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Thalassemia Day Special: पढ़िए थैलिसिमिक बच्चों को सफलता की कहानियां, वे लोग जिन्होंने बीमारी से हार नहीं मानी

Rajasthan News: साल 1994 -95 में कोटा में थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों की संख्या केवल सात थी, आज इनकी संख्या बढ़कर 650 के करीब हो गई है. ये बच्चे अपने-अपने तरह से इस खतरनाक बीमारी से लड़ रहे हैं.

Kota News: आज विश्व थैलेसिमिया दिवस (World Thalassemia Day) है. पूरे देश दुनिया में इस बीमारी को लेकर चिंता तो व्यक्त की जाती है लेकिन इसका पूरी तरह से खात्मा हो इस पर सरकारें कोई ध्यान नहीं देती हैं. ऐसे में इन बच्चों की संख्या निरंतर बढती जा रही है. प्रतिवर्ष देश में 10 हजार नए बच्चे जन्म लेते हैं, जो जीवनभर इस बीमारी के सहारे कष्टप्रद जीवन जीते हैं. जरूरत है इस बीमारी को खत्म करने की या कम करने की इसके लिए हिमोग्लोबिन ए-2 का टेस्ट शादी से पहले लडका और लडकी का होना चाहिए ताकी यदि वे माइनर या मेजर हो तो उन्हें रिश्ता नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनकी आने वाली संतान थैलेसिमिया से पीड़ित होगी. कोटा संभाग की बात करें तो यहां करीब 850 बच्चे थे. इसमें से 650 इस समय रक्त चढाने के लिए अलग-अलग जगह आते हैं. बाकी बच्चों की मौत हो चुकी है.

संघर्ष के बाद हासिल किया मुकाम
कोटा संभाग में वैसे तो दर्जनों थैलेसैमिक बच्चे ऐसे हैं जो अपने दम पर कुछ ना कुछ काम कर रहे हैं, लेकिन कुछ बच्चों ने इस बीमारी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और आज वह कहीं ना कहीं जॉब कर रहे हैं या समाज सेवा कर रहे हैं, या किसी ना किसी क्षेत्र में आगे बढ़ते चले जा रहे हैं. कोई बैंक में नौकरी कर रहा है तो कोई कोचिंग में पढ़ा रहा है, कोई पार्षद है तो कोई इंटिरियर डिजाइनर है. ऐसे में साफ तौर से कहा जा सकता है कि बीमार मन से नहीं होना चाहिए तन बीमार होगा तो संषर्ष से मुकाम हासिल किया जा सकता है.  

साल 1994-95 में थे केवल सात थैलेसीमिक बच्चे
थैलेसिमिया वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष सुनील जैन ने बताया कि जब एक बच्ची इस बीमारी से ग्रस्त पाई गई तो जैसे-तैसे ब्लड की व्यवस्था करते थे, कभी मंदिर में तो कभी सार्वजनिक स्थान पर रक्त की पूर्ति का प्रयास करते थे. 1994-95 में कोटा में केवल सात थैलेसैमिक बच्चे थे.अब थैलेसैमिक बच्चों की संख्या बढकर 650 के करीब हो गई है. सोसायटी बनाने के बाद लगातार छोटे-छोटे कैंप लगाकर बच्चों की जान बचाने का प्रयास करते थे, धीरे-धीरे जागरुकता बढी और सरकार ने भी कुछ दवाएं निशुल्क उपलब्ध कराईं और रक्त के लिए भी नियम बनाने के बाद थोड़ी राहत मिली है, लेकिन इस बीमारी को जड़ से खत्म किया जाना चाहिए.

देश की पहली थैलेसीमिक बच्ची जो सरकारी नौकरी करती है

थैलीसिमिया से पीड़ित बच्चों का जीवन संघर्ष करते हुए बीतता है. लेकिन कुछ बच्चों ने हौंसला नहीं हारा और वह आगे बढते चले गए. ऐसे में कोटा निवासी सुनील जैन जो एलआईसी में कार्यरत हैं, उनकी बेटी साक्षी जैन इस समय कुन्हाडी स्थित एक बैंक में काम करती हैं. सुनील जैन ने बताया कि वह देश की पहली बेटी है जो थेलीसिमिया से पीड़ित होने के बाद सरकारी जॉब में आई है. उन्होंने कहा कि वह पिछले ढाई साल से बैंक में अपनी नौकरी को बखूबी कर रही है. जैन ने बताया कि जब वह 6 माह की थी तो पता चला की वह थैलेसिमिया से ग्रस्त है. उसके बाद से हम संघर्ष करते चले आ रहे हैं. वहीं बूंदी निवासी एडवोकेट नंदिनी विजय वकालत कर अपनी आवाज को बुलंद कर रही हैं. वो नियमित कोर्ट जाकर मुकदमों में पैरवी करती हैं. 

बीमारी को हराकर कर रही सेवा
सेवाभावी पार्षद सलीना शेरी ने बचपन में जनसेवा के सपने संजोए थे. उसी लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ीं और आज युवाओं के लिए एक मिसाल बन गईं.  किशोरपुरा निवासी 25 साल की सलीना शेरी जब छह माह की थी तो वह थैलेसीमिया से पीड़ित हो गईं. उसे महिने में तीन बार रक्त चढ़ता है. लेकिन उसके बावजूद वह सेवा से कभी पीछे नहीं हटी. स्कूली पढ़ाई के दौरान उसने यू-ट्यूब पर कोचिंग विद्यार्थियों पर 'जिंदगी अनमोल है'नाम से मोटिवेशन फिल्म बनाई. फिर कॉलेज पहुंची तो शहर के सिविक सेंस को लेकर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई. 2019 में पार्षद के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद वो साजी देहडा कच्ची बस्ती की तस्वीर बदलने में लग गई. 25 साल से कीचड़ भरी गलियों  में रह रहे लोगों की समस्याएं दूर कर गलियों में सीसी रोड और नालियों का निर्माण करवा दिया और पीएचडी से पाइपलाइन डलवाई. इससे धीरे-धीरे बस्ती की तस्वीर बदल गई.  

कोचिंग में संवार रही है बच्चों का भविष्य
सुनील जैन ने बताया कि कोटा निवासी सुरप्रीत अरोडा कोटा में रहकर एक प्रतिष्ठित कोचिंग में फेकल्टी के रूप में बच्चों का भविष्य बनाने का काम कर रही है. वह लगाकर मेहनत कर इस मुकाम पर पहुंची हैं. इन्होंने भी अपनी बीमारी को आगे बढने में बाधा नहीं बनने दिया और लगातार कोचिंग में बच्चों को पढा रही हैं.

रोजगार देगा थैलिसिमिया से पीड़ित इंसान
मोडक निवासी जिशान अहमद बचपन से ही थैलिसिमिया से पीड़ित हैं. ऐसे में उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पडता है,लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और वह आज दूसरों के जीवन को संवार रहे हैं. जिशान ने बताया कि वह कोटा स्टोन की फेक्ट्री डाल रहे हैं जो कुछ ही दिन में शुरू होने जा रही है. सरकार की पीएमईजी योजना के तहत उन्होंने 50 लाख का लोन लिया है. रीको से एक प्लाट लिया है, जहां वह फैक्ट्री लगा रहे हैं. इसका कार्य अंतिम चरण में हैं. ऐसे में वह अब 12 से 15 लोगों को रोजगार देंगे. उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए की वह इस बीमारी से पीड़ित बच्चों के लिए विशेष पैकेज दें और दवाई दे ताकी उनके मल्टी ऑर्गन पर असर नहीं पड़े. अभी जो दवाएं मिल रही हैं, उससे शरीर में आयरन बढ जाता है. आयरन शरीर में 500 से 1000 होना चाहिए, वह अभी छह हजार तक पहुंच जा रहा है. 

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