Rajasthan News Today: मसालों के उत्पादन में राजस्थान का शुमार पूरे देश में अग्रणी राज्यों में हैं, लेकिन प्रदेश में मंडी टैक्स की दरें दूसरे राज्यों की मुकाबले अधिक होने की वजह से व्यापार में लगातार गिरावट आ रही है.


यहां के किसानों को जीरा, मेथी, धनिया जैसे मसाला उत्पाद अन्य राज्यों की तुलना में कम कीमत पर बेचना पड़ रहा हैं. ऐसे में सरकार के जरिये सभी मसालों पर न्यायसंगत एक समान टैक्स सिस्टम लागू कर किसानों को होने वाले आर्थिक नुकसान से बचाया जा सकता है.


मसाला कारोबारियों की ओम बिरला से मुलाकात
राजस्थानी एसोसिएशन ऑफ स्पाईसेस (RAS) के प्रदेश सचिव महावीर गुप्ता ने बताया कि प्रदेश के कृषक, व्यापारी और मसाला उद्यमियों ने लोकसभा स्पीकर और स्थानीय सांसद ओम बिरला से भेंटकर विसंगतियों पर चर्चा की.


रास के प्रदेश सचिव महावीर गुप्ता ने बताया कि इस मौके पर उनसे आग्रह किया गया है कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, केंद्रीय और प्रदेश के कृषि मंत्री से मंडी टैक्स की दरों को संशोधित करने और कृषक कल्याण शुल्क समाप्त करवाकर प्रदेश के किसानों को राहत दिलाएं.


राजस्थान के मंडी टैक्स में विसंगति
वर्तमान में गुजरात में जीरे पर मंडी टैक्स 0.5 फीसदी और धनिया पर 1 फीसदी है. मध्य प्रदेश में धनिया पर मंडी टैक्स 1 फीसदी ही है. दूसरी तरफ गुजरात और मध्य प्रदेश में कृषक कल्याण शुल्क देय नहीं है. 


इसके उलट राजस्थान में जीरे पर मंडी टैक्स 0.5 फीसदी और इतना ही कृषक कल्याण शुल्क होने से कुल टैक्स 1 फीसदी है. राजस्थान में धनिये की पैदावार हाड़ौती में सर्वाधिक होती है, इस पर मंडी टैक्स सबसे अधिक 1.6 फीसदी और कृषक कल्याण शुल्क 0.5 फीसदी जोड़कर कुल 2.1 फीसदी टैक्स वसूली की जा रही है.


सरकार को दो हजार करोड़ का नुकसान
राजस्थान में दो मसाला उत्पादों पर टैक्स प्रणाली एक समान नहीं है. इसकी वजह से प्रदेश के किसानों को अपनी उपज पड़ोसी राज्यों में बेचने जाना पड़ रहा है. इससे प्रदेश सरकार को भारी आर्थिक नुकसान होता है.


प्रदेश के किसानों के पलायन करने से राज्य सरकार को जीएसटी, मंडी शुल्क और मूल्यों की गिरावट से लगभग दो हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का सीधा नुकसान हो रहा है.


दूसरे राज्य में एक प्रकृति की जिंसों पर समान टैक्स
मसाला विशेषज्ञों ने बताया कि देश के किसी भी राज्य में एक ही प्रकृति की चीजों में कर प्रणाली अलग- अलग नहीं होती है. जबकि राजस्थान में दोनों मसाला जिंसों में अलग- अलग दरें हैं. 


राजस्थान के सीमावर्ती जिलों में पैदा होने वाला पूरा धनिया मध्य प्रदेश की मंडियों में ले जाकर बेचा जाता है, जिससे प्रदेश सरकार को भारी राजस्व का नुकसान होता है. हम मसाला उत्पादों के एक्सपोर्ट में भी पिछड़ रहे हैं क्योंकि हमारी लागत अन्य राज्यों से अधिक हैं. 


अगर प्रदेश में अन्य राज्यों के समान टैक्सेशन हो तो दक्षिण भारत के मसाला उद्यमी यहां कारखाने स्थापित करने की तरफ आकर्षित हो सकते हैं. रामगंजमंडी स्थित मसाला पार्क में टैक्स की अत्यधिक दर के कारण ही उद्योग विहीन बना हुआ है.


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