Rajsamand: इस जिले को महाराणा प्रताप के जन्म का गौरव प्राप्त है, पर्यटकों की हर कसौटी पर खरा उतरा
Rajasthan Tourism: विश्व युद्ध द्वितीय के दौरान राजसमंद झील को लगभग छह वर्षों तक 'इम्पीरियल एयरवेज' ने समुद्री विमान आधार के रूप में उपयोग में लिया गया था.
Tourist Places of Udaipur: झीलों की नगरी उदयपुर में लाखों की संख्या में पर्यटक हर साल आते हैं. लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि उदयपुर से मात्र 65 किलोमीटर दूर एक जिला है, जिसे वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप के जन्म का गौरव प्राप्त है.यहीं नहीं यहां की खूबसूरती ऐसी है कि पर्यटकों की हर इच्छा की कसौटी पर खरा उतरता है.यह है राजसमन्द जिला. यहां की झीलें, विशाल महल, बड़ा जंगल, मंदिर सहित घूमने के लिए कई खूबसूरत जगहें हैं.आइये राजसमन्द जिले की करते हैं सैर.
राजसमंद झील (समुन्द्र झील)
उदयपुर से लगभग 66 किलोमीटर उत्तर दिशा में,राजनगर और कांकरोली के नगरों के बीच में यह स्थित है. यह एक विशाल क्षेत्र में फैली हुई सुन्दर झील है.वर्ष 1662 और 1676 एडी के मध्य में महाराणा राज सिंह प्रथम की ओर से गोमती केलवा और ताली नदियों पर बनाए गए डैम (बांध) के निर्माण स्वरूप दक्षिण-पश्चिम की ओर यह झील बनाई गई.इस झील को और बांध को (1661 में) बनाए जाने का मुख्य कारण यहां व्यापक रूप से सूखे से त्रस्त जनता को रोजगार उपलब्ध करवाना था.स्थानीय किसानों को नहर से खेतों की सिंचाई की सुविधा प्रदान करना था.
विश्व युद्ध द्वितीय के दौरान राजसमंद झील को लगभग छह वर्षों तक 'इम्पीरियल एयरवेज' ने समुद्री विमान आधार के रूप में उपयोग में लाया गया था. राजसमंद झील को राजस्थान में सबसे पुराने राहत कार्यों में से एक माना जाता है. इस कार्य के लिए उस समय लगभग चालीस लाख रूपये खर्च किए गए थे.इस झील की परिधि 22.5 वर्ग किलोमीटर और गहराई तीस फीट है.इस झील का जल ग्रहण क्षेत्र (तालाब) लगभग 524 स्कवेयर किलोमीटर के दायरे में है.यह इस झील का विस्मय प्रेरक अर्थात अचरज भरा क्षेत्रफल है.इतनी लंबी-चौड़ी परिधि में फैली होने के बावजूद भी यह माना जाता है कि यह झील भीषण और व्यापक रूप से फैले सूखे के समय में सूख जाया करती है.जैसे कि वर्ष 2000 के सूखे के दौरान हुआ था. इस झील की देखने के लिए कई पर्यटक पहुंचते हैं.
कुम्भलगढ़ का क़िला कहां है?
मेवाड़ के सशक्त,सबल और प्रसिद्ध योद्धा की जन्मस्थली है.यह उदयपुर से उत्तर की तरफ, लगभग 84 किलोमीटर दूरी पर जंगलों के बीच मेवाड़ क्षेत्र में चित्तौड़गढ़ के बाद दूसरा सर्वाधिक महत्वपूर्ण किला है कुम्भलगढ़ है.राणा कुम्भा ने इसे 15वीं शताब्दी में बनवाया था. यह क़िला अरावली की पहाड़ियों की गोद में बसा है.मेवाड़ को शत्रुओं से बचाने और सुरक्षित रखने में इस किले की मुख्य भूमिका रही है.जब बनबीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर,किले पर कब्जा कर लिया था, तो मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह को उनके बचपन में इसी किले में पनाह मिली थी.
महाराणा प्रताप की जन्मस्थली होने के कारण लोगों की भावनाएं इस किले से जुड़ी हैं.यह किला सभी प्रकार से अपने आप में समृद्ध और सुरक्षित है. इसकी सुरक्षा को केवल एक बार मुगल और आमेर की सेना द्वारा पीने के पानी की कमी के कारण धक्का लगा था.यहां बहुत ही सुन्दर व समृद्ध मंदिर है. इन्हें मौर्य साम्राज्य के दौरान बनवाया गया था. इसके अलावा एक बहुत ही सुरम्य और चित्रांकित स्थल है 'बादल महल'.क़िले की दीवारें इतनी मजबूत और इतनी चौड़ी हैं कि आठ घुड़सवार एक साथ उस पर चल सकते हैं. यह किला करीब 36 किलोमीटर क्षेत्र में फैला है. 19वीं शताब्दी में महाराणा फतेह सिंह ने इस किले का नवीनीकरण करवाया था. स्कॉलर्स तथा विद्यार्थियों के लिए किले में बिखरी अतीत की निशानियां बहुत महत्त्वपूर्ण हैं.
नीलकण्ठ महादेव का मंदिर कहां है
प्रसिद्ध शिव मंदिर जिसे नीलकंड महादेव मंदिर कहते हैं,कुम्भलगढ़ किले के पास ही स्थित है.यह मंदिर 1458 ई.में बनवाया गया था. इसमें पाषाण से बना छह फुट ऊंचा शिवलिंग दर्शनीय है.इस मंदिर की सबसे महत्त्वपूर्ण रचना है इसमें चारों ओर से प्रवेश द्वार, जिन्हें सर्वतोभद्र कहा जाता है.इसके अलावा इसमें एक खुला मंडप है, उसे दूर से ही देखा जा सकता है.प्रत्येक शाम को नीलकण्ठ महादेव परिसर में वेदी के पवित्र स्थल के पास पर्यटकों हेतु 'लाइट एण्ड साउण्ड शो' आयोजित किया जाता है.यहां के वातावरण,समृद्ध इतिहास और मंदिरों व किले की भव्यता को देखकर आप अभिभूत हो जाएंगे.
गोलेराव जैन मंदिर कहां है?
'गोलेराव जैन मंदिर' कुम्भलगढ़ किले पास ही स्थित है. यह यहां के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आकर्षण है.यह नौ मंदिरों का एक समूह है जो कि बहुत सुंदर और सुरम्य क्षेत्र में स्थित है.'भवन देवी मंदिर'के काफी पास में स्थित गोलेराव जैन मंन्दिरों में बहुत आकर्षक रूप में देवी देवताओं की मूर्तियां दीवारों और खंभों पर बनी हैं.
कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य कहां है
उदयपुर और कुम्भलगढ़ घूमने आने वाले पर्यटकों के लिए कुम्भलगढ वन्यजीव अभ्यारण्य एक अच्छा विकल्प है.उदयपुर से करीब 65 किमी की दूरी पर स्थित यह पार्क उदयपुर-पाली-जोधपुर रोड पर है.यह कुम्भलगढ के विशाल किले को चारों तरफ से घेरे हुए है.आप चाहें एक वन्यजीव प्रेमी हों या प्रकृति के साथ घनिष्ठता की भावना रखते हों,कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य आपके लिए उत्तम वातावरण प्रदान करता है.अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों के आस पास फैला यह अभ्यारण्य विलुप्त होते, संकटग्रस्त पशु पक्षियों का घर है.यहां घूमने आने पर आपको जंगल कैट्स (जंगली बिल्ली), हाइना (लकड़बग्घा), जैकॉल्स (गीदड), लैपर्ड्स (तेंदुआ), स्लॉथ बियर (आलसी भालू), नीलगाय, सांभर, चौसिंगा, चिंकारा (हिरण, बारहसिंगा), हेयर्स (खरगोश) आदि नजर आएंगे.आप यहां भेड़ियों को देखकर, उनका पीछा करके, उनके कार्यकलाप भी देख सकते हैं.इस अभ्यारण्य में आप पशुओं के अलावा विभिन्न प्रजाति की चिड़ियों को भी देख सकते हैं.कुम्भलगढ़ वन्यजीवन अभ्यारण्य विविध प्रकार के पेड़-पौधों से भी समृद्ध है. छोटे पौधे और बड़े आकार के पेड़ जिन की जड़ी-बूंटियाँ दवाइयां बनाने के काम में आती हैं,जो यहां बहुतायत में उपलब्ध हैं.यहां जंगल सफारी होती है. इससे जंगल का लुफ्त उठा सकते हैं.यहीं नहीं यहां प्रस्तावित टाइगर रिजर्व है.
फोटो और सामग्री पर्यटन विभाग से साभार.
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