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Cheetah: अलवर में भी कभी पाले जाते थे चीते, महाराजा जयसिंह के समय फीलखाना में चलता था ट्रेनिंग सेंटर
1952 में भारत से विलुप्त हो चुका चीता एक बार फिर की धरती पर आ चुका है. भारत में चीते पालना कभी राजा महाराजाओं का शौक हुआ करता था. रियासतकाल में शिकार के लिए चीते पाले और प्रशिक्षित किए जाते थे.
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70 साल बाद भारत में चीतों (Cheetah) की वापसी से खुशी का माहौल है. 1952 में विलुप्त घोषित कर दिए गए चीतों को पुनर्वासित करने की दिशा में बड़ा कदम है. नामीबिया (Namibia) से लाये गए 8 चीतों का नया ठिकाना मध्यप्रदेश का कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park in MP) बना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जन्मदिन (PM Modi Birthday) पर नामीबिया के चीतों को बाड़े में छोड़ा. नामीबिया से भारत लाए गए चीतों को फिलहाल आइसोलेशन में रखकर कुछ समय बाद जंगल में छोड़ दिया जाएगा. लेकिन क्या आप जानते हैं राजस्थान के अलवर में भी कभी चीते पाले जाते थे?
कभी अलवर में भी पाले जाते थे चीते
भारत में चीते पालना कभी राजा महाराजाओं का शौक हुआ करता था. अलवर में चीतों वाला मोहल्ला (चीतावान नाम की गली) आज भी है. रियासतकाल में शिकार के लिए चीते पाले और प्रशिक्षित किए जाते थे. महाराजा जयसिंह (1896 से 1937 ई) के शासन काल में चीतों का ट्रेनिग सेंटर होता था. फीलखाना के पीछे चीतावान की गली में कभी चीतों को प्रशिक्षित करनेवाले ट्रेनर रहा करते थे. उस जमाने में ट्रेनर के लिए गिने चुने मकान होते थे. पूर्व वन्यजीव प्रतिपालक नरेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि चीता वन्य जीवों में तेज रफ्तार प्राणी है.
चीतों की शारीरिक बनावट है निराली
चीता सौ किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ता है. आम तौर पर चीते झुंड यानी परिवार के साथ रहते हैं. शिकार करीब 50 कदम दौड़कर करते हैं. सफलता की उम्मीद होने पर आगे दौड़ते हैं वरना वापस हो जाते हैं. चीतों की शारीरिक बनावट में चेहरा छोटा, शरीर लंबा और भारी होता है और पूंछ करीब तीन फीट की होती है. कहा जाता है कि टर्न करने में चीतों की की पूंछ काफी मददगार होती है. चीतों की दौड़ने की स्पीड को देखते हुए मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया है. समतल जंगल चीतों के लिए ज्यादा उपयुक्त माना जाता है. कुल मिलाकर अब फिर से भारत में चीतों की रफ्तार दिखने को मिलेगी.
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