Jaipur News: सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने और बच्चों का ठहराव करने के लिए सरकार ने मिड डे मील योजना (Mid Day Meal Scheme) की शुरूआत की थी. सरकार ने भोजन को पौष्टिक बनाने और गुणवत्ता में सुधार के लिए समय-समय पर पोषाहार व्यवस्था में बदलाव किया और इसका लाभ भी मिला. स्कूल में पोषाहार मिलने से बच्चों का सरकारी स्कूलों के प्रति रूझान बढ़ा. स्कूलों के नामांकन आंकड़ों में भी इजाफा हुआ. इस योजना से सरकार की मंशा तो पूरी हो गई मगर शिक्षकों के लिए यह योजना मुसीबत बन गई.


तीन माह से भुगतान बकाया
राजस्थान (Rajasthan) की कई सरकारी स्कूलों में बीते 3 माह से पोषाहार का भुगतान बकाया है. जुलाई माह से अब तक एक भी रुपए का भुगतान नहीं हुआ है. ऐसे में सब्जी, तेल, मसाला, गैस, पानी, फल व अन्य सामग्री उधार खरीद रहे हैं या पोषाहार प्रभारी जेब से खर्च कर रहे हैं. आलम यह है कि किराना और फल विक्रेता की दुकानों पर हजारों रुपए की राशि बकाया हो गई है. कुक और हेल्पर भी भुगतान को तरस रहे हैं.


कितना मिलता है मानदेय और कंवर्जन?
पोषाहार पकाने के लिए शिक्षा विभाग गेहूं और चावल उपलब्ध करवाता है. इसके अलावा गर्म भोजन पकाने में लगने वाली सामग्री की व्यवस्था पोषाहार प्रभारी करते हैं. इसके लिए उन्हें विभाग से कुकिंग कंवर्जन राशि मिलती है. कक्षा 1 से 5 तक अध्ययनरत स्टूडेंट्स के लिए 4 रुपए 87 पैसे प्रतिदिन प्रति विद्यार्थी और कक्षा 6 से आठ 8 तक अध्ययनरत स्टूडेंट्स के लिए 7 रुपए 45 पैसे प्रतिदिन प्रति विद्यार्थी कंवर्जन राशि दी जाती है. कुक कम हेल्पर को प्रतिमाह 1742 रुपए मानदेय मिलता है.


स्कूलों में हर दिन अलग भोजन
मिड डे मील योजना के तहत स्कूलों में हर दिन अलग-अलग मीनू के हिसाब से भोजन मिलता है. सोमवार को सब्जी रोटी, मंगलवार को दाल चावल, बुधवार को दाल रोटी, नमकीन चावल व सब्जी युक्त खिचड़ी, शुक्रवार को दाल रोटी, शनिवार को सब्जी रोटी खिलाई जाती है. इसके अलावा विद्यार्थियों को सप्ताह में एक दिन मौसमी फल भी खिलाते हैं.


राज्य सरकार ने जारी किए यह निर्देश
राजस्थान में कई जगहों पर मिड डे मील योजना के खाने में गुणवत्ता नहीं होने और लापरवाही के मामले सामने के बाद प्रदेश सरकार ने सख्ती दिखाई थी. भोजन को पौष्टिक बनाने और उसकी गुणवत्ता बरकरार रखने के लिए शिक्षा विभाग ने आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए. स्कूलों में रोजाना दिए जा रहे मेन्यू में हरी पत्तेदार सब्जियां उपयोग में ली जाए. रोटी अच्छी तरह से पकी हुई हो. किसी भी परिस्थिति में जली हुई रोटी न परोसें. भोजन परोसने से पहले दो व्यक्ति उसे चखें.


कुक का मेडिकल चेकअप जरूरी
सरकार ने मिड डे मील योजना के तहत भोजन पकाने वाले कुक कम हेल्पर के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने के निर्देश दिए हैं. कुक कम हेल्पर को समय-समय पर सरकारी मापदंडों के तहत मेडिकल चेकअप करवाना जरूरी है. इसकी रिपोर्ट संस्था प्रधान को दिखानी होगी. नियमित रूप से नाखून काटने, हाथ धोकर खाना बनाने, स्वच्छ कपड़े पहनने जैसी बाताें का ध्यान रखना जरूरी है. यह भी सुनिश्चित करना है कि भोजन खाने व परोसने वाले बर्तन पूरी तरह साफ हो.


ड्यूटी पर जताई नाराजगी
श्रीगंगानगर में राजस्थान शिक्षक संघ (शेखावत) की ओर से आयोजित जिला शैक्षिक सम्मेलन में शिक्षकों ने नॉन टीचिंग कामों को लेकर नाराजगी जाहिर की. उनका कहना था कि सरकार ने शिक्षकों को मिड डे मील जैसे काम में लगा दिया है. वे पढ़ाई पर ध्यान देने की बजाय पूरा समय मिड डे मील का ही ध्यान रखते हैं. इससे अध्यापन कार्य प्रभावित हो रहा है.


मानदेय और कंवर्जन राशि बढ़ाने की मांग
ब्यावर में आयोजित राजस्थान शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) ने जिला शैक्षिक सम्मेलन में मिड डे मिल योजना का मामला उठाया. संघ ने कुक कम हेल्पर का मानदेय बढ़ाकर 6000 रुपए प्रतिमाह किए जाने और समय पर भुगतान करने की मांग की. साथ ही बढ़ती महंगाई को ध्यान में रखते हुए कुकिंग कंवर्जन राशि की दर बढ़ाने की मांग भी की.


कब हुई मिड डे मील योजना की शुरूआत?
मिड डे मील कार्यक्रम की शुरूआत 15 अगस्त, 1995 को पूरे देश में लागू की गई थी. सितंबर 2004 में कार्यक्रम में व्यापक परिवर्तन करते हुए मेन्यु आधारित पका हुआ गर्म भोजन देने की व्यवस्था शुरू की. वर्तमान में यह कार्यक्रम भारत सरकार के सहयोग से राज्य सरकार प्रदेश के उच्च प्राथमिक स्तर तक सभी सरकारी व अनुदानित स्कूलों सहित विशेष विद्यालय तथा मदरसों आदि में संचालित किया जा रहा है. 


इसका मुख्य उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा के सार्वजनिकरण को बढ़ावा देना, स्कूलों में बच्चों का नामांकन और उपस्थिति बढ़ाना, ड्रॉप आउट को रोकना तथा सीखने के स्तर को बढ़ावा देना है. इस योजना में लगभग 1.09 लाख कुक कम हेल्पर प्रदेश की स्कूलों में गर्म भोजन पका रहे हैं.


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