Mother's Day Special: इस मदर्स डे आपको मां के महिमा की एक शानदार दास्तां हम बताने जा रहे हैं. दरअसल राजस्थान के उदयपुर में मांएं अपना दूध डोनेट कर रहीं हैं, ताकि अन्य नवजातों की जान बच सके. मां इस संसार की सबसे बेहतरीन रचना है. जन्म लेते ही बच्चा भी सबसे पहले मां पर ही भरोसा करता है और मां के दूध की घूंट में ही जीवन मिलता है. वहीं अपने बच्चों को तो हर मां दूध पिलाती है, लेकिन आपको ऐसी 22 हजार माओं के बारे में बताने जा रहे है जिन्होंने अपने दूध से 13 हजार नवजातों की जान बचाई है.


यह उदयपुर के महाराणा भूपाल चिकित्सालय में स्थित कॉम्प्रहेंसिव लेक्टेशन मैनेजमेंट सेंटर (सीएलएमसी) में होता है. यहां जुड़ी 22 हजार 173 मांएं इसका जीवंत प्रमाण हैं, जो साढ़े 5 साल में अपना 6001 लीटर दूध डोनेट कर चुकी हैं. यह अमृत रूपी दूध 13 हजार 326 नवजातों की जान बचा चुका है.


2013 में हुई थी स्थापना


एमबी अस्पताल परिसर में वर्ष 2013 में दिव्य मदर मिल्क बैंक शुरू हुआ था. साल 2017 में सरकार ने इसे कॉम्प्रहेंसिव लेक्टेशन मैनेजमेंट सेंटर नाम देकर अस्पताल प्रशासन को सौंपा. उत्तरी भारत का यह पहला मिल्क बैंक, मां भगवती संस्थान ने शुरू किया था. तब 4-5 मिल्क डोनर महिलाएं थीं और महज 300 मिलीलीटर (एमएल) दूध कलेक्ट हो पाता था.


नोडल ऑफिसर डॉ. बी.एल. मेघवाल ने बताया कि शुरुआत में जो कुछ दूध इकट्ठा होता था, वह कुछ नवजातों को ही मिल पाता था. आज रोज औसत चार लीटर दूध डोनेट हो रहा है. यह डोनेशन 18 से 20 मांएं रोज 40 से 50 सिटिंग में कर रही है. 100 से ज्यादा महिलाओं को ब्रैस्टफीडिंग से जुड़ी काउंसलिंग कर रहे हैं.




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इसलिए पड़ती है इन मांओं के दूध की जरूरत


इन मांओं के दूध की जरूरत कई पहलुओं में पड़ती है. जैसे किसी मां ने बच्चे को जन्म दिया लेकिन फीडिंग नहीं करा पाती तब इसे बच्चों को इन मांओं के दूध की जरूरत पड़ती है. साथ ही ऐसे बच्चे जिन्हें जन्म के बाद उनके माता-पिता छोड़ जाते हैं, ऐसे लावारिस हालत में कहीं बच्चे मिलते हैं तो इन बच्चों को यह दूध जीवन देता है. ऐसे बच्चों को अब तक 2.49 लाख यूनिट मातृ दुग्ध उपलब्ध कराया जा चुका है.


डॉ. मेघवाल ने बताया कि अब तक अस्पताल में भर्ती माताएं ही दूध डोनेट करती रही हैं, जो अस्पताल में अमूमन तीन से चार दिन रहती हैं. प्रसव के 15 दिन बाद मां का दूध ज्यादा बनता है. ऐसे में मातृ दुग्धदान अभियान को आमजन के बीच पहुंचाएंगे. इससे बाहर से भी मांएं दूध डोनेट करने आ सकेंगी और जरूरतमंद बच्चों का अधिक दूध मिलेगा.


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