Rajasthan News: देश का ऐसा मंदिर, जहां विराजते हैं मूंछों वाले भगवान राम और लक्ष्मण, जानें इसके बारे में
Udaipur News: आज रामनवमी (Ram Navami) है, जिसमें सभी जगहों पर श्री राम का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा. मंदिरों में पूजा-पाठ होंगे और शोभा यात्राएं निकाली जाएगी.
Udaipur News: आज रामनवमी (Ram Navami) है, जिसमें सभी जगहों पर श्री राम का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा. मंदिरों में पूजा-पाठ होंगे और शोभा यात्राएं (procession tours) निकाली जाएगी.
पिछोला झील के किनारे स्थित है मंदिर
आज के इस खास दिन श्री राम-लक्ष्मण की खास मूर्ति से रूबरू करवाने जा रहे हैं. आपने देशभर के मंदिरों में और तस्वीरों में श्री राम-लक्ष्मण को हमेशा बिना दाढ़ी-मूछों में देखा होगा लेकिन राजस्थान के उदयपुर में श्री राम-लक्ष्मण की ऐसी मूर्ति है जिसमें उनके मुछे हैं. कहते हैं कि जिन्ह के रही भावना जैसी, प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी रामायण की इस चौपाई का अर्थ है, जिनकी जैसी भावना थी, प्रभु की मूर्ति उन्होंने वैसी ही देखी. श्री राम की मूछों वाली वाली मूर्ति का मंदिर शहर में पिछोला झील के किनारे स्थित रघुनाथ द्वारा मंदिर है.
300 साल पुराना है मंदिर का इतिहास
इस मंदिर का इतिहास करीब 300 साल पुराना है. रामनवमी पर यहां ठाकुरजी को 12 तोपों से सलामी दी जाती थी, लेकिन 1983 से यह परंपरा बंद कर दी गई. इसके पीछे मंदिर के आबादी एरिया में होने और सुरक्षा को कारण बताया गया.
वनवास के दौरान को ऐसे देखा
मंदिर से जुड़े जसवंत टांक बताते हैं स्थापित ये मूर्तिया काले पत्थर की है. यहां श्री राम-लक्ष्मण को वन विहार अवधि में दर्शाया गया है. माना जाता है कि जब राम वनवास गए, तब उनका ऐसा स्वरूप रहा होगा. प्रतिमाएं स्थिर नहीं है, यानी इन्हें हिलाया जा सकता है. इतिहास और लोक कलाओं के जानकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू बताते हैं कि प्रतिमाओं के निर्माण में कलाकार की परिकल्पना, सामाजिक परंपराओं आदि का भी आधार रहा है. सृजन में कलाकार स्वतंत्र थे, इसलिए नए प्रयोग भी कर सकते थे. श्रीराम क्षत्रिय थे, संभव है कि यहां उनकी प्रतिमाएं उसी स्वरूप में बनाई गई.
यहां चारों भाइयों की 500 साल पुरानी वनवास मूर्तियां
उदयपुर संभाग के ही प्रतापगढ़ जिले के देवगढ़ में भी उदयपुर के रघुनाथ द्वारा की तरह मूर्तियां निराली हैं. यहां राम-लक्ष्मण के साथ भरत और शत्रुघ्न की प्रतिमाएं भी मूंछों में है. मान्यता है कि राम-लक्ष्मण वनवास गए थे तो शेष दोनों भाइयों ने भी वही वेश रख लिया. एक मान्यता यह भी है कि श्रीराम के सच में मूछ थी इसलिए ये प्रतिमाएं भी ऐसी हैं. पुजारी बद्री दास वैष्णव बताते हैं कि देवगढ़ की ये धातु प्रतिमाएं करीब 500 साल पुरानी है.
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