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सचिन पायलट को अब भी ‘सब कुछ सही’ हो जाने की उम्मीद क्यों है?

सचिन पायलट और अशोक गहलोत 70 दिनों में 7वीं बार सियासी लड़ाई को लेकर चर्चा में हैं. 5 दिसंबर को गहलोत ने पायलट को गद्दार कहा था, उस वक्त हाईकमान ने इसे रोकने के लिए सीजफायर फॉर्मूला लागू किया था.

राजस्थान कांग्रेस के भीतर पिछले 70 दिनों में 7वीं बार अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सियासी द्वंद चर्चा में है. सचिन पायलट ने एक इंटरव्यू में सितंबर की घटना का जिक्र किया है और अशोक गहलोत के 2 मंत्रियों समेत 3 नेताओं पर कार्रवाई की मांग की है. 

सचिन पायलट ने कहा कि सितंबर में विधायक दल की बैठक तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देश पर आयोजित किया गया था. मीटिंग में 81 विधायक नहीं आए. इतना लंबा समय बीत जाने के बाद भी इस मामले में कार्रवाई नहीं हुई है. 

पायलट ने आगे कहा कि स्पीकर सीपी जोशी ने हाल ही में हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है और कहा है कि 81 विधायकों ने मर्जी से इस्तीफा नहीं दिया था. हाईकमान इस बात की जांच कराए कि किसने यह दबाव विधायकों पर डाला था?

समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में सचिन पायलट ने कहा कि 25 साल से सरकार बदलने की परंपरा चली आ रही है. ऐसे में हाईकमान भी कह चुका है कि वो फैसला करेगा कि कैसे आगे बढ़ना है. अगर परंपरा बदलनी है, तो जल्द फैसला लेना होगा. 

25 सितंबर 2022 में क्या हुआ था?
सोनिया गांधी के निर्देश पर मल्लिकार्जुन खरगे और अजय माकन ऑब्जर्वर बनकर जयपुर गए थे. जयपुर में मुख्यमंत्री आवास पर शाम 7 बजे विधायक दल की बैठक बुलाई गई थी. मीटिंग जब शुरू हुई तो 80 से ज्यादा विधायकों ने आने से इनकार कर दिया. 

ऑब्जर्वर मुख्यमंत्री आवास पर बैठे रहे और सभी बागी विधायक शांति धारिवाल के घर पहुंच गए. यहां से रात 11 बजे विधायकों ने स्पीकर सीपी जोशी को इस्तीफा भेज दिया. रात 12 बजे तक जब विधायक मुख्यमंत्री आवास नहीं पहुंचे तो मीटिंग रद्द करनी पड़ी.

इस मामले को सोनिया गांधी ने अनुशासन समिति के पास भेज दिया. बाद में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी से मिलकर सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी. मामले में मंत्री शांति धारिवाल, मंत्री महेश जोशी और अशोक गहलोत के करीबी धर्मेंद्र राठौर पर तलवार लटकी है. 

राजस्थान में अनुशासनहीन नेताओं पर कार्रवाई नहीं होने की वजह से ही प्रभारी महासचिव अजय माकन इस्तीफा दे चुके हैं.

हाईकमान को अल्टीमेटम या गहलोत का पलटवार
बजट पेश करने के बाद अशोक गहलोत ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने कुछ सोच कर ही मुझे मुख्यमंत्री बनाया है. मैं अंतिम सांस तक राजनीति से रिटायरमेंट नहीं लेने वाला हूं. 'चुनाव में चेहरा कौन होगा' के सवाल पर अशोक गहलोत ने कहा कि चुनाव को वही लीड करता है, जो मुख्यमंत्री होता है. 

गहलोत के इस बयान के बाद से ही सचिन पायलट गुट एक्टिव हो गया है. गुरुवार को सचिन पायलट ने खिलाड़ी लाल बैरवा, राकेश पारिख और रामनिवार गावड़िया से मुलाकात की. पायलट से मुलाकात के बाद खिलाड़ी लाल बैरवा ने दावा किया कि अधिवेशन के बाद सचिन पायलट की ताजपोशी होगी.

बैरवा के बयान के बाद से माना जा रहा है कि सचिन पायलट का खेमा हाईकमान को अल्टीमेटम देने के साथ ही गहलोत गुट पर हमलावर है. सचिन पायलट और उनके खेमे को अब भी उम्मीद है कि राजस्थान कांग्रेस के भीतर जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा.

ऐसे में इस स्टोरी में विस्तार से जानते हैं कि किन वजहों से बागी रूख अख्तियार करने की बजाय सचिन पालयट को सबकुछ सही हो जाने की उम्मीद है?

1. रायपुर अधिवेशन का इंतजार- भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस ने 26 फरवरी को रायपुर में अधिवेशन का आयोजन किया है. अधिवेशन में कांग्रेस वर्किंग कमेटी के चुनाव समेत कई प्रस्ताव भी पास किए जा सकते हैं. इसमें राजनीतिक प्रस्ताव भी शामिल है. अधिवेशन में राजनीतिक प्रस्ताव बनाने की जिम्मेदारी एम वीरप्पा मोइली को सौंपी गई है. 

सचिन पायलट गुट के मुताबिक कांग्रेस हाईकमान ने रायपुर अधिवेशन तक इंतजार करने के लिए कहा है. यही वजह है कि सचिन पायलट ने भी अपनी सक्रियता लगातार बढ़ा दी है. विधायक से लेकर पत्रकार और सोशल एक्टिविस्टों से पायलट लगातार मिल रहे हैं. 

सचिन पायलट पार्टी के कार्यक्रमों में भी लगातार शामिल हो रहे हैं. शुक्रवार को अडानी ग्रुप के मामले को लेकर बेंगलुरू में उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी किया. 

2. विकल्प की मजबूरी- सचिन पायलट के पास अभी इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. पायलट पहले ही कह चुके हैं कि वो बीजेपी में नहीं जाएंगे. ऐसे में उनके पास तीसरा विकल्प नई पार्टी बनाने का है.

राजस्थान की सियासत में तीसरी पार्टी की सफलता का रिकॉर्ड सही नहीं है. अब तक के कई प्रयोग फेल हो चुके हैं. ऐसे में पायलट शायद ही चुनावी साल में तीसरी पार्टी बनाने का रिस्क लें. 

कांग्रेस फिलहाल पायलट के लिए सबसे मुफीद जगह है. अगर मार्च तक हाईकमान ने पायलट का विवाद नहीं सुलझाया तो मई से पायलट गुट अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ घेराबंदी भी कर सकते हैं. इसकी बड़ी वजह चुनाव में 6 महीने का शेष होना है. ऐसे में गहलोत गुट विधायकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की सिफारिश भी नहीं कर पाएगी.

3. पुरानी गलती से सीख- जुलाई 2020 में सचिन पायलट 20 विधायकों के साथ बगावत करते हुए राजस्थान से हरियाणा के मानेसर पहुंच गए थे. उस वक्त अशोक गहलोत की सरकार संकट में आ गई थी और माना जा रहा था कि मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान भी कांग्रेस के हाथ से निकल जाएगी. 

अशोक गहलोत की जादूगरी की वजह से पायलट तख्तापलट करने में नाकाम रहे. सचिन पायलट पुरानी गलती से सीख लेते हुए इस बार जल्दीबाजी नहीं दिखाना चाहते हैं. इसलिए पायलट गुट कांग्रेस के भीतर सबकुछ सही होने की उम्मीद में ही है. 

4. पॉलिटिकिल फ्यूचर भी वजह- सचिन पायलट अभी सिर्फ 45 साल के हैं. ऐसे में 30 साल से ज्यादा का पॉलिटिकिल करियर उनका बचा है. अशोक गहलोत 71 साल के हो गए हैं और अगर इस बार चुनाव हारते हैं, तो पार्टी में पूरी तरह साइड लाइन हो सकते हैं. 

राज्य कांग्रेस में गहलोत के बाद सचिन पायलट ही सबसे बड़ा चेहरा है. इतना ही नहीं, सचिन की गिनती राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के करीबी नेताओं में भी होती है. पायलट यह बात बखूबी जानते हैं कि गहलोत के राजनीति विदाई के बाद उन्हीं का नंबर कांग्रेस में आएगा. ऐसे में जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करना चाहते हैं, जिससे राजनीतिक भविष्य पर असर पड़े. 

5. विधायकों का समर्थन नहीं- सचिन पायलट के पास वर्तमान में हाईकमान के फैसले का इंतजार करने के अलावा कोई बड़ा विकल्प नहीं है. इसकी बड़ी वजह विधायकों का समर्थन नहीं होना है. जुलाई 2020 में जब पायलट मानेसर के रिजॉर्ट में अपने करीबियों को लेकर गए थे, उस वक्त उनके साथ सिर्फ 20 विधायक थे और गहलोत की सरकार बच गई थी. 

गहलोत गुट कई मौकों पर 100 से ज्यादा विधायकों के समर्थन का दावा कर चुकी है. ऐसे में इन विधायकों के विश्वास में लिए कोई फैसला लेना भी हाईकमान के लिए आसान नहीं है. 

अब जाते-जाते जान लीजिए, पायलट गुट की 2 मांगें क्या हैं?
गहलोत को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाना- अशोक गहलोत मुख्यमंत्री रहते 2003 और 2013 में विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं. 2003 में कांग्रेस 55 सीटों पर सिमटकर रह गई थी, जबकि 2013 में पार्टी को सिर्फ 21 सीटें मिली थी. 

सचिन पायलट इसी दलील के भरोसे मुख्यमंत्री पद से अशोक गहलोत को हटाने की वकालत कर रहे हैं. पायलट का कहना है कि कांग्रेस की तरह बीजेपी को भी 1998, 2008 और 2018 में सरकार गंवानी पड़ी थी. ऐसे में परंपरा बदलनी है तो मुख्यमंत्री को बदला जाए.

सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाना- पेंच सिर्फ अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री कुर्सी से हटाने तक का नहीं है. पायलट गुट सचिन को मुख्यमंत्री बनाना भी चाहती है. पायलट गुट का तर्क है कि 2018 में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में प्रदेश अध्यक्षों को मुख्यमंत्री बनाया गया था.

लेकिन राजस्थान मामले में इस फॉर्मूले को नहीं माना गया. ऐसे में हाईकमान पायलट को अब सीएम बनाकर इस गलती को सुधार करें.

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