता है. 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को पराजित कर बाबार ने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डाली.उसके बाद से ही बाबर और महाराणा सांगा के बीच संघर्ष शुरू हो गया.बाबर इब्राहिम लोदी पर विजय के बाद संपूर्ण भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता था.हिंदूपत यानी हिंदू प्रमुख महाराणा सांगा को पराजित किए बिना ऐसा संभव नहीं था.दोनों का उत्तरी भारत में एक साथ बने रहना ठीक वैसा ही था जैसे एक म्यान में दो तलवारें.
पानीपत की लड़ाई के बाद अफगान नेता महाराणा सांगा की शरण में पहुंचे. राजपूत अफगान का मोर्चा बाबर के लिए भय का कारण बन गया. महाराणा सांगा के निमंत्रण पर अफगान नेता हसनखां मेवाती और महमूद लोदी, मारवाड़ के मालदेव,आमेर के पृथ्वीराज, ईडर के राजा भारमल, वीरमदेव मेड़तिया, वागड़ के रावल उदयसिंह, सलूम्बर के रावत रत्नसिंह, चंदेरी के मेदिनीराय, सादड़ी के झाला अज्जा, देवलिया के रावत बाघसिंह और बीकानेर के कुंवर कल्याणमल ससैन्य आ डटे.
1527 ई. में महाराणा सांगा ने बयाना पर विजय प्राप्त की जो कि कहा जाता हैं कि बाबर के खिलाफ पर एक महत्वपूर्ण विजय थी. राजपूतों की वीरता की बाते सुनकर बाबर के सैनिकों का मनोबल टूटा. बाबर ने सुलह की तक बात चलाई लेकिन सांगा ने अस्वीकार किया.16 मार्च 1527 की सुबह भरतपुर के खानवा में युद्ध शुरू हुआ. पहली मुठभेड़ राजपूतों के हाथ लगी लेकिन अचानक ही एक तीर आया और सांगा के आंख में लगा.वह युद्ध भूमि से दूर गए और राजपूत युद्ध हार गए.इसके बाद भारत में मुगल साम्राज्य स्थापित हो गया.बाबर ने युद्ध का बदला लेने के लिए युद्ध विरोधी सरदारों ने सांगा को जहर देकर मार दिया. महाराणा सांगा की 30 जनवरी 1528 ई. में 46 वर्ष की आयु में उनका देहांत हुआ.
सिपाही का भग्नावशेष
महाराणा सांगा वीर, उदार, कृता, बुद्धिमान न्यायपरायण शासक थे. अपने शत्रु को कैद करके और राज्य वापिस लौटा देने का कार्य सांगा जैसे वीर ही कर सकते थे.इब्राहीम लोदी के साथ हुए खातोली के युद्ध में उनका हाथ कट गया और एक पैर से लंगडा हो गए.मृत्यु समय तक उसके शरीर पर तलवारों भालों के कम से कम 80 निशान लगे हुए थी. यह उनको एक सिपाही का भग्नावशेष सिद्ध कर रहे थे. शायद ही उनके शरीर का ऐसा अंश ऐसा हो जिस पर युद्धों में लगे हुए घावों के चिह्न न हो. अपने समय के वह सबसे बड़े हिन्दू नरेश थे जिनके आगे बड़े-बड़े शासक सिर झुकाते थे.जोधपुर और आमेर के राज्य भी उनका सम्मान करते थे. ग्वालियर, अजमेर, सीकरी, रायसेन, कालपी, चन्देरी, बूंदी, गागरोन, रामपुरा और आबू के राजा उनके सामंत थे. वह भारत के अंतिम नरेश थे जिनके नेतृत्व में राजपूत नरेश विदेशियों को भारत से निकालने के लिए इकट्ठे हुए थे.
दुश्मन ने भी की तारीफ
बाबर ने उसकी प्रशंसा में लिखा, "राणा सांगा अपनी बहादुरी और तलवार के बल पर बहुत बड़ा हो गया था. मालवा, दिल्ली और गुजरात का कोई अकेला सुल्तान उसे हराने में असमर्थ था. उनके राज्य की वार्षिक आय 10 करोड़ थी. उनकी सेना में एक लाख सैनिक थे. उनके साथ 7 राजा, 9 राव और 104 छोटे सरदार रहा करते थे. आपसी वैमनस्य के लिए प्रसिद्ध राजपूत शासकों को एक झण्डे के नीचे लाना सांगा की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी.
जानकारी माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की कक्षा 12 वीं की पुस्तक भारत का इतिहास और इतिहास के व्याख्याता अनिल जोशी द्वारा.
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