Shradh 2022: कई बार हम जानें अनजाने अपने पितृ दोषों को इग्नोर कर देते है इसलिए आज हम बात करेंगे कि पितृ दोष से मुक्ति कैसे पाते है. पितृ पक्ष के दौरान आप एक छोटा-सा उपाय करके अपने पितृ दोषों से मुक्ति पा सकते है. कहा जाता है जो संस्कार त्यागकर चले गए है उनका ऋण चुकाने के लिए हमे श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध जरूर करना चाहिए. चाहे कोई भी हो नाना-नानी, दादा-दादी या फिर माता-पिता अलग-अलग दिन अलग-अलग तिथियों पर सभी के निमित श्राद्ध में धूप-दान, तर्पण, पिंड दान, ब्राह्मण, भोज करवाकर पितरों की तृप्ति की जाती है. लेकिन अगर आप भी किसी कारणवश श्राद्ध नहीं करा पा रहे है, पितृ दोष की शांति नहीं करा पा रहे है तो एक और आसान-सा तरीका है जिससे आप अपने पितृ दोष से मुक्त हो सकते है.


गीता के पाठ से पाएं पितृ दोष से मुक्ति


दरअसल पितृ दोष से मुक्ति पाने का वो रास्ता है भगवद गीता का. जी हां गीता के पाठ से भी पितृ दोष से मुक्ति पाई जा सकती है. गीता में लिखा है क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि, व्यग्र होती है जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है और जब तर्क मरता है तो मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है और उसका पतन शुरू हो जाता है और इस आधार पर बहुत सारी ज्ञान और बुद्धि खोलने वाली बाते गीता में लिखी गई है.


गीत शब्द का अर्थ है गीत और भगवद शब्द का अर्थ भगवान यानी कि भगवद गीता को भगवान का गीत कहा गया है. पितृपक्ष में श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करने से पूर्वजों का उद्धार होता है. पितृ दोष से मुक्ति और पितृ शांति मिलती है. शास्त्रों में इसे पितरों के कल्याण का सबसे सरल उपाय बताया गया है. जन्म के साथ ही मनुष्य पर देव, गुरु पितृ ऋण होते हैं. गुरु के बताए रास्ते का पालन करके गुरु ऋण, देवताओं की पूजा करके देव ऋण तथा पूर्वजों का तर्पण श्राद्ध, पिंडदान करके पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है.


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पितृ मुक्तिस से जुड़ा सातवां अध्याय


अब अगर आप गीता के सारे अध्याय नहीं कर सकते तो  हम आपको बताते हैं वो स्पेशल तरीका जिसे पढ़ने या सुनने मात्र से आपको पितृ दोष से मुक्ति मिलकर अपने पितृरेश्वरों का आशीर्वाद मिलेगा और वो चमत्कारिक उपाय है गीता का सप्तम अध्याय. जी हां गीता का सप्तम अध्याय हमारे पितृ मुक्ति और मोक्ष से जुड़ा हुआ है जो भी मनुष्य पंडितों को भोजन नहीं करा सकते है, अब्रॉड में रहते है वो कैसे पितृ दोष से मुक्ति पाएं उनके लिए पॉसिबल नहीं होता है कि वो विधिपूर्वक तर्पण, भोजन, व पिंडदान आदि करें. तो ऐसे में ये पाठ करने मात्र से आपको श्रेष्ठ फलों की प्राप्ति होगी.


श्राद्ध कर्म पूर्ण करने के पश्चात एक आसन बिछाइए और पास में छोटा सा कलष भरकर रखिए. प्रथम श्राद्ध के दिन अर्थात पूर्णिमा के दिन जब से श्राद्ध शुरू होते है. उस दिन दाहिने हाथ में जल रखकर संकल्प लीजिए कि मैं ये गीता पाठ अपने पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति हेतु करूंगा. अब दिन है सोलह और गीता के अध्याय के अठाराह तो जिस दिन घर में हमारे पितरों का श्राद्ध होता है उस दिन दो अध्यायों का पाठ करना चाहिए. आसपास रहने वाले बुजूर्ग और घर परिवार के सदस्यों को विषेष रूप से बिठा कर गीता पाठ करना अत्यंत लाभदायी है.


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