Idana Mata Temple: देशभर में कई मंदिर है जो अपने आप में अलग-अलग मान्यताएं रखते हैं. इसी प्रकार उदयपुर शहर से 65 किलोमीटर दूर कुराबड़-बम्बोरा मार्ग पर श्री शक्ति पीठ ईडाणा माता का प्राचीन मंदिर है. मंदिर की खास बात यह है कि ईडाणा माता अग्नि स्नान करती हैं. यहां अचानक आग लगती है और ठंडी भी हो जाती है. बड़ी बात यह है कि आग छोटी नहीं लगती, ऐसी लपटे उठती है जो 5 किलोमीटर दूर से भी दिखाई देती है. जैसे ही माता रानी अग्नि स्नान करती है तो दर्शन करने के लिए भक्तों की भीड़ जमा हो जाती है. यहां उत्सव जैसा माहौल हो जाता है. माता के जयकारों की गूंज उठती है. लोगों का मानना है कि माता जब प्रसन्न होती है तब अग्नि स्नान करती है. हालांकि अब यह कोई पता नहीं लगा पाया है कि यह आग कैसे लगती है. साथ ही आग कब लगती है इसका भी कोई तय समय नहीं है.


पांडवों ने की थी माता की पूजा
मंदिर से जुड़े कर्मचारियों का कहना है कि मंदिर पूरा खुला हुआ है और माताजी विराजमान है. मान्यता है कि सदियों पहले पांडव यहाँ से गुजरे थे जिन्होंने भी माता की पूजा अर्चना की थी. साथ ही एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की जयसमंद झील के निर्माण के समय राजा जयसिंह भी यहां आए थे और देवी शक्ति की पूजा की थी. मंदिर के कर्मचारी दशरथ दमामी बताते हैं कि ईडाणा माता की प्रतिमा के समक्ष अगरबत्ती नहीं चढ़ाई जाती है क्योंकि लोगों को यह भ्रम ना हो कि अगरबत्ती की चिंगारी से आग लगी. एक अखंड ज्योत जरूर जलती है लेकिन वह भी कांच के अंदर रखी रहती है. माताजी को भक्त चूनरी या श्रृंगार के सामान चढ़ाते हैं जो उनकी प्रतिमा के पीछे ही रखी रहती. कहते हैं कि चढ़ावें का भार ज्यादा होने और माँ के प्रसन्न होने पर अग्नि स्नान कर उतारती है. फिर 1-2 दिन में आग ठंडी हो जाती है.




आग लगने के पहले पुजारी उतार लेते हैं माता के आभूषण
यह भी बताया जाता है कि जैसे ही हल्की-हल्की आग लगना शुरू होती है उसी समय पुजारी माताजी के आभूषण उतार लेते हैं. अग्नि ठंडी होती है तो फिर श्रृंगार किया जाता है. मंदिर में भक्तों की यह मान्यता भी है कि यह लकवा ग्रस्त रोगी बिल्कुल ठीक होकर जाते हैं. साथ ही मंदिर का प्रसाद घर नहीं के जाया जाता. मंदिर में ही बांट दिया जाता है. ईडाणा माता मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष कमलेन्द्र सिंह ने बताया कि माताजी के अग्नि स्नान का कोई तस समय नहीं है. कभी माह में दो बार तो साल में 3-4 बार ही होता है. साथ ही कोई वैज्ञानिक कारण अब तक नहीं आया, माता की महिमा है. जब मां प्रसन्न होती है तो अग्नि स्नान करती है.


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