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Rajasthan: यहां भगवान शिव से पहले होती है रावण की पूजा, उदयपुर में एक ऐसा भी मंदिर, जानें इसके पीछे की पौराणिक कहानी
Udaipur News: उदयपुर के इस मंदिर में भगवान शिव से पहले रावण की पूजा की जाती है. यहां श्रद्धालु भगवान शिव से पहले रावण के सामने शीश झुकाते हैं. क्या है यहां की पौराणिक मान्यताएं?
देशभर में कई प्राचीन शिव मंदिर हैं, जिनकी कई मान्यताएं और उनके पीछे छिपी कई कहानियां हैं, लेकिन उदयपुर में एक ऐसा शिव मंदिर है जिसकी कहानी में रावण का जिक्र है. इस मंदिर में भगवान शिव से पहले रावण की प्राचीन मूर्ति की पूजा की जाती है. यहीं नहीं यहां आने वाले श्रद्धालु भगवान शिव से पहले रावण के सामने शीश झुकाते हैं.
यह कमलनाथ महादेव का मंदिर हैं जो उदयपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर झाड़ोल क्षेत्र के आवरगढ़ की पहाड़ियों में. यह एक गांव हुआ करता था जिसका चारो तरफ परकोटा भी था जिसके अवशेष अभी भी मिलते हैं. आइए जानते हैं क्या है कहानी इस प्राचीन मंदिर की.
रावण ने अपना शीश चढ़ाया था यहां
मंदिर के पुजारी ललित शर्मा ने बताया कि यहां भगवान शिव से पहले रावण की पूजा की जाती है. यहां रावण की मूर्ति स्थापित है. कहते हैं कि रावण शिवलिंग लेकर जा रहा था तो उसे लघुशंका लगी.
वहीं शिवलिंग को वरदान था कि जहां जमीन पर रखी वहीं स्थापित हो जाएगी. रावण यहां रुका और शिवलिंग ग्वाले को दी और ग्वाले ने वहीं जमीन पर रख दी और यहीं स्थापित हुई. दुखी रावण तपस्या करने लगा. तपस्या में एक दिन कमल के 108 फूल में एक कम पड़ गया. ऐसे ने रावण ने अपना शीश चढ़ा दिया. भगवान शिव रावण से प्रसन्न हुए और वरदान स्वरुप उसकी नाभि में अमृत कुण्ड की स्थापना कर दी और दस शीश का वरदान दे दिया. साथ ही इस स्थान को कमलनाथ महादेव नाम दे दिया.
भगवान राम भी वनवास के समय रुके थे यहां
लोगों के अनुसार यहां भी किवंदती हैं को भगवान राम वनवास के समय ने यहां आए थे और कुछ दिन बिताए थे. साथ ही मेवाड़ के वीर महाराणा प्रताप ने भी आपातकाल में कुछ समय यहां बिताए थे. कहा जाता है कि मुगल शासक अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, तब आवरगढ़ की पहाड़ियां ही चित्तौड़ की सेनाओं के लिए सुरक्षित स्थान था. महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के मध्य हल्दी घाटी युद्ध हुआ. उस समय घायल सैनिकों को आवरगढ़ की पहाड़ियों में उपचार के लिए लाया जाता था.
मंदिर में यह भी है खास
पुजारी ललित शर्मा ने बताया कि मंदिर तक पहुंचने के लिए 2 किमी पैदल चलना पड़ता है. यहां वैशाख माह में मेला लगता है जहां अस्थि विसर्जन के लिए हजारों लोग आते हैं. मंदिर में एक कुंड है जहां हर वक्त जलधारा बहती है.
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