Udaipur: फसल कटाई के बाद जो अवशेष बचते हैं उसे किसान जलाकर नष्ट करते और नई फसल उगाते हैं. यही प्रक्रिया है, लेकिन इस प्रक्रिया में सबसे ज्यादा नुकसान वातावरण को होता है. प्रदूषण का सबसे अधिक दुष्प्रभाव राजधानी दिल्ली में आते हैं. जहां कई दिनों तक वातावरण में धुंध छाई रहती है. इससे बचने के लिए उदयपुर में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में एक आविष्कार हुआ है.


इस अविष्कार को देश में पेटेंट मिल चुका है, वहीं अब दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने भी इसको पेटेंट दिया है. इस अविष्कार से अवशेष नष्ट होने के साथ ही किसानों को उपजाऊ खाद भी मिलेगी, जिससे किसानों को उनकी अगली उपज बढ़ाने में मदद मिलेगी. आइये जानते हैं.


यह आविष्कार उदयपुर के महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सीटीएई कॉलेज के रिन्यूएबल एनर्जी इंजीनियरिंग विभाग में हुआ है. यहां बायोपचार मशीन बनाई गई है जिससे खेतों में बचे अवशेष या भूसे को हीट देकर खाद बनाते हैं. विभाग के हेड प्रो. एनएल पंवार ने बताया कि खेतों में फसल के अवशेष या भूसे को इस मशीन में प्रोसेस करने के बाद खाद का रूप दिया जाता है. इसके बनने के बाद, इसे देश में पेटेंट मिल चुका है और अब साउथ अफ्रीका की सरकार ने भी इसे पेटेंट दिया है. अब इसे वहां की सरकार भी उपयोग में लेगी.


कैसे करते हैं इस्तेमाल?


यह सिलैंडरिकल आकर की मशीन है. इससे भूसे या अवशेष को जलाने की बजाय हीट देकर पकाया जाता है. विभाग के हेड प्रो. एनएल पंवार ने बताया कि हमने जो मशीन बनाई है इसमें एक बार में 2 क्विंटल भूसा या अवशेष भरा जा सकता है. इस भूसे से किसान को 60 किलो खाद मिलेगी. भूसे को पहले अंदर भरा जाता है. नीचे जाली लगी होती है और जाली के नीचे लकड़ी जलाई जाती है.


लकड़ी जलने से हीट होती है जिससे भूसा जलता नहीं पकता है. अब सवाल यह उठता है कि लकड़ी से आग लगेगी तो धुंआ तो होगा ही. लेकिन इस प्रोसेस में धुंआ का भी उपयोग हुआ है. जिस पाइप से धुआं निकलता है उसका पॉइंट सिलेंडर के अंदर ही दे दिया. क्योंकि यह धुंआ आग का काम कर रहा है. जिससे जितना धुंआ बनेगा उतना ही सिलेंडर में आग जाएगी. 


60 हजार में अपने घर लगा सकते हैं किसान- प्रो. एनएल पंवार


इस अविष्कार की क्षमता के बारे में बात करते हुए प्रो. एनएल पंवार ने बताया कि इस सिलेंडर की कॉस्ट 2 लाख रुपए आती है, हालांकि किसानों के लिए छोटा सिलेंडर बनाया गया है. इसकी क्षमता 60 किलो की है. साथ ही यह एक स्थान से दूसरे स्थान पर भी ले जा सकते हैं. किसान इसकी मदद से एक छोटा उद्योग लगाकर इसके खाद का व्यापार कर सकते हैं. किसान के लिए इसकी कीमत 60 हजार रुपये रखी गई है.


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