Karanpur Politics: राजस्थान में नए साल की सबसे बड़ी राजनीतिक घटना यह है कि एक मंत्री को महज 10 दिन में ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसकी वजह है मंत्री जी का विधानसभा चुनाव हार जाना. यह राजस्थान की राजनीति में पहली घटना है कि चुनाव से पहले किसी प्रत्याशी को मंत्री बनाया गया हो और वो चुनाव जीत भी न पाया हो. चर्चा है करणपुर विधानसभा चुनाव की और हारने वाले मंत्री हैं बीजेपी उम्मीदवार सुरेंद्र पाल सिंह टीटी. टीटी को कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार रुपिंदर सिंह कुन्नर ने 11,283 वोटों से शिकस्त दी है. मंत्री बनाए जाने के बाद भी टीटी को मिली इस करारी हार के कई मायने निकाले जा रहे हैं और इसको लेकर कई तरह की बातें भी चल रही हैं.


कांग्रेस पार्टी ने यहां से विधायक रहे गुरमीत सिंह कुन्नर के बेटे रुपिंदर सिंह कुन्नर को उम्मीदवार बनाया था. ऐसे में सियासी गलियारों में चर्चा ये भी है कि बीजेपी को पहले से ही अंदेशा था कि कांग्रेस को करणपुर में लोगों की सहानभूति मिल सकती है. वहां पर किसान आंदोलन का भी असर दिख रहा था. बीजेपी उम्मीदवार सुरेंद्र पाल सिंह टीटी के खिलाफ भितरघात की खबरें भी थीं. हालांकि फिर भी बीजेपी ने किसी नए चेहरे पर दांव खेलने की जगह टीटी पर ही भरोसा जताया. चुनावों के पहले बीजेपी ने राजस्थान सरकार में टीटी को जगह भी दी, ताकि इसका फायदा चुनावी नतीजे में मिल सके, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.


10 दिन में मंत्री से आम कार्यकर्ता बनने वाले टीटी का पार्टी में रहा है रुतबा


मंत्री बनाए जाने के ठीक छह दिन बाद टीटी को चुनावी परीक्षा से गुजरना पड़ा और दसवें दिन ही हार झेलते हुए उस मंत्रिपद से इस्तीफा देना पड़ा. हालांकि ये बता दें कि सुरेंद्र पाल सिंह टीटी की पार्टी में अच्छी खासी हैसियत रही है. साल 1994 में सुरेंद्र पाल सिंह टीटी को सरकार में वेयरहाउसिंग का चेयरमैन बनाया गया था. ये कैबिनेट मंत्री के बराबर का दर्जा होता था. यहां से लगातार पार्टी में टीटी की हैसियत बढ़ती गई. उसके बाद उन्हें विधानसभा के चुनाव में उतारा गया. सरकार बनने के बाद उन्हें साल 2003 में कृषि मंत्री बनाया गया. साल 2013 में उन्हें फिर खनिज और पेट्रोलिम मंत्री बनाया गया था. साल 2018 में भी वो बुरी तरह चुनाव हार गए थे फिर भी पार्टी ने 2024 के चुनाव में उनपर भरोसा जताया और फिर से टिकट दिया. 


बीजेपी के खिलाफ जाते समीकरण देख पार्टी ने खेला मंत्री वाला कार्ड! 


राजस्थान की राज बनाम रिवाज की परंपरा करणपुर विधानसभा सीट पर भी रही है. यहां भी हर चुनाव में राज बदलता है. बीजेपी को इसी बहाने उम्मीद थी कि यहां भी राज बदलेगा और इस बार टीटी चुनाव जीत जाएंगे. हालांकि बताया जा रहा है कि गुरमीत सिंह कुन्नर की मौत के बाद माहौल बदल गया. जब कांग्रेस ने सहानभूति का कार्ड खेला तो खेल बीजेपी से कांग्रेस के पक्ष में झुक गया. वहीं बाकी कसर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार ने कर दी, जिन्हें 11 हजार से ज्यादा वोट मिले. यह सब कहानी लिखी जा रही थी. मगर, 71 साल के टीटी को लगा कि यहां लड़ाई अब बदल गई है. पार्टी ने बड़ा दांव खेलते हुए टीटी को मजबूत करने के लिए मंत्री बना दिया. क्योंकि, श्रीगंगानगर में इस बार कांग्रेस के लिए मामला सही था. इसलिए, बीजेपी ने मंत्री का कार्ड खेला. हालांकि वो भी काम न आया.


सुरेंद्र पाल सिंह टीटी पर नहीं लगा किसी गुट के होने का ठप्पा? 


सुरेंद्र पाल सिंह टीटी किसी भी नेता के खास नहीं रहे. उनका नाम समय-समय पर नेताओं के साथ जुड़ता रहा. इन सबके बीच वो बीजेपी के लिए हमेशा विश्वसनीय रहे. उस क्षेत्र में टीटी के अलावा बीजेपी ने किसी और नेता को तव्वज्जो नहीं दी. टीटी ही वहां पर सिरमौर बने रहे. हालांकि, समय-समय पर वहां पर टीटी के खिलाफ पार्टी में बगावत के सुर जरूर उठते रहे, लेकिन किसी की सुनी नहीं गई. राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द चोटिया का कहना है कि सुरेंद्र पाल सिंह टीटी बेहद सरल नेता हैं. जो बीजेपी के प्रदेश नेतृत्व के केंद्र में आया उसी के साथ टीटी हो लेते थे. उनपर किसी गुट का ठप्पा नहीं लगा. वहीं, कुछ लोग टीटी को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का करीबी मानते हैं. 


चट मंत्री बने पट इस्तीफा भी दे दिया... अब टीटी का आगे क्या होगा? 


सुरेंद्र पाल सिंह टीटी बीजेपी के जुझारू कार्यकर्ता रहे हैं, लेकिन चुनाव हारने के बाद अब उन्हें कोई बड़े पद न दिए जाने की वकालत शुरू हो गई है. श्रीगंगानगर में पार्टी नए चेहरों पर दांव लगा सकती है. वहां पर पिछले कई वर्षों से पार्टी बदलाव चाह रही थी. मगर, टीटी के बगावत का डर बना रहता था. चूंकि, कांग्रेस ने श्रीगंगानगर जिले में नए चेहरों पर दांव लगाया है और जीत मिली है. इसलिए यहां पर बीजेपी भी नए चेहरों पर दांव लगाएगी. अब किसी बोर्ड या निगम में टीटी की जगह बीजेपी चूरूं और अन्य जिलों के सिख चेहरे को आगे बढ़ा सकती है.


हार के बाद बीजेपी के सुरेंद्र पाल सिंह टीटी ने मंत्री पद से दिया इस्तीफा, नहीं जीत सके चुनाव