Maharana Pratap University of Agriculture and Technology: बिजली बचाने के लिए केंद्र सरकार सहित राज्य सरकार भी लगातार प्रयास कर रही है. इसको लेकर नारे भी दिए गए हैं. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय ने इसको साकार किया है. विश्वविद्यालय हर साल यूनिवर्सिटी में खर्च हो रही बिजली में से हर साल औसत 75 लाख रुपए बचा रही है. यह शुरुआत यूनिवर्सिटी ने वर्ष 2016 से ही कर दी थी जो अब तक चल रही है.
10 भवनों की छत पर लगाया प्रोजेक्ट
यूनिवर्सिटी में इलेक्ट्रिकल विभाग के डॉ. विक्रमादित्य दवे ने बताया कि यूनिवर्सिटी का हर साल 10-12 लाख रुपए का बिल आ रहा था जो अब 3-4 लाख तक ही बन रहा है. उन्होंने बताया कि वर्ष 2016 में यूनिवर्सिटी में सोलर पैनल लगाने की शरुआत की थी. अब तक यूनिवर्सिटी के जो बड़े 10 भवन हैं उनकी छतों पर सोलर पैनल लगा दिए गए हैं. यह 545 किलोवॉट के पैनल है जो दिन में करीब 2000 यूनिट का उत्पादन करता है. विद्युत निगम से आने वाली बिजली और यूनिवर्सिटी से बनने वाली बिजली के बीच में एक मीटर बनाया हुआ है. मीटर में कॉउंट हो जाता है कि यूनिवर्सिटी कितनी बिजली का उपयोग कर रहा है और कितनी विद्युत निगम को दे रहा है. उसी अनुसार बिल बनता है. ऐसे में साल का औसत 75 लाख रुपए की बिजली बचा रहे हैं.
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खर्च निकल जाने के बाद अब हो रही बचत
डॉ. दवे ने बताया कि यूनिवर्सिटी में 545 किलोवॉट सोलर पैनल लगाने में करीब ढाई करोड़ रुपए का खर्च आया था. हर साल 75 लाख रुपए की बचत हो रही है. ऐसे में चार साल से भी कम समय में लागत की भरपाई हो गई है और अब बचत में चल रहे हैं.
घर में यह लगाना फायदेमंद
उन्होंने बताया कि चार प्रकार के सोलर होते हैं. पोली क्रिस्टेलाइन सोलर सेल, मोनो क्रिस्टलाइन सोलर सेल, थिन फिल्म और पॉलीमर क्रिस्टेलाइन सेल. 2016-17 में पोली क्रिस्टलाइन ज्यादा चलन में थे क्योंकि मोनो महंगे होते थे. पोली की विद्युत उत्पादन क्षमता कम थी. लेकिन अभी मोनो क्रिस्टलाइन की कोस्ट भी कम हो गई है. मोनो क्रिस्टलाइन एक किलोवॉट में प्रतिदिन 5 यूनिट उत्पादन होती है और मोनो में 4 यूनिट. घर में अगर कोई मोनो क्रिस्टलाइन 4 किलोवॉट का लगाएगा तो 10000 रुपए पोली से ज्यादा लगेंगे लेकिन यूनिट भी ज्यादा मिलेगी.
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