Shradha Pura 2022: लोन, ऋण, कर्ज या उधार. इन शब्दों से सभी परिचित हैं. आमतौर पर किसी से धन अथवा कोई वस्तु कुछ समय के लिए मांगी जाए और समय आने पर पुनः लौटा दी जाए, इसे ही ऋण, कर्ज अथवा उधार कहते हैं. संसार में हर किसी को ऋण की आवश्यकता जीवन में कभी न कभी पड़ जाती है. तो हम बैंकों से, संस्थानों से या परिचितों से लोन ले लेते हैं. फिर समय पर इन्हें चुकाना पड़ता है. नहीं चुकाएं तो कुड़की आती है, समाज में अपमानित होना पडता है. लेकिन धन अथवा वस्तु के अलावा भी ऋण होते हैं, जिन्हें आप किसी से मांगते भी नहीं, फिर भी हो जाते हैं. 


जिस प्रकार उधार मांगा गया धन और वस्तु लौटाना अनिवार्य होता है, तभी आप ऋण मुक्त होते हैं ठीक उसी प्रकार आपको तीन ऐसे ऋण भी चुकाने होते हैं जो आपने मांगे अथवा लिए नहीं, लेकिन फिर भी आप पर ये ऋण बने रहते हैं. कौन से हैं ये ऋण? हमारे पुराण और शास्त्र कहते हैं ये तीन ऋण हैं- देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण. पितृ-ऋण से मुक्त होने की क्रिया ही श्राद्ध है. लेकिन श्राद्ध तभी फलदायी है, जब वह श्रद्धा के साथ किया जाए. पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना आवश्यक है. जिन माता-पिता ने आपकी आयु, आरोग्यता, शिक्षा, विवाह, सुख-सौभाग्य, आदि की अभिवृद्धि के लिए कई जतन किए हमें उनके ऋण से मुक्त होने के लिए श्राद्ध-कर्म पूर्ण श्रद्धा के साथ करना होता है. श्राद्ध-कर्म न करने, पितृ-ऋण से मुक्त न होने पर कई प्रकार के कष्ट हो सकते है. इसीलिए वर्ष में एक बार यानी उनकी मृत्यु तिथि पर विधि-विधान युक्त श्राद्ध करने से यह ऋण उतर जाता है. श्राद्ध से प्रसन्न होकर पितर अपनी संतान, अपने परिवार को आयु, वृद्धि और धन, विद्या, मोक्ष, सुख, यश, कीर्ति, बल, लक्ष्मी, अन्न, द्रव्य, स्वर्ग और सुख प्राप्त होने का आशीर्वाद देते है. 


नहीं किया श्राद्ध तो क्या होगी परेशानी? 
अगर आपको लगता है कि आपका परिवार आर्थिक, मानसिक, संतानोत्पत्ति और अन्य अभावों से पीड़ित हैं? या कोई काम हाथ में आकर भी फिसल जाता है? निराशा ने नींद उड़ा दी है? अगर इन सवालों के जवाब हां हैं तो क्या आप यह नहीं जानना चाहते कि इसके क्या कारण हैं? जीवन की गाड़ी में ब्रेक क्यों लग रहे हैं? राह में स्पीडब्रेकर्स जैसे झटके क्यों आ रहे हैं? अगर ऐसा हो रहा है तो पता कर लीजिए कि कहीं यह पितृ दोष का प्रभाव तो नहीं है? अपने पितृ गणों के निमित्त श्राद्ध नहीं करने, उनकी अवहेलना करने पर असंतुष्ट पितृ गण अपने वंशजों को श्राप दे देते हैं, तब संबंधित परिवार संकटों से घिर जाता है. यही पितृ दोष कहलाता है. 


ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि अगर किसी मृत व्यक्ति का श्राद्ध नहीं किया जाए तो परिवार को अभिशप्त, कष्ट झेलना पड़ता है, साथ ही वंश तक भी आगे नहीं बढ़ता. यहां तक कि परिवार में असामयिक मृत्यु भी हो सकती है. अगर ऐसा हो रहा है तो निश्चित मानिये कि आप पितृ-दोष से ग्रसित हैं. जहां पितरेश्वरों के श्राद्ध नहीं किए जाते, उन कुलों में न तो शूरवीर, यशस्वी लोग उत्पन्न होते हैं और न वहां आरोग्य रहता है, न सौ वर्ष की किसी को आयु मिलती है, न वे लोग कोई उत्तम कार्य कर पाते हैं. उनका जीवन रोग, शोक, कायरता, चिंता, परितोष तथा अकाल मृत्यु से ही ग्रस्त रहता है. इसीलिए अपने कुल की वृद्धि के लिए व्यक्ति को पितृ श्राद्ध श्रद्धापूर्वक अवश्य ही करना चाहिए. 
  
एक ऐसा दोष है जो कष्ट देता है, जीवन के पथ में बाधाएं खड़ी कर देता है, परेशानियों के कारण सिर ऊंचा नहीं हो पाता. बिजनेस में कौड़ी का भी लाभ नहीं होता, उल्टे लाखों के घाटे की चपत लगने लगती है. परिवार में कभी किसी को रोग, कभी घटना-दुर्घटना, कभी किसी की अकाल मृत्यु, पर इन सबके लिए दोषी-जवाबदेह तो आप ही हैं. क्योंकि आपने अपने पितरों को भुला दिया, उनका श्राद्ध तक नहीं कर पाए. उनके प्रति बे-परवाह-लापरवाह हो गए. इनके निमित्त स्नान, दान, तर्पण तक करना उचित नहीं समझा. आपके अपने ही परिवार में मृतक व्यक्ति, दादा, दादी और कोई अन्य पूर्वज की आत्मा की किसी कारणवश मोक्ष गति नहीं हो पाती तब वे असंतुष्ट, अतृप्त स्थिति में अपने ही घर में इनविजीबल, अदृश्य रूप में रहते हैं. उसकी विशेष कामनाएं अपने परिवार से जुड़ी होती हैं. मोहवश अपने परिजनों से विच्छेद नहीं हो पाता. 


समय-समय पर वह घर में अपनी स्थिति का आभास भी दिलाती है. उसकी अदृश्य, पारदृष्टि परिवार के सभी कार्यकलापों पर रहती है. ऐसा नहीं समझियेगा कि कोई भी एकांत उनकी इस दृष्टि से छिपा हो सकता है. सतपथ ब्राह्मण में तो इतना तक स्पष्ट किया गया है कि सूक्ष्म, अदृश्य शरीर धारी होने से पितृ छिपे रहते हैं, इसी कारण वे जल, अग्रि, वायु प्रधान होते हैं. इसीलिए उन्हें यहां वहां, लोक-लोकांतरों में जाने-आने में कोई बाधा नहीं होती.


ऐसे पाएं पितृ दोष से मुक्ति 


श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों का स्मरण करते हुए ऊँ पितराय नमः मंत्र का 21 बार प्रतिदिन जाप करें.


हर एकादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, रविवार और गुरुवार के दिन पितरों को जल दें और उनसे क्षमा याचना करें.


पितृ पक्ष में तांबे के लोटे में काला तिल, जौ और लाल पुष्प मिला कर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर पितरों को जल चढ़ाएं. साथ ही पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाकर ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का 11 बार जाप करें.


रोज सूर्य को अघ्र्य देते समय ऊँ सूर्याय नमः मंत्र का 21 बार जाप करना चाहिए.  


हर अमावस्या के दिन त्रिपंडी श्राद्ध करें. ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान, दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद ग्रहण करें.
 
पितृ दोष से मुक्ति पाने के उपाय के साथ ही इस बात का ध्यान रखे की अपने मां-बाप और बुजुर्गों का कभी भी अपमान न करे, उन्हें सम्मान दे. यदि आप किसी का भी दिल दुखाते है तो स्वयं खुश रहेंगे ये कैसे सोच सकते है.


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