G-20 conference: भारत के पास 1 दिसंबर को G-20 की अध्यक्षता आ जाएगी जो एक साल तक रहेगी. भारत की अध्यक्षता में पहली बैठक उदयपुर में 5-7 दिसंबर को होने वाली है जिसमें 20 देशों के करीब 300 मेहमान उदयपुर (Udaipur) आएंगे. इसमें विदेश मंत्रालय सहित राजस्थान सरकार की तरफ से तैयारियां जोरों पर है. इनका वेन्यू भी आ चुका है जिसमें मुख्य बैठक स्थल दरबार हॉल में होगा, वहीं एक डीनर जग मंदिर में होगा. जहां यह वेन्यू है जानिये इसका इतिहास क्या कहता है?


जगमंदिर की इतिहास


विश्व विख्यात पिछोला झील के दक्षिण छोर पर एक जल महल (टापू) स्थित है, जिसे जगमन्दिर कहते हैं. जगमन्दिर-प्रांगण में सर्वप्रथम महाराणा अमरसिंह (प्रथम) ने एक गोल गुम्बद नुमा श्वेत संगमरमर से युक्त महल का निर्माण 1615 ई. में शुरू करवाया था. इसे 7 वर्ष बाद महाराणा कर्णसिंह ने 1622 में पूर्ण करवाया. इस महल का नाम बादल महल रखा गया. इस महल का निर्माण महाराणा अमरसिंह (प्रथम) और मुगल सम्राट जहागीर के मध्य सम्पन्न हुई सम्मानजनक शांति-सन्धि की स्मृति में बनवाया गया था. जिसकी नींव स्वयं मुगल शहजादे खुर्रम ने रखी थी.


कालान्तरा में शहजादे खुर्रम जो अपने पिता जहागीर के विरुद्ध बगावत कर दी थी. वह पटना, हांसी, मथुरा, रणथम्भोर आदि स्थानों पर लूटमार करता हुआ शाही सैना से भयभीत होकर उदयपुर में महाराणा कर्णसिंह की शरण में आया. शरणागत को सहायता देने की शाश्वत परम्परा का निर्वाह करते हुए खुर्रम को राजमहल के निकट देलवाड़ा की हवेली में अपने अनुचरों सहित रखा गया. किन्तु कुछ दिनों बाद पिछोला झील स्थित जगमन्दिर के बादल-महल के निर्माण को शीघ्र पूरा करवावर, यहां खुर्रम के ठहरने की व्यवस्था की गयी. खुर्रम ने करीब 4 माह यहां निवास किया, जिसके दौरान उसने महाराणा कर्णसिंह के साथ अपनी पगड़ी को बदलकर महाराणा के धर्मभाई साथ का रिश्ता कायम किया.


यह पगड़ी आज भी राजकीय-संग्रहालय, उदयपुर में सुरक्षित है. खुर्रम ने कुछ दिन ठहरने के बाद दक्षिण विजय के लिये प्रस्थान किया, जिसके साथ महाराणा ने सैनिक सहायता हेतु अपने भाई भीम सिंह को भेजा. शाहजहां के मुगल सम्राट बनने के बाद उसने गोल-गुम्बद बादल महल की पच्चीबारी कला को आगरा और दिल्ली के किले और ताजमहल में उत्कीर्ण करवाया. ऐसी मान्यता है कि शाहजहां (खर्रम) को ताजमहल निर्माण की प्रेरणा भी जगमन्दिर उदयपुर से ही मिली.


1857 ई. की गदर में नीमच की सेना भी बागी हो गयी तब ब्रिटिश अधिकारी अपनी पत्नियों और बच्चों सहित डूंगला गांव में आ छिपे थे. ऐसी संकटकालीन स्थिति में उन्होंने महाराणा स्वरूप सिंह में शरण देने की विनय की. महाराणा ने उनकी सुरक्षा व्यवस्था कर उन्हें तुरन्त उदयपुर बुलवा लिया और जगमन्दिर के महलों में शांति कायम होने तक आराम से रखा.


दरबार हॉल का इतिहास


उदयपुर राजमहल के दक्षिणी हिस्से में महाराणाओं ने पिछोला झील के निकट अत्यन्त खूबसूरत महलों का निर्माण करवाया. इसे बनाने में पूरे 22 साल लगे थे. महाराणा फतहसिंह ने आम दरबार के योग्य बड़े भवन की कमी को अनुभव किया. तदनुसार दक्षिणी प्रांगण में कुंवर पदों के महल के पश्चिम में 1909 ई. में दरबार हॉल का निर्माण प्रारम्भ करवाया. इस समय उदयपुर में वायसराय लार्ड मिन्टों उसपुर मेहमान स्वरूप आये. 1909 में महाराणा ने मिन्टों के हाथों इस दरबार हॉल की नींव रखवाकर इसका नाम मिन्टो हॉल रखा. इसलिये दरबार हॉल को मिंटो हॉल भी कहा जाता है.


1930 ई. के बाद यह हॉल महाराणा भूपाल सिंह के शासन काल में पूर्ण हुआ. इस दो मंजिला महल के दरबार हॉल की लम्बाई 115 फिट और चौड़ाई 45 फिट है. हॉल में दर्शक दीर्घा की अतिरिक्त व्यवस्था है, जहां से दरबार हॉल में होने वाले आयोजन और दीर्घा (गेलेरी) से पश्चिम और उत्तर की ओर खुलने वाली खिड़कियां हैं. क्रिस्टल गैलेरी से पिछोला झील का दृश्यावलोकन किया जा सकता है. वर्तमान में इस गेलेरी में कांच की कोकरी आदि महत्वपूर्ण वस्तुएं हैं. वेल्बोर में निर्मित यह वस्तुएं महाराणा सज्जन सिंह (1814-1884 ) ने मंगवाई थी. रोशनी की चमक में ये वस्तुएं और भी सुन्दर लगती है.


हॉल में महाराणा के लवाजमे, शस्त्र और सुन्दर फर्निचर हॉल की शोभा में चार चांद लगाते हैं. वैसे तो यहां महाराणा अपने सामतों और अतिथियों के साथ दरबार आयोजित करते थे. 8 फरवरी 1945 ई. को महाराणा भूपालसिंह का जन्म उत्सव दरबार हॉल में आयोजित हुआ. इस अवसर पर महाराणा ने अपनी प्रजा के योजनाओं की घोषणा की. महाराणा ने मेवाड़ में पीने के पानी की किल्लत के मध्येनजर प्रजा के लिये जल-व्यवस्था निमित्त 1 लाख रुपये, शिक्षा और ज्ञान प्रसार के लिये 3 लाख रुपये के बजट की मंजुरी प्रदान करते हुए योजना पर अमल हेतु एक कमेटी बनाई.


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