Chandrasel Mahadev Temple: राजस्थान के कोटा में स्थित 10वीं सदी का चंद्रसेल महादेव मंदिर अपनी स्थापत्य और मूर्ति कला की बेजोड़ कलाकारी की दौलत अपने में समेटे हुए हैं. 700 बीघा जमीन के मालिकाना हक वाले इस मंदिर का अधिकतर हिस्सा जमींदोज हो चुका था, लेकिन पुरातत्व विभाग द्वारा अब इसका जीर्णोद्धार किया जा रहा है.


इसके मूल स्वरूप को बचाते हुए यहां काम चल रहा है. हालांकि काम को चलते हुए तीन साल हो गए लेकिन काम पूरा नहीं हुआ. चन्द्रेसल गांव के प्रेम शंकर गौतम ने बताया कि यहां मान्यता है कि यहां जलाभिषेक करने मात्र से मनोकामना की पूर्ति होती है. यहां आसपास के सैकडों गांव के लोग सावन में और महाशिवरात्रि पर पूजन करने आते हैं और मेला सा लगा रहता है.


चंद्रलोई नदी के तट पर है यह मंदिर
चंद्रलोई नदी के किनारे स्थित इस शिव मठ में चार देवालय हैं. जिसमें शिव मंदिर के अलावा विष्णु मंदिर भी प्रमुख है. शिव मंदिर में कई प्रतिमाएं विद्यमान हैं जो मूर्तिकला की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं. इस मंदिर की उचित देखरेख के अभाव में शिव मंदिर का शिखर और उसकी आसपास की दीवारें जीर्ण-शीर्ण हो गई हैं. शिवभक्तों की आस्था का केंद्र रहे इस मंदिर में बेशकीमती संपदा इधर-उधर बिखरी हुई है, जिसकी सार संभाल करने वाला कोई नहीं है. चन्द्रलोई नदी में इन दिनों सैकडों की संख्या में मगरमच्छों का डेरा है. 6-7 फीट तक के मगरमच्छ यहां देखे जा सकते हैं, जिस कारण कोई नदी में स्नात तक नहीं कर सकता. यह नदी 12 माह बहती रहती है और आगे जाकर चम्बल में समाहित हो जाती है.


मंदिर के पास 750 बीघा सिंचित भूमि
मंदिर के पुजारी मंहत के अनुसार, मंदिर के नाम पर 750 बीघा सिंचित भूमि है. लेकिन जिला प्रशासन द्वारा इसकी समय पर सुध नहीं लिए जाने के कारण श्रद्धालुओं में नाराजगी है. इस मंदिर पर होने वाली खेती का पैसा जिला प्रशासन के खाते में जाता है, अब तक मंदिर के खाते की जमीन का करोड़ों रूपया सरकार के पास हैं, लेकिन उसका उपयोग यहां नहीं हो रहा है.


 जिंदा नागा साधुओं ने यहां ली थी समाधि
ग्रामीण बताते हैं कि यहां नागा साधु रहा करते थे. जो कभी मंदिर से बाहर नहीं आते थे, एक गुफा सीधी नदी तक जाती थी और वहां से वह स्नान आदि कर वापस मंदिर में चले जाते थे. ग्रामीणों का कहना है कि दो साधुओं ने यहां जिंदा ही समाधी ली थी, जबकी अन्य कई नागा साधुओं की यहां समाधि आज भी देखी जा सकती है.


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