राजस्थान कांग्रेस के सियासी युद्ध में अशोक गहलोत सचिन पायलट पर 20 साबित हुए. पायलट के साथ सियासी युद्ध में गहलोत अपनी और प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की कुर्सी बचाने में कामयाब रहे. गहलोत के करीबी मंत्रियों की कुर्सी पर भी फिलहाल कोई खतरा नहीं है.


36 महीने से कांग्रेस के भीतर सियासी लड़ाई लड़ रहे सचिन पायलट को पार्टी राजस्थान से बाहर निकालने की तैयारी में है. उन्हें महासचिव की जिम्मेदारी मिलने की चर्चा सियासी गलियारों में है. अगर ऐसा हुआ तो आगामी चुनाव में सचिन पायलट की दखल बहुत कम रह जाएगी.


पायलट के पक्ष में 2 बातें भी कही जा रहा है. 1. टिकट बंटवारे में उन्हें तरजीह दी जाएगी और 2. मुख्यमंत्री का चेहरा किसी को भी घोषित नहीं किया जाएगा.


हालांकि, राजनीतिक जानकार इसे भी पायलट के लिए ज्यादा फायदेमंद नहीं मान रहे हैं. इसके पीछे तर्क 2018 के चुनाव को दे रहे हैं. उस वक्त कई जगहों पर गहलोत के समर्थकों को टिकट नहीं मिला, जिसके बाद वे निर्दलीय चुनाव लड़ गए. करीब 12 समर्थक जीतने में भी कामयाब रहे.


बाद में इन्हीं जीते समर्थकों की बदौलत अशोक गहलोत मुख्यमंत्री कुर्सी पर दावा ठोक दिया. गहलोत कुर्सी भी इन्हीं जीते हुए विधायकों के सहारे बचाने में कामयाब रहे. पायलट खेमा भी इसकी शिकायत लगातार करता रहा.


जानकारों का मानना है कि इस बार भी अगर कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब रहती है, तो अशोक गहलोत की दावेदारी को खारिज करना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा. कांग्रेस पहले ही उनकी योजनाओं के सहारे चुनाव लड़ने की बात कह चुकी है. 


ऐसे में सवाल उठता है कि गहलोत ने ऐसा क्या दांव चला, जिससे सचिन पायलट सियासी पस्त होने को मजबूर हो गए?


गहलोत के दांव से कब-कब बैकफुट पर आए सचिन पायलट?


1. बगावत की, विधायक नहीं जुटा पाए- 2019 से जारी सियासी तकरार ने 2020 में बगावत का रूप ले लिया. सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ हरियाणा के मानेसर चले गए. कांग्रेस ने शुरुआत में इसे ऑपरेशन लोटस बताया.


सचिन पायलट को पहले समझौते की मोहलत दी गई, लेकिन उसके बाद उन्हें डिप्टी सीएम पद से ड्रॉप कर दिया गया. 


इधर, अशोक गहलोत ने निर्दलीय और बीएसपी विधायकों के सहारे जादुई आंकड़े को पार कर लिया. 102 विधायक के साथ अशोक गहलोत राजभवन के अहाते में पहुंच गए. सियासी गलियारों में इसे गहलोत का शक्ति प्रदर्शन माना गया. गहलोत के समर्थन में विधायक जुटे, तो हाईकमान का भी साथ मिला. 


हालांकि, हाईकमान की ओर से सचिन को मनाने की कवायद भी जारी रहा. जानकारों के मुताबिक सरकार न गिरती देख पायलट भी मान गए और कुछ मांगों के साथ कांग्रेस में वापस आ गए. इसके बाद भी दोनों गुट में सियासी रस्साकसी जारी रही.


2. हाईकमान से हरी झंडी फिर भी नहीं बन पाए सीएम- 2 साल के लंबे इंतजार के बाद सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद जगी. दरअसल, सोनिया गांधी के कहने पर कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष के चुनाव की घोषणा हुई. अध्यक्ष पद के लिए सबसे बड़े दावेदार अशोक गहलोत ही थे.


अशोक गहलोत को कांग्रेस हाईकमान ने नामांकन के लिए संदेश भी भिजवाया. गहलोत अध्यक्ष बनने के लिए तैयार भी हो गए. कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें नामांकन से पहले मुख्यमंत्री कुर्सी छोड़ने के लिए कहा. कांग्रेस सूत्रों ने उस वक्त दावा किया कि सचिन पायलट को पार्टी ने हरी झंडी दे दी थी. 


पायलट हाईकमान से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद राजस्थान में नेताओं से मेल-मुलाकात भी शुरू कर दी. एक लाइन का प्रस्ताव पास कराने के लिए अशोक गहलोत के घर पर विधायकों की मीटिंग बुलाई गई. इस मीटिंग के बाद पायलट की ताजपोशी तय मानी जा रही थी. 


हालांकि, मीटिंग से पहले ही विधायकों ने बगावत कर दी. गहलोत के करीबी मंत्री शांति धारीवाल के नेतृत्व में 89 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस ने शुरू मे इसे सोनिया गांधी के खिलाफ बगावत माना, लेकिन किसी भी नेता पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. 


3. मोर्चेबंदी की तो ऑपरेशन लोटस का कर दिया जिक्र- अप्रैल की तपती गर्मी में सचिन पायलट ने अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. पायलट ने वसुंधरा राजे के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया और इस पर लड़ाई लड़ने की बात कही. 


अशोक गहलोत ने जवाबी पलटवार किया और 2020 की घटना का जिक्र कर दिया. वसुंधरा के करीबी शोभारानी का उदाहरण देते हुए गहलोत ने कहा कि सरकार बचाना गलत था क्या? दरअसल, राज्यसभा के चुनाव में वसुंधरा के करीबी शोभारानी ने क्रॉस वोटिंग कर दिया.


इसके बाद बीजेपी बैकफुट पर आ गई. माना गया कि राजस्थान में वसुंधरा राजे सरकार गिराने के पक्ष में नहीं है. इसके बाद ही बीजेपी ने दूसरी रणनीति पर काम शुरू कर दी. 


इस बार क्यों चूके?


पायलट के पास विधायकों का बहुमत नहीं- सचिन पायलट के पास जरूरी विधायक नहीं हैं. मानेसर जाने वाले विश्वेंद्र सिंह, रमेश मीणा जैसे कई नेता साथ छोड़ चुके हैं. पायलट के मुकाबले गहलोत के पास 100 से अधिक विधायकों का समर्थन है. 


ऐसे में गहलोत के मर्जी के खिलाफ जाकर हाईकमान उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बना सकती थी. जानकारों के मुताबिक पार्टी चुनावी साल में कोई भी रिस्क नहीं लेना चाह रही है, जिससे हार का ठीकरा उस पर फूट जाए. 


कांग्रेस में एक चर्चा गहलोत और पायलट को छोड़ किसी दूसरे नेता को मुख्यमंत्री बनाने की थी. हालांकि, पायलट ही इस पर राजी नहीं हुए. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक पायलट अपनी लड़ाई का परिणाम किसी और को देने के पक्ष में नहीं थे. 


चुनाव नजदीक, रिवाज नहीं बदला तो हार का ठीकरा फूटता- राजस्थान में विधासभा चुनाव के अब 4 महीने से भी कम का वक्त बचा है. सबकुछ ठीक रहा तो 2 महीने बाद चुनाव आयोग आचार संहिता लागू कर सकती है. राजस्थान में हर 5 साल बाद सरकार बदलने का रिवाज है. 


कांग्रेस अभी सत्ता में है और अगर यहां रिवाज नहीं बदला तो पार्टी सत्ता से बाहर हो सकती है. सचिन पायलट अगर मुख्यमंत्री अभी बन भी जीते तो इस बात की गारंटी नहीं थी कि सत्ता में कांग्रेस आती. ऐसे में हार का ठीकरा उन्हीं पर फूटता.


कांग्रेस ने पंजाब में चुनाव से 5 महीने पहले मुख्यमंत्री बदले थे, लेकिन सत्ता में वापसी नहीं पाई. इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री भी विधायकी का चुनाव हार गए. 


अब ये 2 बातें, महज संयोग या प्रयोग?


मीटिंग से ऐन पहले गहलोत पड़ गए बीमार- जनवरी 2022 में सोनिया गांधी ने राजस्थान मामले को लेकर एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई थी. माना जा रहा था कि इस मीटिंग में कांग्रेस बड़ा फैसला कर सकती है, लेकिन मीटिंग से ऐन पहले अशोक गहलोत के कोरोना पॉजिटिव होने की खबर सामने आ गई.


इसी बीच मार्च 2022 में 5 राज्यों के चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई, जिसके बाद हाईकमान पर ही सवाल उठने लगा. कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान मामले में भी चुप्पी साध ली. 


ठीक 3 साल बाद जुलाई 2023 में मल्लिकार्जुन खरगे ने राजस्थान मामले पर मीटिंग बुलाई. इस बार बैठक से ऐन पहले गहलोत के बीमार होने की खबर आई. गहलोत के पांव पर पट्टी लगी एक तस्वीर भी मीडिया में आई. 


मीटिंग से पहले अशोक गहलोत के बीमार होने को लेकर कांग्रेस के भीतर दबी जुबान खूब चर्चा हुई. सूत्रों के मुताबिक मल्लिकार्जुन खरगे ने भी तंज कसते हुए गहलोत से जल्द पट्टी उतारने के लिए कहा.


पायलट सधे, तो बीजेपी भी वसुंधरा को लगी मनाने- कांग्रेस ने जैसे ही सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच का झगड़ा खत्म कराया. वैसे ही बीजेपी में वसुंधरा राजे को मनाने की कवायद शुरू हो गई. वसुंधरा राजे गुरुवार को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से करीब 1 घंटे तक मुलाकात की है.


माना जा रहा है कि बीजेपी वसुंधरा को कैंपेने कमेटी का चेयरमैन बना सकती है. बीजेपी अब तक राजस्थान में किसी भी नेता को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया है. वसुंधरा अगर कैंपेन कमेटी की मुखिया बनती है तो मुख्यमंत्री पद की बड़ी दावेदार हो जाएगी.


सियासी हलकों में इस बात की चर्चा है कि जब सचिन को कांग्रेस ने मना लिया, तब बीजेपी को वसुंधरा की याद क्यों आई?