Rajasthan Health Services: राजस्थान की कांग्रेस सरकार जनता को उपचार का कानूनी अधिकार देने के लिए प्रदेश में राइट टू हेल्थ बिल लागू करने जा रही है. हालांकि, इस बिल को पिछले विधानसभा सत्र में ही पेश किया गया था, लेकिन चिकित्सकों के विरोध के कारण इसे टाल दिया गया था. अब एक बार फिर अशोक गहलोत की सरकार इसे लाने जा रही है. यह देख प्रदेश के निजी चिकित्सकों ने फिर से इसका विरोध शुरू भी कर दिया है.
प्रदेश भर में डॉक्टरों ने की हड़ताल
शनिवार को राजस्थान के कई जिलों में डॉक्टरों ने हड़ताल की. इसमें निजी क्लीनिक और अस्पतालों के डॉक्टर तो शामिल हुए ही, सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों ने भी हिस्सा लिया. इस कारण प्रदेश भर में चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह से ठप रही. सभी अस्पतालों में इमरजेंसी सेवाएं भी ठप रहीं. इस कारण लोग इलाज के लिए इधर-उधर भटकने को मजबूर रहे. कितने ही मरीजों के आपरेशन तक टाल दिए गए. इलाज के लिए लोग डॉक्टरों के घर भी पहुंचे, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी.
वार्ता से भी नहीं निकला हल
राजस्थान के डॉक्टरों ने इस बिल को राइट टू हेल्थ की जगह राइट टू किल बताया है. डॉक्टरों का कहना है कि इस बिल के आने के बाद वे मरीजों का फ्री में इलाज करने को मजबूर होंगे. डॉक्टरों के प्रतिनिधिमंडल ने बीते 18 जनवरी को स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ इस पर वार्ता भी की थी. लेकिन, उससे भी कोई हल नहीं निकला. अब डॉक्टर आंदोलन की राह पर हैं.
जानिए, डॉक्टरों के क्या हैं आरोप
1. डॉक्टरों का कहना है कि इस बिल के तहत आपात स्थिति में निजी अस्पतालों को भी फ्री इलाज करना है. लेकिन, आपात स्थित क्या हो सकती है, इसे डिफाइन नहीं किया गया है. इस कारण हम किसी भी मरीज का फ्री में इलाज करने को बाध्य होंगे. ऐसी स्थिति में हम अपने खर्चे कैसे चलाएंगे.
2. डॉक्टरों का कहना है कि इस बिल में गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीज को रेफर करने की स्थिति में एंबुलेंस की व्यवस्था करना अनिवार्य है. अब इस एंबुलेंस का खर्च कौन वहन करेगा, यह क्लियर नहीं किया गया है.
3. इस बिल में राज्य और जिला स्तर पर प्राइवेट अस्पतालों में इलाज और मरीजों के अधिकारों के लिए प्राधिकरण का गठन किया जाना है. डॉक्टरों की मांग है कि इस प्राधिकरण में विषय विशेषज्ञों को शामिल किया जाए ताकि वे पूरी प्रक्रिया को समझ सकें. अगर ऐसा नहीं होगा, तो चिकित्सकों को ब्लैकमेल किया जाएगा.
4. इस बिल के अनुसार निजी अस्पतालों को भी सरकारी योजना के अनुसार सभी बीमारियों का इलाज नि:शुल्क करना है. अब डॉक्टरों का कहना है कि इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों को बाध्य क्यों किया जा रहा है. योजनाओं के पैकेज अस्पताल में इलाज और सुविधाओं के खर्च के मुताबिक नहीं हैं.
5. दुर्घटनाओं के दौरान घायल मरीज को अस्पताल पहुंचाने वालों के लिए तो पांच हजार रुपये प्रोत्साहन का प्रावधान है. लेकिन, अस्पताल वालों को फ्री इलाज करना है. ऐसा कैसे संभव है.
6. दुर्घटनाओं में घायल होने वाले मरीजों को ब्रेन हैमरेज या हार्ट अटैक भी हो सकता है. ऐसे मरीजों का सभी निजी अस्पतालों में तो इलाज भी संभव नहीं है. इस हालत में क्या होगा.
इसके अलावा डॉक्टरों ने अन्य कई मामलों में भी सरकार से अपनी स्थिति स्पष्ट करने की मांग की है. उनका कहना है कि इस बिल में ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिनमें कोई भी चिकित्सक स्वतंत्र होकर मरीज का इलाज नहीं कर सकता.
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