Udaipur Prakateshwar Mahadev Mandir: श्रावण मास यानी भगवान शिव का सबसे पसंदीदा महीना. इस माह में शिवालयों पर बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ रहती है. पूरे माह भक्त व्रत करते हैं. साथ ही मंदिरों की बात करें तो कई मंदिर हैं जो प्राचीन हैं और जहां पुजारी पूजा करते हैं. आज हम ऐसे शिव मंदिर बात करते हैं, जहां शिवलिंग स्वयं ही नदी से प्रकट की हुआ था. सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी स्थापना कर जो मंदिर बनाया गया, वहां 12 से 14 साल के बच्चे पुजारी हैं. यही बच्चे भगवान शिव की पूजा करते हैं और पूरे मंदिर का प्रबंध भी यही संभालते हैं. आइए जानते हैं कहां है यह मंदिर और किस तरह से बच्चे आराधना में लीन हैं.


प्रकटेश्वर महादेव का मंदिर शहर के समीपवर्ती बेदला गांव के अस्पताल चौक में स्थित है. क्षेत्र के बडगांव उपप्रधान प्रताप सिंह ने बताया कि यह मंदिर लगातार अप्रतिम आस्था का केंद्र बन रहा है. इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग काफी पुराना है. वर्ष 1998 में नागपंचमी के दिन बेदला नदी में खुदाई के दौरान इसका प्राकट्य हुआ. इसके बाद हिंदू संगठनों और गांव के श्रद्धालुओं ने इसको इस सार्वजनिक चबूतरे पर स्थापित कर दिया. करीब 17 वर्षो बाद इस मंदिर को हालही जन सहयोग के माध्यम से बनवाया और पिछले वर्ष सूरजकुंड के महान संत अवधेशानंद जी महाराज के हाथो इस नव निर्मित मंदिर में शिवलिंग को प्रतिष्ठित किया गया.


14 साल का हर्षुल शर्मा है मंदिर का मुख्य पुजारी
उपप्रधान प्रताप सिंह राठौड़ ने बताया की इस मंदिर की खासियत है कि इसकी साज संभाल छोटे बच्चो के हाथो से होती है. मंदिर के मुख्य पुजारी 13 वर्ष के हर्षुल शर्मा है. वह स्कूल जाने से पूर्व सुबह जल्दी उठ और शाम को मंदिर में पूजा अर्चना और आरती का जिम्मा संभालते है. हर्षुल के इस कार्य में क्षेत्र के हर घर के करीब एक दर्जन बच्चे जो 12- 14 वर्ष के है, वह पारंपरिक परिधान में मंदिर से जुड़े सभी कार्य कलापो में कंधे से कंधा मिलाकर हाथ बढ़ाते है. इस मंदिर में आसपास के रहने वाले वरिष्ठ लोग और मंदिर समिति के सदस्य सिर्फ अर्थ से जुड़ी व्यवस्था देखते हैं. बाकि महादेव की पूजा, आकर्षक श्रृंगार, मंदिर की साफ सफाई और रखरखाव बच्चे ही करते हैं 


निज नैतिक, सामाजिक और राष्ट्र शिक्षा पर भी दिया जाता है पूरा ध्यान
मंदिर से जुड़े शिक्षक आदित्य सेन बताते है कि महादेव की सेवा पुजा के अलावा मंदिर में मोहल्लों के इन बच्चों के व्यक्तित्व को तराशने के लिए समय समय पर सामाजिक और नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी मंदिर प्रांगण में दी जाती है. ताकि राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव इन बच्चो में अभी से विकसित हो सके. यहां तक कि आरती की शुरुआत भारत माता की जय के साथ होती है.  


यह भी पढे़ं: Rajasthan Elections 2023: कांग्रेस के नए संगठन की लिस्ट में दिल्ली बैठक का दिखा असर, बहुत कुछ रह गया बाकी, आएगी एक और लिस्ट