Udaipur Research News: आज के समय में हम बच्चों के मानसिक स्तर से जुड़ी कई बातें देख रहे हैं. लगातार आत्महत्याओं (Suicide) के मामले तक सामने आए हैं. लेकिन, यह सामने नहीं आ पा रहा है कि आखिर गलतियां कहा हो रही हैं. किस चूक के कारण बच्चों का बिहेवियर (Behaviour) बदलता जा रहा है. इसी विषय पर उदयपुर (Udaipur) के महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ( MPUAT) में शोध हुआ है. यह शोध 11 राज्यों के 6600 माता-पिता से 149 सवाल पूछकर हुआ है और यह शोध ग्रामीण क्षेत्र में किया गया है. शहरी में पहले किया जा चुका था.
क्या पाया गया शोध में
विश्वविद्यालय के प्रोफेसर्स और रिसर्चर्स ने अपने शोध में पाया कि शहरी बच्चों की तुलना में ग्रामीण बच्चों में निर्णय लेने की क्षमता अधिक होती है. शोध की रिपोर्ट के साथ सुझाव भी दिए गए हैं कि पेरेंटिंग कैसे करनी चाहिए. यूनिवर्सिटी के होम साइंस कॉलेज की प्रोफेसर और वरिष्ठ वैज्ञानिक गायत्री राठौड़ ने बताया कि यह शोध 5 साल में पूरा हुआ है. इसमें 6 साल उम्र के बच्चों के माता-पिता को शामिल किया गया है.
पैरेंटिंग को लेकर किए गए सवाल
शोध में असम, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, मेघालय, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के पैरेंट्स को शामिल किया गया. उनसे पैरेंटिंग को लेकर कई सवाल किए गए. इसमें बच्चों द्वारा आत्महत्या और के तरह के गलत स्वभाव के पीछे अप्रभावशाली पैरेंटिंग को माना गया है. इसलिए 4 श्रेणियों में माता-पिता के स्वभाव, परवरिश की क्षमता, अभिभावक बच्चों के संबंध और परवरिश से जुड़े सवाल किए गए. यह शोध भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संचालित हुआ और होम साइंस कॉलेज के प्रोफेसर ने किया. विषय था पैरेंटिंग इंडेक्स फॉर रूरल फैमिली रिसर्च (पीआईआरफ). इसमें डॉ स्नेहा जैन और रुचि गलुंडिया ने शोध किया.
6 साल के बच्चों के पेरेंट्स को ही क्यों लिया
वैज्ञानिक गायत्री राठौड़ ने बताया कि कहते हैं न टहनी अगर मुड़ी हुई होती है तो पेड़ भी वैसा ही होता है. छह साल तक के बच्चे टहनी ही हैं. अगर, इस समय उसे बेहतर पेरेंटिंग नहीं मिलती है तो बड़े होने के बाद उसमें वैसे ही स्वभाव आएंगे, जो उसने इस अवस्था में देखे और सीखे हैं. समस्या ग्रामीण क्षेत्र में भी हो सकती है, लेकिन तुलना करें तो शहरी बच्चों में ज्यादा है.
गांवों में नहीं दिया जाता जोर
इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों की माता-पिता किसी बात की जोर जबरदस्ती नहीं करते. बच्चे में जितना हुनर है, उसी से वह बड़ा होता है. वहीं शहरी क्षेत्र में देखा गया है कि माता-पिता अपना ज्ञान उसे थोपना चाहते हैं. लेकिन, उसे क्या चाहिए वह नहीं सुनते. यह सब शोध में ही सामने आया है. इसको लेकर सुझाव भी दिए गए हैं.
ये दिए गए हैं सुझाव
-बच्चों को पौधे की तरह बड़ा करें, जिस तरह किसान बीज बो देने के बाद उसे खाद पानी तो देता हैं, लेकिन पौधा बड़ा अपनी क्षमता से ही होता है. बच्चों को सहयोग करें, लेकिन उनकी क्षमता को भी बाहर आने दें
-पैरेंटिंग डेमोक्रेटिक होने चाहिए, इसका अर्थ की अपनी तरफ से उसे बताएं. लेकिन, उनकी भी सुनें
-बच्चों को क्या के साथ क्यों जरूर बताएं, जैसे बड़ों के पैर छूने चाहिए, यह तो बता देते हैं लेकिन क्यों, यह नहीं बताते
-बच्चों के साथ संबंध गुणात्मक होना चाहिए, जैसे अपने छुट्टी ली, ताकि बच्चों के साथ टाइम बिताएंगे. लेकिन, आप मोबाइल और टीवी में दिन बिता देते हैं. बच्चों को समय देना जरूरी है
-रिफ्लेटिव एक्शन नहीं, रेस्पॉन्स एक्शन होना चाहिए. जैसे बच्चे ने कहा कि क्लास के बाद हम मूवी देखने चले गए थे, पिता ने चाटा मार दिया. इससे यह होगा कि आगे से वह कभी सच नहीं कहेगा. उसे पहले रिस्पॉस दें, जो भी आप देना चाहते हों, फिर रिफ्लेक्टिव पर आएं
-अपने बच्चों की तुलना कभी किसी से दूसरे बच्चे से न करें
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