Udaipur News: राजस्थान में 1.70 लाख साल पुरानी मानव सभ्यता मिलने का दावा, पुरातत्वविदों को मिले पत्थरों के औजार
Bundi: उदयपुर के पुरातत्वविदों ने बूंदी जिले में 1.70 लाख से ज्यादा पुरानी मानव सभ्यता मिलने का दावा किया है. इसमें वह कैसे औजार उपयोग में लेते थे वह मिले हैं. गुफाओं में उनके खुद के शेल चित्र भी हैं.
Rajasthan News: राजस्थान (Rajasthan) में 1.70 लाख साल पहले की मानव सभ्यता मिलने का दावा है. दरअसल, उदयपुर (Udaipur) इन्टैक चेप्टर के एक अध्ययन दल को बूंदी (Bundi) जिले के अस्तोली गांव के पास स्थित एक नाले में पुरापाषाण युग के पत्थरों के औजार मिले हैं. साथ ही गुफाओं में शेल चित्र मिले हैं. अध्ययन दल में पुरातत्वविद डॉ. ललित पांडेय, भूवैज्ञानिक डॉ. विनोद अग्रवाल और डॉ. हेमन्त सेन शामिल थे.
दल के विशेषज्ञों ने बताया कि ये जो पत्थरों के औजार मिले हैं, इनको देखने से पता चलता है कि ये एश्युलियन उपकरण श्रेणी के हैं, जिनकी आयु लगभग 1 लाख 70 हजार वर्ष से भी पहले (पुरापाषाण युग) की मानी जाती है. इस पुरापाषाण काल में आदिमानव गुफाओं और पानी के पास कन्दराओं में रहा करते थे. वो शिकार करके भोजन इकठ्ठा करते थे. इतना ही नहीं इन्हीं पत्थरों के औजारों की सहायता से आदिमानव जंगली जानवरों का शिकार करते थे. साथ ही वो इन औजारों का उपयोग जानवरों को काटने और उनकी खाल साफ करने के लिए भी करते थे.
मिले पुरापाषाण युग के पत्थरों के औजारों
अध्ययन दल को अस्तोली गांव के पास स्थित एक नाले में से 21 पुरापाषाण युग के पत्थरों के औजारों मिले हैं. इसमें ज्यादातर हाथ से बनी कुल्हाड़ियां हैं, जोकि विभिन्न आकार और बनावट की हैं. इसमें त्रिभुजाकार, अंडाकार, बादामाकार, बरछाकार और हृदयाकार कुल्हाड़ियां हैं. इसके साथ ही दुर्लभ क्रोड का नमूना भी मिला है. जिसके फलकों को हटाकर उनसे औजार बनाए जाते थे. यहीं नहीं गुफाओं और पानी के पास पत्थरों पर वो औजार कैसे दिखते थे, उनकी तस्वीरें भी बनी हुई हैं.
साथ ही यह भी पाया कि ये सभी औजार स्थानीय स्तर पर पाए जाने वाले विन्ध्यन काल के बलुआ पत्थरों से ही तैयार किए गए हैं, जबकि ज्यादातर पुरास्थलों पर पत्थर के औजार क्वार्टजाईट, चर्ट, फ्लिन्ट, ओब्सिडियन आदि के मिलते हैं. क्योंकि इन्हें बलुआ पत्थर के मुकाबले कठोर माना जाता है. दल के सदस्यों ने बताया कि अस्तोली गांव के पास मौजूद इन प्रागैतिहासिक कालीन पत्थरों के औजारों के बारे में स्थानीय प्रसाशन और पुरातत्व विभाग को भी जानकारी है, लेकिन इन अति महत्वपूर्ण पुरा-धरोहरों के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के सन्दर्भ में कोई कदम नहीं उठाए गए हैं.
संरक्षण के अभाव में होते जा रहे हैं नष्ट
दल के सदस्यों ने बताया कि इसी अभाव में यह धरोहर उपेक्षित पड़ी है और नष्ट होती जा रही है. स्थानीय लोग इन पत्थरों का गिट्टी और चुनाई के काम में उपयोग कर रहे हैं, जो चिन्ता का विषय है. उन्होंने बताया कि अगर इन प्रागैतिहासिक कालीन धरोहरों का उचित सरंक्षण किया जाए, तो इस स्थल को एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है.