Teja Dashmi: तेजा दशमी का पर्व पूरे राजस्थान(Rajasthan) में धूमधाम से मनाया जा रहा है. तेजाजी महाराज के मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है.  लोक देवता 'तेजाजी' की राजस्थान और मध्य प्रदेश में 'सर्परूप' में बहुत मान्यता है. हर साल भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन राजस्थान के सभी गांवों, कस्बों और शहरों में 'तेजाजी' का मेला लगता है. इस अवसर पर हाड़ौती क्षेत्र के तलवास एवं आंतरदा गांव में 'तेजदशमी' और 'अनंत चतुर्दशी' के अवसर पर सर्प की सवारी, जहां जन कौतूहल का केंद्र है. 


लेकिन हम आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं जहां तेजा दशमी के मौके पर सांप की सवारी निकाली जाती है. इन गांवों के लोगों के हाथ में सांप रहते हैं और लोग सांप तेजाजी महाराज का रूप मानकर उनका आशीर्वाद लेते हैं. बूंदी जिले के आंतरदा गांव में पिछले 150 साल से इस परंपरा निभाई जा रही है. जहां गांव में एक पेड़ पर सांप होते हैं और वहां लोग गाजे-बाजे के साथ सवार होकर आते हैं और सांप को हाथ में लेकर तेजाजी महाराज के मंदिर में ले जाते हैं.वहां उन्हें दूध पिलाया जाता है.
यह कारवां सुबह से शुरू होता है और शाम तक जारी रहता है. गांव की हर गली में लोगों की भीड़ लगी रहती है, जहां लोक नृत्य अलगोजा समेत कई तरह के वादनो का वादन किया जाता है. इस तरह के आयोजन जिले के तलवास, आंतरदा समेत कई शहरों में होते हैं।


2 साल बाद हुआ यह आयोजन


करवर क्षेत्र के  आंतरदा गांव में गाजे बाजे के साथ दहलवालजी की देहरूपी सांप की सवारी निकाली गई. हालांकि, कोरोना संक्रमण के चलते 2 साल से यह कार्यक्रम नहीं हो सका. इस साल शानदार तरीके से हुआ है. पहर को पंच पटेल तथा पूर्व राज परिवार के सदस्य के नेतृत्व में नियत स्थान तलवास रोड़ पर स्थित दड़ा के भैरूजी स्थान के समीप गाजे-बाजे के साथ चवंर, ढोल, गद्दी, झालर, केवड़ा, बाजोट, झण्डी, छड़ी व अन्य पूजा के सामान लेकर पहुंचे. जहां हिंगोटिया के पेड़ पर दहेलवालजी एक देहरूपी सांप के रूप में मिले. पंच पटेलों ने पूजा करने और साथ चलने की गुहार लगाई. यह दौर करीब आधे घंटे तक चला. इस दौरान तेजाजी गायन मंडलियां अलगोजों और लोक वाद्ययंत्रों की धुन पर तेजाजी गाती रहीं. न जय-जयकार करते रहे. राज परिवार के सदस्यों ने फूलों से प्रार्थना की और उनसे साथ चलने का अनुरोध किया.


इसके बाद देहरूपी सर्प भोपा प्रभुलाल कीर के साफे में आ गए. साथ ही महाराज के जयकारे गूंजने लगे. भोपा और उसके साथी देहरूपी सांप के साथ सवारी के रूप में निकल गए.जो परकोटे बालाजी मार्ग होते हुए बड़ा दरवाजा होकर गढ़ चौक पहुंचे. रास्ते में जगह-जगह श्रद्धालुओं ने दहेलवालजी महाराज के पूजा अर्चना के साथ दर्शन किए. बाद में, गढ़ के अंदर, राज परिवार के सदस्यों ने महाराज से  दर्शन किए तथा सलामी देकर अगवानी की. सवारी कारवार रोड स्थित दहेलवाल जी के थानक पहुंची. जहां एक पेड़ पर दहलवालजी का देह छोड़ा गया


इसलिए आते है आंतरदा में महाराज


इतिहास कार दुर्गा शंकर माथुर ने बताया कि वर्ष 1871 में तत्कालीन आंतरदा रियासत में देवीसिंह की पत्नी जो जून्या की राजकुमारी थी. उन्हें सांप ने डस लिया था. फिर उसे जुन्या के दहेलवालजी की तांती डस्सी से बांध दिया गया. बाद में आंतरदा के ठिकानेदार ने दरबार ने तेजादशमी पर रानी को तांती कटवाने जुन्या भेजा. उनके साथ गांव के लोक कलाकार भी थे. संगीत मंडली और दरबार की भावना को देखकर दहेलवालजी प्रसन्न हुए. तब आंतरदा में दहेलवालजी का थानक बनाया गया. उनको आंतरदा के लिए न्योता भेजा गया. स्वीकृत होने पर थानाक का निर्माण वर्ष 1878 में  दहाडय़ा नामक स्थान पर किया गया था.  तभी से आंतरदा में तेजादशमी के दिन देहरूपी सर्प के रूप में आने की परम्परा शुरू हो गई। इस परंपरा को करीब 150 साल हो गए.


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