पाताल में समा रहा शिवलिंग? सौ साल से जल रही ज्योति, जानें 1500 साल पुराने नीलकंठ महादेव मंदिर का इतिहास
Shiv Mandir in Kota: सावन का पवित्र माह भगवान शिव को समर्पित माना जाता है. इस मौके पर कोटा शहर के शिव मंदिरों में हमेशा भक्तों का तांता लगा रहता है. यहां के मंदिरों की अपनी महिमा और महत्ता है.

Kota News Today: कोटा शहर में शिव मंदिरों की अपनी ही महिमा हैं. यहां पर एक दर्जन से अधिक मंदिर ऐसे होंगे जो अपने आप में ऐतिहासिक और पौराणिक हैं. इनकी कथाएं भी आश्चर्य चकित करने वाली है, कहीं जमीन से सैकड़ों फीट नीचे हैं तो कहीं चंबल में शिव का निवास हैं.
भक्तों की कहीं 525 शिवलिंगों में आस्था है, तो कहीं अनवरत झरना बहते रहने का चमत्कार है. हम सावन के सोमवार को कोटा के नीलकंठ महादेव के दर्शन करा रहा हैं, जो एक इंच से भी छोटे हैं. कोटा के रेतवाली में स्थित 1500 साल पुराने नीलकंठ महादेव के दर्शन मात्र से ही कष्टों का निवारण हो जाता है.
पाताल में समाता जा रहा शिवलिंग
पुराने कोटा शहर के हृदय में बसा यह मंदिर अपनी महिमा स्वयं प्रकट करता है. यहां पूजा करने वालों की सोमवार को कतारें लगी रहती है, शिवलिंग के दर्शन तो यहां बड़ी ही मुश्किल से होता है.
इसकी वहज यह है कि पवित्र शिवलिंग हर समय पुष्प और बेलपत्रों से ढ़का रहता है. यहां विराजमान शिवशंभू पाताल लोक में समाते जा रहे हैं. पहले यह ऊपर की और स्पष्ट दिखाई देते थे, लेकिन अब इनके दर्शन करना चुनौतिपूर्ण है.
100 साल से अनवरत जल रही है ज्योति
नीलकंठ महादेव मंदिर के पुजारी शिव शर्मा ने बताया कि शिव शंकर भोलेनाथ यहां अपने आप आए और उसके बाद जब इनकी महिमा बढ़ती गई तो यहां भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया. सावन और शिवरात्रि को तो दर्शन लाभ प्राप्त करने के लिए काफी मशक्कत करनी होती है.
मंदिर के पुजारी शिव शर्मा ने बताया कि यह शिवलिंग 1500 साल पुराना बताया जाता है और यहां ज्योति 100 साल से भी अधिक समय से अनवरत जल रही है. उन्होंने बताया कि यहां पर देश विदेश से भी लोग नीलकंठ महादेव के दर्शन को आते हैं.
कोचिंग स्टूडेंट भी अपनी सफलता का आशीर्वाद लेने यहां बड़ी संख्या में आते हैं. पुजारी शिव शर्मा ने बताया कि शिवलिंग ऊपर बहुत ही सूक्ष्म अवस्था में हैं, लेकिन प्राचीन काल से यह सुनते आ रहे हैं कि इनकी जड़ें पाताल तक जा रही हैं.
1500 साल पुराने शिलालेख
पुजारी हिमांशु शर्मा ने बताया कि नीलकंठ महादेव मंदिर में शिवजी के साथ ही यहां सामने दक्षिणमुखी हनुमानजी की प्रतिमा है और उसके ठीक सामने काल भैरव विराजमान हैं, इन दोनों के मध्य एक साधु की समाधी है.
जिसके पास करीब 1500 वर्ष पुराना शिलालेख लगा हुआ है. यह शिलालेख इतना पुराना है कि आज तक इसकी भाषा को कोई समझ नहीं पाया. जिस समय शिवजी यहां विराजमान हुए उस समय पास में चंबल का पूरा क्षेत्र जंगल था.
यहां जंगली जानवर रहा करते थे. कोटा के दरबार ने यहां पर साधु की समाधि स्थापित की. इसके साथ ही यहां नवगृह, गंगा गणेश जी की भी प्रतिमाएं हैं जिनकी नियमित पूजा होती है.
यहां मिलता है निरोगी का आशीर्वाद
भगवान नीलकंठ के मंदिर में सवा लाख महामृत्युंजय जाप के साथ ही महामृत्युंजय रुद्राभिषेक किया जाता है. शिव के भक्तों का यहां तांता लगा रहता है. इस बार सरकार भी यहां कार्य करवा रही है.
यही नहीं यहां नमक चमक का पाठ, 11 नमस्ते पाठ होते हैं और 11 बार रुद्राभिषेक किया जाता है. जिससे रोग दूर होने के साथ ही सदा निरोगी का आशीर्वाद मिलता है.
मंदिर में नंदलाल शर्मा का परिवार सालों से पूजा अर्चना करता चला आ रहा है. माना जाता है कि नीलकंठ महादेव की पूजा अर्चना से बड़े- बड़े कार्य सफल हो जाते हैं, जिससे इनकी महिमा दूर-दूर तक फैली हुई हैं.
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