Udaipur News: उदयपुर शहर से 3 किलोमीटर दूर पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र से संचालित शिल्पग्राम  है. जहां पर गोवा, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के पारंपरिक झोपड़ियों की धलक देखने को मिलती हैं. ये झोपड़िया सभी राज्यों की विरासत और संस्कृति को दर्शाती हैं. शिल्पग्राम करीब 130 बीघा (70 एकड़) भूमि क्षेत्र में फैला और रमणीय अरावली पर्वतमालाओं के बीच बना है. यहां बनी झोपड़ियों में भारत के पश्चिमी क्षेत्र के राज्यों के निवासियों के रहन-सहन को दर्शाया गया है. आइए जानते हैं कि क्या है इन झोपड़ियां की विशेषताएं.....


गुजरात की रेबारी बंबी झोपड़ी - गुजरात के कच्छ जिले के वांड गांव में रेबारियों की है. विस्तृत चारागाह भूमि वाले क्षेत्र के ये रेबारी पशुपालक है जो वर्षा ऋतु के अलावा खानाबदोश जीवन जीते हैं. खानाबदोश जीवन जीने वाले ये रेबारी सरल सामान्य लेकिन सुंदर झोपड़ी बनाते हैं. आकार में गोल झोपड़ी में शंकु आकार के छप्पर को आधार देने के लिए एक लकड़ी लगाते हैं. गोलाकार तंबू जैसी लगने वाली ये झोपड़ी चिकनी मिट्टी, ईट और घास के द्वारा बनती है.




गोवा की कुम्हार झोपड़ी - बिचोलिम गोवा की मृण कला का प्रसिद्ध केंद्र है. विशेष रूप से जानवरों की आकृतियां घरेलू उपयोग बर्तन और बोलती प्रतिमाएं झोपड़ी पर बनाई जाती है. खुला बरामदा सामान रखने और काम करने के लिए काम में आता है घर के पीछे बर्तनों को पकाने के लिए भट्टी बनाई जाती है.




गुजरात की पिथौरा झोपड़ी - ये राठवा आदिवासी झोपड़ी छोटा उदयपुर के रंगपुर सादड़ी गांव की है. जो गुजरात के वडोदरा जिले और मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले की बॉर्डर पर है कृषि और 1 उत्पादों पर निर्भर. राठवा आदिवासी में नृत्य, चित्रकला, संगीत जीवन का अभिन्न अंग है. बाहरी दीवार पर की गई चित्रकारी उनके कर्मकांड और अंधविश्वास को दर्शाती है. उनकी यह मान्यता है कि उनके पिथौरा बाबा-मोटा देव की यह चित्रकारी उनकी विपदा उसे रक्षा करती है.




गुजरात की पेठापुर हवेली - पेठापुर गुजरात की राजधानी गांधीनगर के पास है. यह छोटा कस्बा है जो छपाई के ब्लॉक बनाने के लिए प्रसिद्ध है. 100 साल पुराना दो मंजिला आवास पेठापुर से लाया गया है. क्षेत्र के काष्ठ शिल्प का अनुपम उदाहरण है. जो ठोस लकड़ी के 407 दरवाजों में देखने को मिलता है.




कोल्हापुर महाराष्ट्र - दक्षिणी महाराष्ट्र में स्थित कोल्हापुर अपने चर्म उद्योग के लिए विख्यात है. यह झोपड़ी कोल्हापुर के चर्म कलाकारों की है. मिट्टी और पत्थर के छोटे टुकड़े की कुटाई कर दीवार बनाई जाती है. इस वर्गाकार झोपड़ी में पहला कमरा चप्पल बनाने और उससे संबंधित सामान रखने में के काम में आता है. शेर दो कमरे घरेलू उपयोग में काम आते हैं.




नागालैंड की मोनउंग झोपड़ी जो वहां की संस्कृति को दर्शाती है.




गोवा की ईसाई झोपड़ी - यह ईसाई झोपड़ी है जो इसके सामने लगे क्रॉस से पहचानी जाती है. ग्रामीण ईसाई व हिंदुओं के रहन-सहन व दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं में समानता पाई जाती है क्योंकि इनकी उत्पत्ति का स्त्रोत एक ही है. यह कमरा 5 भागों में विभाजित है इसमें रसोई बैठक कक्ष, दो शयन कक्ष और बाहरी रसोई. उसकी दीवारों पर नारियल के पत्ते बड़ी सफाई से बांधे जाते हैं जो इन्हें बारिश से सुरक्षित रखते हैं




राजस्थान के रामा को झोपड़ी - पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर जिले के थार रेगिस्तान के बीच रामा गांव बसा हुआ है. यह झोपड़ी रामा गांव के भील परिवार के आवास के प्रतिरूप में दर्शाई गई है. चार दीवारों के बीच में बसे इस घर में एक मुख्य द्वार हैं, तीन तरफ सर्दी-गर्मी में उपयोग आने वाले कमरे-रसोई है. दीवारें पत्थर पर मिट्टी की लिपाई करके बनाई जाती है. छत केर की लकड़ी से बनाई जाती है. संयुक्त परिवार होने के कारण घर बड़ा आकार का होता है.




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