Camel Contingent Parade in Republic Day 2024: इस साल 26 जनवरी को पूरा देश 75वां गणतंत्र दिवस मनाएगा. देश के कोने-कोने में राष्ट्रीय पर्व के उत्सव की तैयारी शुरू हो चुकी हैं. गणतंत्र दिवस की तैयारियां राजधानी दिल्ली के कर्तव्य पथ पर भी शुरू हो चुकी है. हर बार की तरह इस बार भी बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स के कैमल कंटिजेंट के जवान परेड में शामिल होंगे. इसको लेकर जवानों ने ऊंटों की परेड का अभ्यास शुरू हो चुका है. दरअसल, 26 दिसंबर 1949 को भारतीय संविधान को अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को प्रभावी रुप से संविधान को लागू कर दिया गया.
राष्ट्रीय पर्व पर कैमल कंटिजेंट का नेतृत्व मनोहर सिंह खीची (उप कमाण्डेंट) अपने विशेष ऊंट चेतक पर करेंगे. उनके पीछे निरीक्षक शैतान सिंह कंटीजेंट 2IC और दो उप निरिक्षक पथ पर चलेंगे. यह कंटीजेंट साल 1976 से लगातार गणतंत्र दिवस परेड में कर्तव्य पथ पर सीमा सुरक्षा बल की ओर से भाग ले रहा है और सीमा सुरक्षा बल के प्राक्रम, साहस और शौर्य को देश वासियों के सामने प्रस्तुत करता है. इस कंटिजेंट में पुरुष कैमल राइडर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर महिला कैमल राइडर भी अपने सजे-धजे ऊंटों पर सवार होकर परेड में शामिल होती हैं.
1976 में पहली बार हुए थे परेड में शामिल
महिला कैमल राइडर, जिन्हें सीमा सुरक्षा बल द्वारा कैमल राइडिंग में प्रशिक्षित करके कैमल कंटीजेंट मे शामिल किया गया है. महिला कैमल राइडर भारतीय महिलाओं के सभी क्षेत्रों में सफलता के परचमल लहराने और सशक्तिकरण को प्रदर्शित करती हैं. पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश के सर्वांगीण विकास और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा में अपना अमूल्य योगदान दे रही हैं. जहां वह राजस्थानी कहावत "म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के" के कथन को चरितार्थ करती हैं. बीएसएफ ने साल 1976 में पहली बार ऊंटों के दस्ते के साथ गणतंत्र दिवस के परेड में हिस्सा लिया था.
इन जंगों में रही ऊंटो की अहम भूमिका
जब भी सीमा सुरक्षा बल का नाम आता है तो आंखो के सामने सीमा सुरक्षा बल के सजीले रोबदार मूंछों वाले बांके जवान और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर उनका वफादार साथी भारी भरकम रेगिस्तान के जहाज ऊंट का मनमोहक नजारा दिखने लगता है. विश्व प्रसिद्ध सीमा सुरक्षा बलों के रोबीले जवानों का दस्ता जब सजे-धजे ऊंटों पर सवार होकर अपनी मनमोहक अदा के साथ दिल्ली के कर्तव्य पथ पर या जैसलमेर के मखमली रेगीस्तान के अलावा देश के अन्य किसी हिस्से में चलते हैं, तो बच्चों, बूढ़े, जवान सहित देसी विदेशी सैलानियों के विशेष आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं. राजस्थान में दुश्मनों से सीमा की सुरक्षा में जवानों के साथ ऊंटों की भूमिका भी अहम होती है. ऊंटों ने साल 1965 और 1971 के जंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
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