Sheetla Mata Puja 2024: राजस्थान में होली के 7 दिन बाद आता है बासोड़ा, शीतला माता के साथ की जाती है गधे की पूजा, जानें वजह
Sheetla Mata Puja Date 2024: हिंदू वैदिक ज्योतिष के मुताबिक, होली के सात दिन बाद शीतलाष्टमी आती है. इसी शीतलाष्टमी के दिन सीतला माता की पूजा अर्चना की जाती है. इस पूजा को विशेष महत्व माना जाता है.
Sheetla Mata Puja 2024: समाज में गधे को सबसे 'बुद्धू' जानवर माना जाता है. इसलिए किसी की गधे से समानता देने पर वह नाराज हो जाता है. समाज में गधे को हीन भावना की नजर से देखा जाता है. इनके सबके बावजूद गधे की पूजा की जाती है.
दरअसल, महिलाएं शीतला सप्तमी और अष्टमी पर गधे के माथे पर हल्दी रोली का तिलक लगाती हैं और पकवान खिलाकर पूजा करती हैं. हिन्दू वैदिक ज्योतिष के अनुसार, चैत्र महीना की कृष्ण पक्ष की अष्टमी और होली के सात दिन बाद शीतलाष्टमी आती है.
मान्यता के अनुसार, शीतलाष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा अर्चना की जाती है. शीतलाष्टमी की पूजा को बासोड़ा भी कहते हैं. इस दिन रात को पकवान बनाकर सुबह शीतला माता की पूजा अर्चना कर उनको बासी भोजन का भोग लगाया जाता है. पूजा अर्चना के बाद परिवार के सभी लोग बासी भोजन ही करते हैं.
गधे की क्यों की जाती है पूजा?
शीतला माता की पूजा करने के लिए घर की महिलाएं शीतला माता के मंदिर जाती हैं. शीतला माता की पूजा के बाद मंदिर में गधे की पूजा भी करते हैं. महिलाएं गधे को हल्दी रोली का तिलक लगाकर उसको पकवान खिलाने की कोशिश करती हैं. ऐसी मान्यता है कि गधा शीतला माता की सवारी है. इसलिए शीतला माता की पूजा के साथ उनकी सवारी यानी गधे की भी पूजा की जाती है.
नई दुल्हन करती है मंदिर में शीतला माता की पूजा
उत्तर भारत में शीतलाष्टमी का विशेष महत्व माना जाता है. अक्सर गांवों और शहर में शीतला माता का मंदिर होता है. जहां शीतलाष्टमी पर पूजा की जाती है. कई जगह तो लड़के की शादी के बाद नई दुल्हन को शीतला माता के मंदिर में लेकर जाते हैं और वहां नई दुल्हन द्वारा पूजा अर्चना की जाती है, जिसके बाद ही वह घर के किसी काम को हाथ लगाती हैं.
बासोड़ा मनाने के पीछे ये है मान्यता
शीतला माता की पूजा करने के बाद बुजुर्ग महिलाएं कहानी सुनाती हैं. कहानी सुनाते समय बुजुर्ग महिला ने बताया की एक बार की बात है, एक नगर में सभी ने शीतला माता की पूजा अर्चना करने के लिये गर्म और गरिष्ठ पकवान बनाकर भोग लगाया. जिससे शीतला माता का मुंह जल गया और शीतला माता नाराज हो गई. माता के प्रकोप से नगर में आग लग गई और सभी के घर जलकर राख हो गए.
पूरे नगर में सिर्फ एक बुढ़िया का ही घर ऐसा था जो जलने से बच गया. नगर वासियों ने उस बुढ़िया से पूछा कि तुम्हारा घर क्यों नहीं जला? बुढ़िया ने बताया की मैंने शीतला माता की पूजा के लिए रात को प्रसाद बनाकर रखा था और सुबह शीतला माता को बासी प्रसाद का भोग लगाया. जिससे शीतला माता ने मेरे घर को जलने से बचा लिया.
सभी नगरवासियों ने शीतला माता से क्षमा मांगी और आने वाले सप्तमी और अष्टमी तिथि पर शीतला माता का बासोड़ा पूजन करने का निर्णय लिया. तभी से होली के बाद आने वाली सप्तमी अष्टमी को शीतला माता की पूजा कर बासोड़ा मनाया जाता है.
वैज्ञानिक पर्व के रूप में भी हैं मनाते
शीतला माता का व्रत और पूजा को वैज्ञानिक पर्व भी कहा जाता है. होली की शीतला अष्टमी से गर्मी शुरू हो जाती है. इसलिए यह पर्व दर्शाता है कि शीतला अष्टमी के बाद बासी भोजन नहीं करना चाहिए और न ही गर्म पानी से नहाना चाहिए. चैत्र महीने से गर्मी शुरू हो जाती है और शरीर में अनेक प्रकार के विकार भी हो जाते हैं.
इसलिए मनुष्य को चेचक जैसे रोगों से बचाने के लिए, शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का व्रत और पूजा करने का चलन प्राचीन काल से ही चला आ रहा है. शीतला अष्टमी के व्रत और पूजा से शारीरिक शुद्धता, मानसिक पवित्रता और गर्मी के मौसम में खानपान की शुद्धता और सावधानियों का संदेश मिलता है.