Rajasthan: 18 किलो सोना और 118 किलो चांदी से राजस्थान के प्रसिद्ध मंदिर में बनी पिछवाई, जानिए क्या है खास
Sanwaliya Set Mandir: चित्तौड़गढ़ के मंडफिया स्थित श्रीसांवलिया सेठ मंदिर की तरफ से यहां चढ़ावे के सोने चांदी से पिछवाईं बनावाई गई है. सुरक्षा के लिए हर समय गार्ड को तैनात किया गया था और सारा काम कैमरे।की निगरानी में हुआ.
Udaipur News: देशभर में कई प्रसिद्ध मंदिर है जहां बड़ी संख्या में भक्त जाते हैं और श्रद्धा से चढ़ावा छढ़ाते हैं. चढ़ावे की बात करें तो कुछ ही मंदिर हैं जहां माहवार करोड़ों में में चढ़ावा आते हैं उनमें राजस्थान का भी एक मंदिर हैं. जहां हर माह औसत 10 करोड़ रुपए का चढ़ावा आता हैं. इसी मंदिर में अब 18 किलो सोना और 118 किलो चांदी से पिछवाईं बनाई गई है. यह सोना और चांदी वहीं है जो भक्तों द्वारा भगवान श्री के चरणों में चढ़ावा दिया.
जिस मंदिर को हम बात कर रहे हैं वह है चित्तौड़गढ़ जिले के मंडफिया स्थिति श्री सांवलिया सेठ मंदिर. मंदिर मंडल की तरफ से यहां चढ़ावे के सोने चांदी से पिछवाईं बनावाई गई है, जिसका काम मंगलवार रात को पूरा हो गया है. अब श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर सांवलिया सेठ ठाकुरजी के दर्शन करने जाएंगे तो पिछ्वाई को भी देख पाएंगे. यह पिछवाई मंदिर के गर्भ गृह में ठाकुरजी की प्रतिमा के पीछे बनाई गई है.
16 करोड़ रुपए हुई खर्च, तैनात हुए गार्ड
एडीएम अभिषेक गोयल ने एबीपी को बताया कि पिछवाई बनाने में 18 किलो सोना और 118 किलो चांदी का प्रयोग किया गया. सागवान की लकड़ी के पहले से पैनल बने हुए थे. उन पैनल पर सोने और चांदी को गलाई, जो पतरे जैसा हो गया. लकड़ी के ऊपर सोने चांदी के पतरे को लगाया जो की पिछवाई बनी. पिछवाई बनाने के लिए गुजरात के राजकोट से मशीन मंगवाई गई थी. बनाने वाली टीम लगातार यहीं रहकर कार्य कर रही थी.
सुरक्षा के लिए हर समय गार्ड को तैनात किया गया था और सारा काम कैमरे की निगरानी में हुआ. उन्होंने यह भी बताया कि पहले लकड़ी पर गोल्ड पॉलिश की हुई थी. उसी जगह कई सालों में जो भगवान का चढ़ावा आया वह उन्हीं को समर्पित किया.
ऐसे बनाई गई पिछवाई
उन्होंने बताया कि पिछवाई बनाने के लिए टीम आई थी. उन्होंने 18 किलो सोना और 118 किलो चांदी को गलाया. मेल्ट की गई चांदी को मशीन से स्लैब बनाए यानी पतरे के रूप में आई. स्लैब या कहे पतरे को पिचका कर पतली शीट्स बनाई गई. ठाकुर जी की प्रतिमा के पीछे लगे सागवान के पैनल्स को उतार कर उन पर सोने-चांदी से बनाए गए स्लैब को लगाया गया. यह काम करीब 3 माह में पूरा हुआ.