Udaipur News: मानसून आने वाला है, ऐसे में हर वर्ष सभी के मन में एक ही कामना रहती है कि अपने क्षेत्र में अच्छी बारिश हो. क्योंकि इसी पर सब कुछ निर्भर है. लेकिन इसी बारिश की कामना के लिए उदयपुर का मेनारिया समाज अपनी 300 साल पुरानी परंपरा का आज भी निर्वहन कर रहा है. समाज के प्रत्येक सदस्य से मात्र 65 रुपए लिए जाते हैं और फिर यह मनोकामना होती है. इस वर्ष 25 जून यानी रविवार को यह विशाल कार्यक्रम होने जा रहा है जिसकी तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है और समाज के लोग सुबह से ही जुट जाएंगे. आइये जानते हैं क्या है यह परंपरा. 


यह है परंपरा जो 300 साल से चली आ रही
मेनारिया समाज ग्राम सभा के अध्यक्ष बद्रीलाल मेनारिया ने बताया कि दशकों पहले उदयपुर का मेनारिया समाज कृषि पर ही निर्भर हुआ करता था. ऐसे में इंद्रदेव मेवाड़ में अच्छी बारिश करें और किसानों को इसका लाभ मिले, इसी कामना के साथ समाजजन हर साल इंद्रदेव को रिझाने के लिए  ठाकुर जी के मंदिर में चूरमे का भोग लगाते थे. मंदिर उदयपुर शहर के हिरण मगरी क्षेत्र में ही है. आज भी यहीं परंपरा चली आ रही है. रविवार को इसी ये तहत 11 क्विंटल चूरमे का भोग लगाया जाएगा. 


समाज के हर सदस्य से लेते हैं 65 रुपए
बद्रीलाल जी मेनारिया बताते हैं कि यह परंपरा काफी पुरानी है. समाज के सदस्यों के साथ ही चूरमे का वजन बढ़ता गया. पहले क्विंटल 5-10 क्विंटल का भोग लगता था और अब 11 क्विंटल हो गया है. सुबह से ही चूरमा बनाने की प्रोसेस शुरू हो जाती है. जितना खर्चा आता है वह समाज के सदस्यों में बंट जाता है. इस बार आयोजन के लिए प्रति सदस्य 65 रुपए के हिसाब से समाज के 1500 परिवारों से अंशदान लिया गया है. समाज में करीब 6 हजार से अधिक लोग हैं. इस हिसाब से जितनी भी राशि एकत्र हुई है, उसमें इस आयोजन का खर्च निकाला जाएगा. फिर बची हुई राशि का उपयोग समाज के विकास और सामाजिक कार्यों में किया जाएगा. कार्यक्रम शहर के पानेरियों की मादड़ी में होली चौक और बड़े चौराहे स्थित ठाकुरजी के मंदिर में होगा. 


100 लोग बनाने में जुटते है
प्रवक्ता कैलाश मेनारिया ने बताया कि 11 क्विंटल चूरमे का प्रसाद तैयार करने के लिए करीब 100 लोगों की टीम होती है. इसमें रसोइये भी शामिल हैं. सभी मिलकर चूरमा तैयार करते हैं. यह काम सुबह 8 बजे से शुरू हो जाता है और दोपहर 12 बजे के आसपास चूरमा तैयार हो जाता है  बाद में जब भी अच्छा मुहूर्त आता है, उसी समय ठाकुरजी को इसका भोग लगाया जाता है. समाज के कई लोग ऐसे भी हैं, जो अंशदान से अधिक राशि देते हैं. कुछ शक्कर, गेहूं, दाल आदि भी देते हैं.


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