Jaipur News: सुप्रीम कोर्ट में इस समय समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को मान्यता देने की याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है. ऐसे में एक संत ने गुरुवार को कहा कि ऐसा कोई भी फैसला 'मानवता पर धब्बा' होगा. उन्होंने लोगों से इसे स्वीकार नहीं करने का आह्वान किया. गोवर्धन पीठम, पुरी के 145वें शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने गोपेश्वर महादेव मंदिर में 'गुरु दीक्षा' कार्यक्रम में मीडियाकर्मियों से कहा, 'यह हमारा मामला है. कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए. जजों को बताया जाना चाहिए कि प्रकृति ऐसे लोगों को सजा देगी. अगर अदालत का ऐसा कोई फैसला है तो इसे मानने की कोई आवश्यकता नहीं है.'
'क्या पुरुष जज ने पुरुष से शादी की'
उन्होंने कहा, 'जिन न्यायाधीशों से फैसला आने वाला है या आएगा उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या आपने नपुंसक से विवाह किया है, नपुंसक होकर? यदि आप एक पुरुष हैं, तो क्या आपने एक पुरुष से शादी की है? यदि आप एक महिला हैं तो क्या आपने एक महिला से विवाह किया है? यह मानवता पर धब्बा है.' निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि इससे व्यभिचार को बढ़ावा मिलेगा. धार्मिक क्षेत्र में विवाह का पहला स्थान है. यह हमारे अधिकार क्षेत्र का मामला है, अदालत का नहीं. समलैंगिकता पशुता की ओर ले जाएगी, यह प्रकृति के खिलाफ है.
समलैंगिक शादी पर SC में सुनवाई
समलैंगिक शादी को मान्यता देने की मांग को लेकर दायर 20 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले पीठ में चल रही है. इसमें उनके अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं. इस पर छह दिन की सुनवाई हो चुकी है. अब अदालत ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है कि वे बताएं कि समलैंगिक जोड़ों की शादी को कानूनी मान्यता न दी जाए तो इससे उन्हें क्या-क्या फायदा होगा. इस मामले की अगली सुनवाई अब तीन मई को होगी.
समलैंगिक शादी पर बंटी हुई राय
इस सुनवाई पर केंद्र सरकार ने नाराजगी जताई है. केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने बुधवार को कहा था कि समलैंगिक विवाह के मान्यता के मामले को संसद पर छोड़ देना चाहिए. इस तरह के मामलों का फैसला कोर्ट में नहीं हो सकता. उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट केवल कमियों को दूर कर सकता है, लेकिन ऐसे फैसले नहीं ले सकता, जिससे देश का हर नागरिक प्रभावित हो.
इस मामले पर लोगों की राय भी बंटी हुई है. इस मामले में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कहा था कि 99 फीसदी लोग समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के खिलाफ हैं. इसलिए सुप्रीम कोर्ट को कानून बनाने का काम संसद पर छोड़ देना चाहिए. उसके इस बयान का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ.देश के लॉ स्कूलों के 600 से अधिक छात्रों और कई LGBTQIA+ ग्रुपों ने बार के इस बयान की निंदा करते हुए उसे विचित्र बताया था.
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